वित्तीय प्रणाली क्या है?
वित्तीय प्रणाली (financial system) वह प्रणाली है जो जमाकर्ताओं, निवेशकर्ताओं तथा मांगकर्ताओं के बीच फंड का आवागमन कराती है। वित्तीय प्रणालियाँ वैश्विक स्तर पर, राष्ट्रीय स्तर पर और फर्म के स्तर पर काम करने वाली हो सकतीं हैं। वित्तीय प्रणालियाँ जटिल, आपस में निकटता से जुड़ी हुईं सेवाओं, बाजारों एवं संस्थाओं से मिलकर बनी होती हैं।
वित्तीय प्रणाली किसी भी अर्थव्यवस्था मे प्रगति के अनुसार प्रमुख भूमिका निभाती है। इसे प्रपट किया जाता है वित्तीय ढांचे से, इसमें अधिक निवेश (सरप्लस यूनिट) उन्हे दिया जाता है जिनके पास निवेश के अधिक तरीके हैं और वे फंड इस्तेमाल किए जाते हैं जिन्हें बहुत अधिक उत्पादकता से प्रयोग किया जाता है (डेफ़िसिट यूनिट)। सरप्लस युनिट्स व्यक्तिगत, व्यावसायिक या सरकारी प्रकार के हो सकते है जिनके पास अधिक मात्र मे बिना खर्च किया हुआ धन कुछ समय के लिए होता है, साथ ही वे इस फ़ंड का उपयोग करने के इच्छुक होते हैं।
दूसरी ओर डेफ़िसिट युनिट्स वे व्यक्ति, व्यवसाय या सरकार होते हैं जिनके पास उनकी आय से अधिक खर्च करने की योजनाएँ होती है और वे धन को उधर लेने मे रुचि रखते हैं।
वित्तीय प्रणाली की महत्व:
- फण्ड्स तरलता प्रदान करना: वित्तीय प्रणाली द्वारा सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को तरलता प्रदान की जाती है और इसके लिए फण्ड्स को एकत्र कर उन्हें उन्हें उपयोगकर्ताओं को प्रदान करने की क्रिया की जाती है।
- बचत प्रसार: वित्तीय तंत्र द्वारा बचत को निवेश में बदला जाता है और अतिरिक्त धन को उसके धारकों से लेकर आवश्यकता संबंधी पक्षों तक पहुंचाया जाता है।
- धन प्रदान करना: वित्तीय तंत्र द्वारा सही प्रकल्पों का चुनाव किया जाता है उससे धन को सही प्रदर्शन करने वाले स्थानो पर लगाया जा सके।
- वस्तु व सेवा के बदले भुगतान का प्रणाली: इसे विविध प्रतिभूतियों के माध्यम से किया जाता है और इसमें एलेक्ट्रोनिक भुगतान प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
- जोखिम प्रबंधन: यह प्रणाली बचत को सही प्रकार से फण्ड्स के वितरण में लाकर प्रसार हेतु मदद करता है।
- जानकारी व विस्तार को जानना, साही करना और समय पर जानकारी देना: साही निर्णय लेने के लिए पारदर्शिता होना आवश्यक है और यह वित्तीय प्रणाली द्वारा ही दी जाती है।
वित्तीय प्रणाली के कार्य:
किसी वित्तीय तंत्र की भूमिका किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण होती है। अर्थव्यवस्था साही तरीके से चल सके, इस हेतु साही वित्तीय प्रणाली होना आवश्यक है:
फण्ड्स को तरलता प्रदान करना:
इसका प्रमुख कार्य है फण्ड्स को धन के रूप में प्रयोजन में रखना और इन्हे अर्थव्यवस्था के लिए साही संपत्ति के रूप में रखना। वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन के लिए यह आवश्यक है। वित्तीय प्रणाली द्वारा सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को तरलता प्रदान की जाती है जिससे वे अपने कार्य कर सके। जैसा की पहले बताया गया है, इसे फण्ड्स को प्राप्त कर उपयोगकर्ताओं को देने की प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है।
उदाहरण के लिए बैंक, बीमा कंपनी आदि द्वारा बड़े उद्धयोगों को अपने विस्तार या ढांचागत विकास के लिए धन प्रदान किया जाता है। उसी प्रकार ब्रोकिंग संस्थान द्वारा कंपनी के लिए नवीन प्रकार की मदद जारी की जाती है जिससे उन्हे साही प्रतिभूति जारी करने में मदद मिलती है।
बचत प्रसार:
वित्तीय प्रणाली द्वारा हो महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है वह है बचत के प्रसार को छोटे बचतकर्ताओं व बड़े बचतकर्ताओं तक लाना। इस वित्तीय प्रणाली द्वारा ही बचत को निवेश में बदला जाता है। यह प्रणाली इस प्रकार से अधिक धन रखने वाले और अधिक धन चाहने वालों का अंतर कम करता है। एक बाद फिर, संस्थानों द्वारा अपने फण्ड्स को बैंक में रखा जाता है।
वे बचत, निवेश आदि के द्वारा धन प्राप्त करते हैं और ग्राहकों द्वारा जमा किए गए धन वारा इसका पालन किया जाता है इसके बाद इस धन को कर्ज के रूप में उत्पादन प्रयोजन, व्यक्तिगत स्वरूप और औद्दोगिक स्वरूप में दिया जाता है।
फण्ड्स का निर्धारण:
सही प्रकल्प चुनकर फण्ड्स को सही प्रकार से सही रकम हेतु निर्धारित करने में मदद करता है। यह इस प्रकार के प्रोजेक्ट्स के बारे में समय समय पर समीक्षा करता है जिससे यह पता लगाया जा सके की इस फ़ंड का उपयोग सही प्रयोजन से और सही तरीके से हो रहा है या नहीं। उदाहरण के लिए, कोई कंपनी बैंक से संपर्क करती है और उसे एक ऋण चाहिए जो की उसके प्लांट और नवीन मशीनरी के लिए है, तब बैंक अधिकारी बापने तकनीकी जानकारी की मदद से उसके प्रस्ताव का आकलन किया जाएगा।
वे धन तभी देंगे जब वे प्रकल्प के कार्य प्रकार और उत्पादन के साथ ही आगे आने वाले समय मे लाभ की अपेक्षा को देखते हैं। यहाँ तक की धन प्रदान कर देने के बाद भी बैंक द्वारा समय समय पर यह सुनिश्चित किया जाएगा की फंड का उपयोग सही व प्रस्तावित कारण से ही ग्राहक द्वारा किया जा रहा है।
वस्तु और सेवाओं के आदान प्रदान संबंधी भुगतान का प्रकार:
इसे प्रदान करने के लिए विविध प्रतिभूतियों का उपयोग किया जाता है साथ ही इलेक्ट्रोनिक भुगतान पद्धति का भी उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कंपनी मुंबई में स्थित है और वह कोच्चि मे स्थित किसी कंपनी की सेवाएँ लेती है, तब बुगटन सीधे इलेक्ट्रोनिक स्थानांतरण के माध्यम से संभव है। इसके साथ ही यह स्त्रोतों को भी विविध स्थानों पर ले जाने में मदद करती है जैसे कंपनी मुंबई में है लेकी उसे सेवा प्रदान करने वाली कंपनी कोच्चि में है।
जोखिम प्रबंधन प्रणाली:
इसमें बचत का प्रसार किया जाता है व इस धन को वितरण के साथ ही सही तरीके से प्रसारित किया जाता है। जोखिम प्रबंधन से यह सुनिश्चित होता है की निवेशकों द्वारा जिस धन का निवेश किया गया है, वह सुरक्षित है। उपरोक्त उदाहरण जाना पर बैंक यह सुनिश्चित करती है कि कुशलतापूर्वक प्रभावी तरीके से हो। और यह जांच करती है कि जनता द्वारा निवेशित किया जाने वाला धन सुरक्षित रहे।
विस्तारित और सही जानकारी
निर्णय लेने हेतु पारदर्शिता एक आवश्यक तत्व है और इसी का उपयोग वित्तीय तंत्र द्वारा दी जाने वाली सुविधा के दौरान किया जाता है। नियामकों का खासकर छोटे निवेशकों का ज्यादा धायन रखा जाता है।
वित्तीय प्रणाली के घटक:
वित्तीय संस्थाए: वित्तीय संस्थान सदस्यों और ग्राहकों के लिए वित्तीय सेवाएं प्रदान करते हैं। इसे वित्तीय मध्यस्थों के रूप में भी कहा जाता है क्योंकि वे बचतकर्ताओं और उधारकर्ताओं के बीच बिचौलियों के रूप में कार्य करते हैं।
बैंक: बैंक वित्तीय मध्यस्थ हैं जो उधारकर्ताओं को राजस्व उत्पन्न करने और जमा स्वीकार करने के लिए पैसे उधार देते हैं। वे आमतौर पर भारी रूप से विनियमित होते हैं, क्योंकि वे बाजार की स्थिरता और उपभोक्ता संरक्षण प्रदान करते हैं। बैंकों में शामिल हैं:-
- सार्वजनिक बैंक
- वाणिज्यिक बैंक
- केंद्रीय बैंक
- सहकारी बैंक
- राज्य-प्रबंधित सहकारी बैंक
- राज्य-प्रबंधित भूमि विकास बैंक
गैर-बैंक वित्तीय संस्थान: गैर-बैंक वित्तीय संस्थान निवेश, जोखिम पूलिंग और बाजार दलाली जैसी वित्तीय सेवाओं की सुविधा प्रदान करते हैं। उनके पास आम तौर पर पूर्ण बैंकिंग लाइसेंस नहीं होते हैं। गैर-बैंक वित्तीय संस्थानों में शामिल हैं:-
- वित्त और ऋण कंपनियां
- बीमा कंपनियां
- म्यूचुअल फंड्स
- कमोडिटी के व्यापारी
वित्तीय बाजार: वित्तीय बाजार ऐसे बाजार हैं जिनमें प्रतिभूतियों, वस्तुओं और फफूंद वाले वस्तुओं की आपूर्ति और मांग का प्रतिनिधित्व करते हुए कीमतों पर कारोबार किया जाता है। "बाजार" शब्द का अर्थ आम तौर पर ऐसी वस्तुओं के संभावित खरीदारों और विक्रेताओं के समग्र आदान-प्रदान का संस्थान है।
प्राथमिक बाजार: प्राथमिक बाजार (या प्रारंभिक बाजार) आम तौर पर स्टॉक, बॉन्ड या अन्य वित्तीय साधनों के नए मुद्दों को संदर्भित करता है। प्राथमिक बाजार दो खंडों में विभाजित है, मुद्रा बाजार और पूंजी बाजार।
द्वितीयक बाजार: द्वितीयक बाजार वित्तीय साधनों में लेनदेन को संदर्भित करता है जो पहले जारी किए गए थे।
वित्तीय प्रपत्र: वित्तीय साधन किसी भी प्रकार की पारंपरिक वित्तीय संपत्ति हैं। उनमें पैसा, एक इकाई में स्वामित्व हित के सबूत और अनुबंध शामिल हैं।
नकद उपकरण: एक नकद उपकरण मूल्य सीधे बाजारों द्वारा निर्धारित किया जाता है। इनमें प्रतिभूति, ऋण और जमा शामिल हो सकते हैं।
व्युत्पन्न उपकरण: एक व्युत्पन्न उपकरण एक अनुबंध है जो एक या अधिक अंतर्निहित संस्थाओं (एक परिसंपत्ति, सूचकांक, या ब्याज दर सहित) से इसका मूल्य प्राप्त करता है।
वित्तीय सेवाएं: वित्तीय सेवाओं को बड़ी संख्या में व्यवसायों द्वारा पेश किया जाता है जो वित्त उद्योग को शामिल करते हैं। इनमें क्रेडिट यूनियन, बैंक, क्रेडिट कार्ड कंपनियां, बीमा कंपनियां, स्टॉक ब्रोकरेज और निवेश फंड शामिल हैं।
भारत में वित्तीय नियामक:
- भारतीय रिजर्व बैंक
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड
- फारवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी)
- बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा)
- निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम
- प्रवर्तन निदेशालय
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