बादशाही मस्जिद लाहौर संक्षिप्त जानकारी

स्थानपंजाब प्रांत, लाहौर (पाकिस्तान)
निर्माणकाल1671 ई. से 1673 ई.
निर्मातामुगल सम्राट औरंगजेब
वास्तुकारनवाब जैन यार बहादुर
वास्तुकला शैलीमुगल इंडो-इस्लामिक
प्रकारमस्जिद

बादशाही मस्जिद लाहौर का संक्षिप्त विवरण

15 अगस्त 1947 का दिवस भारत के लिए काफी शुभ और अशुभ दिन साबित हुआ था। यह भारतीय इतिहास का वह दिन था जब भारत ने स्वतंत्रता के साथ-साथ उस विभाजन को भी देखा, जिसमें अपने राजनैतिक हित साधने के लिए उसके कई टुकड़े किये जा रहे थे।

पाकिस्तान के लाहौर में स्थित बादशाही मस्जिद मुगल वास्तुकला का अनूठा उदाहरण है, यह मस्जिद विश्व की सबसे बड़ी और अद्भुत मस्जिदों में से एक है। इस विश्व प्रसिद्ध मस्जिद का निर्माण लगभग 16वीं शताब्दी के उतरार्ध में प्रसिद्ध मुगल शासक औरंगजेब द्वारा करवाया गया था।

बादशाही मस्जिद लाहौर का इतिहास

इस विश्व प्रसिद्ध मस्जिद का निर्माण वर्ष 1671 ई. में मुगल सम्राट “औरंगजेब” द्वारा शुरू किया गया था, जिसके बाद उनके बड़े भाई और लाहौर के गवर्नर “मुजफ्फर हुसैन” (फिदाई खान कोका) ने इस मस्जिद के निर्माण कार्य वर्ष 1673 ई. में संपूर्ण करवाया था। इस मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने मराठाओ से हुये युद्ध में जीत हासिल करने की खुशी में में किया था।

बादशाही मस्जिद लाहौर के रोचक तथ्य

  1. इस ऐतिहासिक मस्जिद का निर्माण वर्ष 1673 ई. में प्रसिद्ध मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन में किया गया था।
  2. इस मस्जिद के निर्माण में लगभग 3 वर्षो का समय लगा था, इसका निर्माण वर्ष 1671 ई. में शुरू हुआ था जिसे वर्ष 1673 ई. तक लाहौर के गवर्नर “मुजफ्फर हुसैन” की देख-रेख में पूर्ण कर दिया गया था।
  3. सिख आर्मी के प्रसिद्ध शासक रंजित सिंह ने 07 जुलाई 1799 ई. में इस मस्जिद और क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था औरमस्जिद का उपयोग अपने घोड़ो और इसके 80 हुज्रास (अध्ययन कक्षो) का उपयोग अपने सैनिकों के आवास के लिए और सैन्य दुकानों के लिए किया था।
  4. वर्ष 1818 ई. में उन्होंने हज़ुरी बाग में मस्जिद के सामने एक संगमरमर के भवन का निर्माण किया, जिसे हज़ुरी बाग बारादारी के नाम से जाना जाता है, यह उनके दर्शकों के आधिकारिक शाही अदालत के रूप में उपयोग किया जाता था।
  5. वर्ष 1841 ई. में प्रथम एंग्लो-सिख युद्ध के दौरान रंजीत सिंह के बेटे शेर सिंह ने इस मस्जिद के बड़े मीनारों का उपयोग चांद कौर के समर्थकों पर हमला करने के लिए हल्की बंदूकें और तोंपो को रखने के लिए किया था।
  6. वर्ष 1848 ई. में रंजीत सिंह की मृत्यु के बाद सिख शासक शेर सिंह ने उनकी समाधि बनाने के लिए इस मस्जिद के ही समीप के स्थानों का उपयोग किया था।
  7. वर्ष 1849 ई. में अंग्रेजों ने लाहौर से सिख साम्राज्य से के नियंत्रण को हटाकर अपना शासन जमा लिया था जिसके बाद मस्जिद और इसके आस-पास के किले को अंग्रेजो ने अपने सैन्य छावनियों के रूप में उपयोग किया था।
  8. वर्ष 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने इस विशाल मस्जिद के आंगन के चारों ओर की दीवारों में निर्मित 80 कोठरियों को ध्वस्त कर दिया था, ताकि उन्हें ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करने से रोका जा सके। कोठरियों को खुली वीथिकाओं द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, जिन्हें दलों के नाम से जाना जाता है।
  9. वर्ष 1852 में मुस्लिम लोगो का विरोध इस मस्जिद का उपयोग सैन्य छावनी के रूप में देखकर और बढ़ गया जिसके मस्जिद प्राधिकरण की स्थापना की, जिसने इस मस्जिद को बाद में पुन: प्रार्थना योग्य बना दिया था।
  10. अप्रैल 1919 ई. में हुये जलियांवाला हत्याकांड के बाद लगभग 25,000 से 35,000 तक हिंदू, मुस्लिम और आदि संप्रदाय के लोग इस मस्जिद के आंगन में अंग्रेजो के विरोध में इकट्ठे हुए थे और खालिफा शुजा-उद-दीन द्वारा महात्मा गांधी का एक भाषण पढ़ा गया था।
  11. वर्ष 1939 में सिकंदर हायात खान ने इस मस्जिद के नवीनीकरण के उद्देश्य से धन जुटाना शुरू कर दिया था। जिसे बाद में प्रसिद्ध वास्तुकार नवाब आलम यार बहादुर द्वारा नवीनीकृत किया गया था।
  12. वर्ष 1939 ई. से लेकर 1960 ई. तक इस मस्जिद के नवीनीकरण का कार्य चलता रहा था, जिसमे लगभग 4.8 मिलियन रुपये की कुल लागत आई थी।
  13. इस मस्जिद के प्रवेश परिसर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर किया गया है यह 2 मंजिला है, जिस पर विभिन्न प्रकार की नक्काशियाँ की गई है। इसका निर्माण भी मुगल वास्तुकला शैली में किया गया था।
  14. इस मस्जिद का विशाल प्रवेश द्वार एक चबूतरे पर स्थित है, जिस कारण मस्जिद में घुसने के लिए लोगो को लगभग 22 सीढियों को चढ़ना पड़ता है।
  15. इस मस्जिद का आंगन काफी विशाल है जो लगभग 276,000 वर्ग फुट के क्षेत्रफल में फैला हुआ है, इस आंगन में बलुआ पत्थर पर पंख के डिजाईनो को बनाया गया है। नमाज के समय इस आंगन में लगभग 100,000 और मस्जिद के अन्य भागो में लगभग 56,000 लोगो को एक साथ बिठाया जा सकता है।
  16. इस मस्जिद के प्रार्थना कक्ष को लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर के पत्थरों से सजाया गया है, इसमें 5 निकासी द्वार, 3 संगमरमर के बड़े गुंबद और 2 छोटे गुंबद सम्मिलित है। इस प्रार्थना कक्ष में एक साथ लगभग 10,000 लोगो को बिठाया जा सकता है।
  17. इस मस्जिद के चारो कोनों पर अष्टकोणीय 3 मंजिला मीनारे बनाई गई है, जिनका निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया था।
  18. इस मस्जिद में कुल मीनारों की संख्या 8 है जिसमे से 4 बड़ी है, जिनकी ऊंचाई 196 फुट है और 4 छोटी है जिनकी ऊंचाई लगभग 67 फुट है।
  19. वर्ष 1993 ई. में इसके ऐतिहासिक महत्व, अद्भुत संरचना और लोगो का इसके प्रति प्यार देखकर यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया गया है।
  20. वर्ष 2000 में इसके मुख्य प्रार्थना कक्ष में संगमरमर की जड़ की मरम्मत की गई थी तथा वर्ष 2008 में इसके बड़े आंगन पर लाल बलुआ पत्थर की टाइलों पर प्रतिस्थापन कार्य भारतीय राज्य राजस्थान के जयपुर से आयातित लाल बलुआ पत्थर से किया गया था।
  21. इस मस्जिद का पूरा नाम "मस्जिद अबुल जफर मुह-उद-दीन मोहम्मद आलमगीर बादशाह गाज़ी" है जो यहाँ के प्रवेश द्वार के ऊपर अंदरूनी संगमरमर में लिखा गया है।

  Last update :  Wed 3 Aug 2022
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