महर्षि वाल्मीकि कौन थे?
महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य में अग्रदूत कवि के रूप में जाना जाता है। महर्षि वाल्मीकि संस्कृत रामायण के प्रमुख रचयिता हैं जिसके कारण उन्हें आदिकवि के रूप में भी जाना जाता हैं। उन्होंने संस्कृत भाषा मे रामायण की रचना की थी। रामायण एक भारत का महाकाव्य है जो कि राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से, परिचित करवाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर हुआ था। उपनिषद के विवरण के अनुसार भाई का नाम भृगु था। अदिती एक प्रतिष्ठित हिन्दु देवी है। पूराणौ के आधार पर वे ऋषि कश्यप की दूसरी पत्नी थीं। वेदो के आधार पर इनका कोई पति नही है, ऋग्वेद मे इन को ब्रह्म शक्ति माना गया है। इनके बारह पुत्र हुए जो आदित्य कहलाए (अदितेः अपत्यं पुमान् आदित्यः)। उन्हें देवता भी कहा जाता है। अतः अदिति को देवमाता कहा जाता है।
लेकिन पुराणों में वर्णित एक ओर कथा के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का जन्म नागा प्रजाति में हुआ था। और मनुस्मृति के अनुसार वे प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि के भाई थे।
महर्षि वाल्मीकि के बचपन के बारे में कहा जाता की उन्हें एक भीलनी ने चुरा लिया था इसलिए उनका पालन-पोषण भील समाज में हुआ था लेकिन जब वे बड़े हुए हो तो वे डाकू बन गए। वाल्मीकि बनने से पहले उनका नाम रत्नाकर था, महर्षि वाल्मीकि डाकू होने के कारण परिवार के भरण-पोषण के लिए जंगल से गुजर रहे राहगीरों को लूटते और जरूरत पड़ने पर उन्हें जान से भी मार देते थे। मान्यता है कि एक दिन उसी जंगल से नारद मुनि जा रहे थे। तभी रत्नाकर (महर्षि वाल्मीकि) की दृष्टि उन पर पड़ी और उन्होंने नारद मुनि को बंधी बना लिया। इस पर नारद मुनि ने उससे सवाल किया कि तुम ऐसे पाप क्यों कर रहे हो। रत्नाकर का जवाब था कि वह यह सब अपने परिवार के लिए कर रहें हैं। यह जवाब सुनने के बाद नारद ने पूछा, “क्या तुम्हारा परिवार भी इन पापों का फल भोगेगा” रत्नाकर ने इस पर तुरंत जवाब दिया ”हां, मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहेगा” नारद मुनि ने कहा कि एक बार जाकर अपने परिवार से पूछ लो। रत्नाकर ने जब अपने परिवार से पूछा तो सबने मना कर दिया। इस बात से रत्नाकर का मन बेहद दुखी हो गए और उनहोंने उसी समय पाप का रास्ता छोड़ दिया। और हमेशा-हमेशा के लिए पुण्य के रास्ते पर चल दिये।
महर्षि वाल्मीकि का वाल्मीकि नाम कैसे पड़ा:
एक बार की बात है, महर्षि वाल्मीकि ध्यान में मग्न थे, तब उनके शरीर में दीमक चढ़ गई थीं। लेकिन वो ध्यान में इस कदर मग्न थे कि उनका दीमक पर कोई ध्यान नहीं गया। बाद में साधना पूरी हुई तो उन्होंने दीमक साफ की। दीमक के घर को वाल्मिकि कहा जाता है। इसलिए इस घटना के बाद उनका नाम वाल्मीकि पड़ गया था।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत का पहला श्लोक:
कहा जाता है की महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत साहित्य के पहले श्लोक की रचना की थी। संस्कृत साहित्य का यह पहला श्लोक रामायाण का भी पहला श्लोक बना। स्वभविक रूप से रामायण हिन्दू साहित्य का संस्कृत में रचित पहला महाकाव्य है। हालांकि इस पहले श्लोक में श्राप दिया गया था। इस श्राप के पीछे एक रोचक कहानी है, एक दिन वाल्मीकि स्नान के लिए गंगा नदी को जा रहे थे। तभी रास्ते में उन्हें तमसा नदी दिखाई दी। उस नदी के स्वच्छ जल को देखकर उन्हें वहां स्नान करने का विचार आया। उसी क्षण उन्होंने प्रणय-क्रिया में लीन क्रौंच पक्षी के जोड़े को देखा। प्रसन्न पक्षी युगल को देखकर वाल्मीकि ऋषि के हिर्द्य को भी हर्ष हुआ। लेकिन तभी अचानक कहीं से एक बाण आकर नर पक्षी को लग गया। नर पक्षी तड़पते हुए वृक्ष से गिर गया। मादा पक्षी इस शोक से व्याकुल होकर विलाप करने लगी। ऋषि वाल्मीकि यह दृश्य देखकर हैरान हो जाते हैं। तभी उस स्थान पर वह बहेलिया दौड़ते हुए आता है, जिसने पक्षी पर बाण चलाया था। इस दुखद घटना से क्षुब्ध होकर वाल्मीकि के मुख से अनायास ही बहेलिए के लिए एक श्राप निकल जाता है:
॥ मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम् ॥
अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।
इस घटना के बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य “रामायण” (जिसे “वाल्मीकि रामायण” के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और “आदिकवि वाल्मीकि” के नाम से अमर हो गये।
महर्षि वाल्मीकि के आश्रम की कहानी:
वाल्मीकि का आश्रम चित्रकूट (बाँदा ज़िला, उत्तर प्रदेश) के निकट कामतानाथ से पंद्रह-सोलह मील की दूरी पर लालपुर पहाड़ी पर स्थित बछोई ग्राम में बताया जाता है।
वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड की रामायण अनुसार समाज के द्वारा माता सीता को अपवित्र माने के कारण राम और सीता के आदेश के चलते लक्ष्मण उन्हें वाल्मीकि आश्रम में छोड़कर आ जाते हैं। वाल्मीकि आश्रम में सीता वनदेवी के नाम से रहती हैं। उस समय वह गर्भवती रहती हैं। वह वहीं दो जुड़वा लव और कुश को जन्म देती हैं। वाल्मीकि का आश्रम गंगा पार तमसा नदी के तट पर था।
यह भी कहा जाता है कि सीता जब गर्भवती थीं तब उन्होंने एक दिन राम से एक बार तपोवन घूमने की इच्छा व्यक्त की। किंतु राम ने वंश को कलंक से बचाने के लिए लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को तपोवन में छोड़ आएं। हालांकि कुछ जगह उल्लेख है कि श्रीराम का सम्मान उनकी प्रजा के बीच बना रहे इसके लिए उन्होंने अयोध्या का महल छोड़ दिया और वन में जाकर वे वाल्मीकि आश्रम में रहने लगीं। वे गर्भवती थीं और इसी अवस्था में उन्होंने अपना घर छोड़ा था।
वाल्मीकि जयंती कब है?
इस वर्ष की आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को 30 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 45 मिनट पर हो रहा है, और इसका समापन 31 अक्टूबर को रात 08 बजकर 18 मिनट पर होना है। इसलिए इस वर्ष 2020 की वाल्मिकी जयंती इस साल 31 अक्टूबर 2020 को मनाई जाएगी।