सेलुलर जेल संक्षिप्त जानकारी

स्थानपोर्ट ब्लेयर, अंडमान द्वीप (भारत)
निर्माणकाल1896-1906
निर्माताब्रिटिश सरकार
वास्तुकलासेलुलर, प्रांगित
प्रकारजेल

सेलुलर जेल का संक्षिप्त विवरण

भारत पर्यटन की दृष्टि से विश्व के सबसे सुंदर देशो में से एक है। भारत के राज्य अपनी ऐतिहासिक इमारतो और अद्भुत कलाकृतियों के कारण देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते है भारतीय केंद्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार द्वीप का इतिहास भी काफी रोचक रहा है, यही पर ब्रिटिश काल की सबसे प्रसिद्ध सेल्यूलर जेल स्थित है, जहाँ पर भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को काले पानी की सजा दी जाती थी।

सेलुलर जेल का इतिहास

इस जेल का निर्माण लगभग 1896 ई. से 1906 ई. के मध्य करवाया गया था। अंडमान का जेल के रूप में उपयोग बहुत पहले से ही किया जा रहा था, 1857 की क्रांति में भारतीय क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार के होश उड़ा दिए थे, उन्हें यह आभास हो गया था कि उनकी जड़े अब भारत में ज्यादा दिनों तक नही टिकने वाली है। दिल्ली में हुए युद्ध के बाद अंग्रेज यह जान चुके थे कि उन्हें अब यह युद्ध अपनी बहादुरी के बल पर नही बल्कि जासूसी और षड्यंत्रों से जीतना पड़ेगा और उन्होंने इसी विचारधारा को अपनाया था।

अंग्रेजो ने इस क्रांति को समाप्त करने के लिए भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को बहुत ही भयंकर सजा दी थी, अंग्रेजी इतिहासकारों ने इस क्रांति को एक सैनिक हिंसा कहकर अपनी सरकार की छवि को सुधारने की कोशिश की थी। इस क्रांति के दौरान कई लोगो को फांसी दी गई थी तो कई को तोंप के सामने बाँध कर उड़ा दिया गया था, अंग्रेजी सरकार जिन लोगो को ऐसी यातनाएं नही दे पाती थी तो वह उन्हें ऐसी जगह भेजा देती थी कि वह वहाँ से कभी भी न लौट सके।

ब्रिटिश सरकार ने बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों को अंडमान की जेल में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिनकी याद में वहाँ एक संग्रहालय भी बनाया गया है, जिनमे उनके बलिदान के बारे में आसानी से देखा और समझा जा सकता है।

सेलुलर जेल के रोचक तथ्य

  1. इस विश्व प्रसिद्ध जेल के निर्माण में लगभग 10 वर्षो से अधिक का समय लगा था, इसका निर्माण कार्य वर्ष 1896 ई. में शुरू किया गया था जिसे वर्ष 1906 तक बनाकर पूर्ण कर लिया गया था।
  2. इस जेल का नाम भी इसकी विश्व प्रसिद्ध संरचना के आधार पर रखा गया है, इस जेल की अंदरूनी संरचना एक कोठरी (सेल) जैसी है, इसलिए इसे सेल्यूलर जेल कहा गया है।
  3. इस जेल के अंदर लगभग 696 से अधिक कोठरियाँ है और इन कोठरियों को इस प्रकार बनाया गया है कोई भी अपराधी किसी दूसरे अपराधी से न मिल सके।
  4. इस जेल का प्राचीन रूप एक ऑक्टोपस के आकार की तरह नजर आता था, क्यूंकि यह 7 शाखाओं में फैला हुआ था परंतु स्वतंत्रता के समय इसकी 4 शाखाओं को अंग्रेजो द्वारा तोड़ दिया गया था, जिस कारण आज इसकी केवल 3 ही शाखाएं दिखाई देती हैं।
  5. इसकी संरचना इस प्रकार की गई थी कि इसके बीच में एक टावर बना गया था, जिससे इस 7 शाखाएं निकली हैं जो टॉवर से गलियारे के माध्यम से जुड़ी हुई है। इसमें बने टॉवर की सहायता से यहाँ के कैदियों पर सख्त निगरानी रखी जाती थी।
  6. इस जेल में देश के विभिन्न भागों से लाए गये स्वतंत्रता सेनानियों को नजरबंद रखा जाता था, और उन्हें कोल्हू पर तेल पिराई करना, पत्थर तोड़ना, चक्की पीसना, लकड़ी काटना, एक हफ्ते तक हथकड़ियां बांधे खड़े रहना, आदि जैसी कठोर सजाएं दी जाती थीं।
  7. वर्ष 1863 ई. में, बंगाल के सबसे प्रसिद्ध उपशास्त्री रेव. हेनरी. फिशर कॉर्बिन को भी इस जेल में भेज दिया गया था, उन्होंने वहां 'अंडमानी होम' की स्थापना की, जो एक धर्मार्थ संस्था के रूप में छिपी हुई एक दमनकारी संस्था के रूप में उभरी थी।
  8. वर्ष 1868 ई. में एक विद्रोह के बाद लगभग 733 से अधिक कैदियों को कराची से इस जेल में भेजा गया था।
  9. ब्रिटिश साम्राज्य के दो प्रसिद्ध जेलर डेविड बैरी और मेजर जेम्स पैटिसन वाकर ने इस जेल में लगभग 200 से अधिक विद्रोहियों को भेजा था और उन्हें काफी कठोर यातनाएं भी दी थी।
  10. वर्ष 1933 में इस जेल के कैदियों द्वारा भूख हड़ताल ने जेल के अधिकारियों का ध्यान उनकी ओर खीचा था। इस जेल के 33 कैदियों ने उनको मिले अमानवीय यातनाओ का विरोध किया और भूख हड़ताल पर बैठे गये थे।
  11. वर्तमान में इस जेल को एक अस्पताल और संग्रहालय के रूप में विकसित कर दिया गया है, जिसकी दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं। इसके संग्रहालय में आज भी उन अस्त्रों को रखा गया है जिनसे स्वतंत्रता सेनानियों पर अत्याचार किए जाते थे।
  12. 11 फरवरी 1979 को भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री मोरारजी देसाई द्वारा इसे भारतीय राष्ट्रीय स्मारक के रूप में घोषित कर दिया गया था।
  13. जापान ने वर्ष 1942 में अंडमान द्वीप पर हमला किया था और इस जेल को ब्रिटिश कैदियों के लिए विकसित कर दिया था और इस अवधि के दौरान डॉ० सुभाष चंद्र बोस ने भी द्वीप का दौरा किया था।

  Last update :  Wed 3 Aug 2022
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