इस अध्याय के माध्यम से हम जानेंगे भारतेन्दु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harishchandra) से जुड़े महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्य जैसे उनकी व्यक्तिगत जानकारी, शिक्षा तथा करियर, उपलब्धि तथा सम्मानित पुरस्कार और भी अन्य जानकारियाँ। इस विषय में दिए गए भारतेन्दु हरिश्चंद्र से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित किया गया है जिसे पढ़कर आपको प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में मदद मिलेगी। Bharatendu Harishchandra Biography and Interesting Facts in Hindi.

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का संक्षिप्त सामान्य ज्ञान

नामभारतेन्दु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harishchandra)
जन्म की तारीख09 सितम्बर
जन्म स्थानवाराणसी (भारत)
निधन तिथि06 जनवरी
पिता का नाम बाबू गोपाल चन्द्र
उपलब्धि1880 - भारतेन्दु की उपाधि
पेशा / देशपुरुष / उपन्यासकार / भारत

भारतेन्दु हरिश्चंद्र - भारतेन्दु की उपाधि (1880)

भारतेन्दु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता हैं। बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी नगरी के प्रसिद्ध ‘सेठ अमीचंद" के वंश में 09 सितम्बर सन् 1850 को हुआ था। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुंदर (1867) नाटक के अनुवाद से होती है।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म 09 सितम्बर 1850 को वाराणसी ,उत्तरप्रदेश (भारत) में हुआ था| इनका मूल नाम हरिश्चंद्र था| इनके पिता का नाम बाबू गोपाल चन्द्र और माता का नाम पार्वती देवी था| इनके पिता एक कवि थे जो "गिरधरदास" उपनाम से कविता करते थे। भारतेन्दु हरिश्चंद्र के पिता ‘बाबू गोपाल चन्द्र" भी एक कवि थे हरिश्चंद्र जब 5 वर्ष के थे तब उनकी माँ चल बसी तथा पिता भी 10 वर्ष की आयु में ही स्वर्ग सिधार गये। इन्होंने दोहा, चौपाई, छन्द, बरवै, हरि गीतिका, कवित्त एवं सवैया आदि पर भी काम किया था।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का निधन 6 जनवरी 1885 (आयु 34 वर्ष) को बनारस , बनारस राज्य , ब्रिटिश भारत में हुई थी।
पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही भारतेन्दु ने साहित्य सेवा प्रारम्भ कर दी थी। अठारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने "कविवचनसुधा" नामक पत्रिका निकाली, जिसमें उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थीं। वे बीस वर्ष की अवस्था में ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट बनाए गए और आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक के रूप मे प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने 1868 में "कविवचनसुधा", 1873 में "हरिश्चन्द्र मैगजीन" और 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए "बाला बोधिनी" नामक पत्रिकाएँ निकालीं। साथ ही उनके समांतर साहित्यिक संस्थाएँ भी खड़ी कीं। वैष्णव भक्ति के प्रचार के लिए उन्होंने "तदीय समाज" की स्थापना की थी।उन्होंने ‘हरिश्चंद्र पत्रिका", ‘कविवचन सुधा" और ‘बाल विबोधिनी" पत्रिकाओं का संपादन भी किया था। भारतेन्दु के वृहत साहित्यिक योगदान के कारण हीं 1857 से 1900 तक के काल को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है। इन्होंने दोहा, चौपाई, छन्द, बरवै, हरि गीतिका, कवित्त एवं सवैया आदि पर भी काम किया था। बारबरा और थॉमस आर. मेटकाफ के अनुसार, भारतेंदु हरिश्चंद्र को उत्तर भारत में हिंदू “परंपरावादी” का एक प्रभावशाली उदाहरण माना जाता है। सबसे पहले भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने ही साहित्य में जन भावनाओं और आकांक्षाओं को स्वर दिया था। पहली बार साहित्य में ‘जन" का समावेश भारतेन्दु ने ही किया था। भारतेन्दु हरिश्चंद्र के जीवनकाल में ही कवियों और लेखकों का एक खासा मंडल चारों ओर तैयार हो गया था। हिन्दी साहित्य के इतिहास में इसे भारतेन्दु मंडल के नाम से जाना जाता है। इन सभी ने भारतेंदु हरिश्चंद्र के नेतृत्व में हिन्दी गद्य की सभी विधाओं में अपना योगदान दिया। ये लोग भारतेन्दु की मृत्यु के बाद भी लम्बे समय तक साहित्य साधना करते रहे।
“सूचना और प्रसारण मंत्रालय” द्वारा साल 1983 से देश में हिंदी भाषा के विकास के लिए हर साल भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार प्रदान किया जाता है। काशी के विद्वानों ने उन्हें ख्याति दिलाने के उद्देश्य से साल 1880 में एक सामाजिक मीटिंग में भारतेन्दु की उपाधि दी थी।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र प्रश्नोत्तर (FAQs):

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म 09 सितम्बर 1850 को वाराणसी (भारत) में हुआ था।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र को 1880 में भारतेन्दु की उपाधि के रूप में जाना जाता है।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र की मृत्यु 06 जनवरी 1885 को हुई थी।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र के पिता का नाम बाबू गोपाल चन्द्र था।

  Last update :  Tue 28 Jun 2022
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