सातवाहन वंश का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची: 

सातवाहन वंश:

सातवाहन वंश (60 ई.पू. से 240 ई.) भारत का प्राचीन राजवंश था, जिसने केन्द्रीय दक्षिण भारत पर शासन किया था। भारतीय इतिहास में यह राजवंश 'आन्ध्र वंश' के नाम से भी विख्यात है। सातवाहन वंश का प्रारम्भिक राजा सिमुक था। इस वंश के राजाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों से जमकर संघर्ष किया था। इन राजाओं ने शक आक्रांताओं को सहजता से भारत में पैर नहीं जमाने दिये।

सातवाहन वंश का इतिहास:

सातवाहन भारत का एक राजवंश था, जिसने केन्द्रीय दक्षिण भारत पर शासन किया। भारतीय परिवार, जो पुराणों (प्राचीन धार्मिक तथा किंवदंतियों का साहित्य) पर आधारित कुछ व्याख्याओं के अनुसार, आंध्र जाति (जनजाति) का था और दक्षिणापथ अर्थात दक्षिणी क्षेत्र में साम्राज्य की स्थापना करने वाला यह पहला दक्कनी वंश था। सातवाहन वंश के संस्थापक सिमुक ने 60 ई.पू. से 37 ई.पू. तक राज्य किया। उसके बाद उसका भाई कृष्ण और फिर कृष्ण का पुत्र सातकर्णी प्रथम गद्दी पर बैठा।

इसी के शासनकाल में सातवाहन वंश को सबसे अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। वह, खारवेल का समकालीन था। उसने गोदावरी नदी के तट पर प्रतिष्ठान नगर को अपनी राजधानी बनाया। सातवाहन वंश में कुल 27 शासक हुए। ये हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। साथ ही इन्होंने बौद्ध और जैन विहारों को भी सहायता प्रदान की। यह मौर्य वंश के पतन के बाद शक्तिशाली हुआ 8वीं सदी ईसा पूर्व में इनका उल्लेख मिलता है। अशोक की मृत्यु (सन् 232 ईसा पूर्व) के बाद सातवाहनों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया था।

सातवाहन वंश के शासक (राजा):

सातवाहन वंश में कुल 9 राजा ही हुए, जिनके नाम निम्नलिखित हैं:-

  1. सिमुक
  2. कृष्ण
  3. सातकर्णि
  4. गौतमीपुत्र सातकर्णि
  5. वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी
  6. वशिष्ठिपुत्र सातकर्णि
  7. शिवस्कंद सातकर्णि
  8. यज्ञश्री शातकर्णी
  9. विजय

सिमुक (Simuka):

सिमुक (235 ई0पू0 - 212 ई0पू0) सातवाहन वंश का संस्थापक था तथा उसने 235 ई0पू0 से लेकर 212ई0पू0 तक लगभग 23 वर्षों तक शासन किया। यद्यपि उसके विषय में हमें अधिक जानकारी नही मिलती तथापि पुराणों से हमें यह ज्ञात होता है कि कण्व शासकों की शक्ति का नाश कर तथा बचे हुए शुंग मुखियाओं का दमन करके उसने सातवाहन वंश की नींव रखी। पुराणों में उसे सिमेक के अतिरिक्त शिशुक, सिन्धुक तथा शिप्रक आदि नामों से भी पुकारा गया है। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार सिमुक ने अपने शासन काल में जैन तथा बौद्ध मन्दिरों का निर्माण करवाया, लेकिन अपने शासन काल के आखिर में वह पथभ्रष्ट तथा क्रुर हो गया जिसके कारण उसे पदच्युत कर उसकी हत्या कर दी गई।

कृष्ण (Krishan):

सिमुक की मृत्यु के पश्चात उसका छोटा भाई कान्हा (कृष्ण) राजगद्दी पर बैठा। अपने 18 वर्षों के कार्यकाल में कान्हा ने साम्राज्य विसतार की नीति को अपनाया। नासिक के शिलालेख से यह पता चलता है कि कान्हा के समय में सातवाहन साम्राज्य पश्चिम में नासिक तक फैल गया था। शातकर्णी-प् (प्रथम) कान्हा के उपरान्त शातकर्णी प्रथम गद्दी पर बैठा। पुराणों के अनुसार वह कान्हा पुत्र था। परन्तु डॉ॰ गोपालचारी सिमुक को शातकर्णी प्रथम का पिता मानते हैं। कुछ विद्वानों ने यह माना है कि इसका शासन काल मात्रा दो वर्ष रहा परन्तु नीलकण्ठ शास्त्री ने उसका शासन काल 194 ई0पू0 से लेकर 185 ई0पू0 माना है। जो भी हो लेकिन यह सुस्पष्ट है कि उसका शासन काल बहुत लम्बा नही था। लेकिन छोटा शासन काल होते हुए भी शातकर्णी प्रथम का कार्यकाल कुछ दृष्टिकोणों से बड़ा महत्वपूर्ण है। सातवाहन शासकों में वह पहला था जिसने इस वंश के शासकों में प्रिय एवं प्रचलित, ‘‘शातकर्णी’’ शब्द से अपना नामकरण किया।

सातकर्णि:

कृष्ण के बाद उसका भतीजा (सिमुक का पुत्र) प्रतिष्ठान के राजसिंहासन पर पदासीन हुआ। उसने सातवाहन राज्य का बहुत विस्तार किया। उसका विवाह नायनिका या नागरिका नाम की कुमारी के साथ हुआ था, जो एक बड़े महारथी सरदार की दुहिता थी। इस विवाह के कारण सातकर्णि की शक्ति बहुत बढ़ गई, क्योंकि एक शक्तिशाली महारथी सरदार की सहायता उसे प्राप्त हो गई। सातकर्णि के सिक्कों पर उसके श्वसुर अंगीयकुलीन महारथी त्रणकयिरो का नाम भी अंकित है। शिलालेखों में उसे 'दक्षिणापथ' और 'अप्रतिहतचक्र' विशेषणों से संभोधित किया गया है। अपने राज्य का विस्तार कर इस प्रतापी राजा ने राजसूय यज्ञ किया, और दो बार अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया था, क्योंकि सातकर्णी का शासनकाल मौर्य वंश के ह्रास काल में था, अतः स्वाभाविक रूप से उसने अनेक ऐसे प्रदेशों को जीत कर अपने अधीन किया होगा, जो कि पहले मौर्य साम्राज्य के अधीन थे।

अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान इन विजयों के उपलक्ष्य में ही किया गया होगा। सातकर्णी के राज्य में भी प्राचीन वैदिक धर्म का पुनरुत्थान हो रहा था। इनमें जो दक्षिणा सातकर्णि ने ब्राह्मण पुरोहितों में प्रदान की, उसमें अन्य वस्तुओं के साथ 47,200 गौओं, 10 हाथियों, 1000 घोड़ों, 1 रथ और 68,000 कार्षापणों का भी दान किया गया था। इसमें कोई सन्देह नहीं कि सातकर्णी एक प्रबल और शक्ति सम्पन्न राजा था। कलिंगराज खारवेल ने विजय यात्रा करते हुए उसके विरुद्ध शस्त्र नहीं उठाया था, लेकिन हाथीगुम्फ़ा शिलालेख के अनुसार वह सातकर्णी की उपेक्षा दूर-दूर तक आक्रमण कर सकने में समर्थ हो गया था। सातकर्णी देर तक सातवाहन राज्य का संचालन नहीं कर सका। सम्भवतः एक युद्ध में उसकी मृत्यु हो गई थी, और उसका शासन काल केवल दस वर्ष (172 से 162 ई. पू. के लगभग) तक रहा था।

अभी उसके पुत्र वयस्क नहीं हुए थे। अतः उसकी मृत्यु के उपरांत रानी नायनिका ने शासन-सूत्र का संचालन किया। पुराणों में सातवाहन राजाओं को आन्ध्र और आन्ध्रभृत्य भी कहा गया है। इसका कारण इन राजाओं का या तो आन्ध्र की जाति का होना है, और या यह भी सम्भव है कि इनके पूर्वज पहले किसी आन्ध्र राजा की सेवा में रहे हों। इनकी शक्ति का केन्द्र आन्ध्र में न होकर महाराष्ट्र के प्रदेश में था। पुराणों में सिमुक या सिन्धुक को आन्ध्रजातीय कहा गया है। इसीलिए इस वंश को आन्ध्र-सातवाहन की संज्ञा दी जाती है। शिलालेखों में इस राजा के द्वारा किए गए अन्य भी अनेक यज्ञों का उल्लेख है।

गौतमीपुत्र सातकर्णि (Gautamiputra Satakarni):

लगभग आधी शताब्दी की उठापटक तथा शक शासकों के हाथों मानमर्दन के बाद गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी के नेतृत्व में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित कर लिया। गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी सातवाहन (सेंगर वंश) वंश का सबसे महान शासक था जिसने लगभग 25 वर्षों तक शासन करते हुए न केवल अपने साम्राज्य की खोई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित किया, बल्कि एक विशाल साम्राज्य की भी स्थापना की। गौतमी पुत्र के समय तथा उसकी विजयों के बारें में हमें उसकी माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखों से सम्पूर्ण जानकारी मिलती है। उसके सन्दर्भ में हमें इस लेख से यह जानकारी मिलती है कि उसने क्षत्रियों के अहंकार का मान-मर्दन किया था।

उसने 'त्रि-समुंद्र-तोय-पीत-वाहन' उपाधि धारण की जिससे यह पता चलता है कि उसका प्रभाव पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक था। ऐसा प्रतीत होता है कि अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले गौतमी पुत्र शातकर्णी द्वारा नहपान को हराकर जीते गए क्षेत्र उसके हाथ से निकल गए। गौतमी पुत्र से इन प्रदेशों को छीनने वाले संभवतः सीथियन जाति के ही करदामक वंश के शक शासक थे। इसका प्रमाण हमें क्लाडियस टॉलमी (Ptolemy) द्वारा भूगोल का वर्णन करती उसकी पुस्तक से मिलता है। ऐसा ही निष्कर्ष 150 ई0 के प्रसिद्ध रूद्रदमन के जूनागढ़ के शिलालेख से भी निकाला जा सकता है। यह शिलालेख दर्शाता है कि नहपान से विजित गौतमीपुत्र शातकर्णी के सभी प्रदेशों को उससे रूद्रदमन ने हथिया लिया। ऐसा प्रतीत होता है कि गौतमीपुत्र शातकर्णी ने करदामक शकों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर रूद्रदामन द्वारा हथियाए गए अपने क्षेत्रों को सुरक्षित करने का प्रयास किया। उसका वर्णन शक, यवन तथा पहलाव शासको के विनाश कर्ता के रूप में हुआ है। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्षहरात वंश के शक शासक नहपान तथा उसके वंशजों की उसके हाथों हुई पराजय थी।

वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी (Vasishthiputra Pulumavi):

वशिष्ठिपुत्र पलुमवी एक सातवाहन सम्राट बने जो सातवाहन सम्राट गौतमीपुत्र शातकर्णी का पुत्र था। गौतमपुत्र सातकर्णी के बाद वर्ष 132 इसवी में वह शनिवाहन का राजा बना अपने शासनकाल के दौरान, क्षत्रप ने नर्मदा की भूमि उत्तर और उत्तरी कोंकण में ले ली। पुलुमावी और रुद्रदामन (उज्जैन के क्षत्रप) के बीच दो बार युद्ध हुआ। इन दोनों युद्धों में, रूद्रामन ने वशिष्ठिपुत्र पलुमवी को हराया लेकिन उनकी बेटी वस्तीति के बेटे शातकर्णी द्वितीय (पुलुवामी के छोटे भाई) को इसके कारण समझौता किया गया था।

वैशालीपुत्र पलूमावई अपने स्वयं के मुखौटा के साथ चांदी के सिक्के ले आए थे। पुरानो में उनका नाम पुलोमा शातकर्णी और टॉलमी के विवरण में सिरों-पोलिमेओस के रूप में मिलता है। सम्बव्ते उसी ने नवनगा की स्थापना की थी। उसने भी महाराज और दक्शिनाप्थेश्वर की उपाधि धारण की जिसका उल्लेख अमरावती लेक में मिलता है आन्ध्र प्रदेश पर विजय प्राप्त करने के बाद इसे प्रथम आन्ध्र सम्राट कहा गया।

वशिष्ठिपुत्र सातकर्णि (Vashishtiputra Satakarni):

वशिष्ठिपुत्र सातकर्णि सातवाहन वंश के राजा थे जिन्होंने द्वितीय शताब्दी में दख्खन क्षेत्र पर शासन किया। वे वशिष्ठिपुत्र श्री पुलमावी के भाई थे जो महान सातवाहन विजेता गौतमीपुत्र सतकामी के पुत्र थे। वशिष्ठिपुत्र सातकर्णि का राज्यकाल अलग-अलग अनुमानित किये जाते हैं। कुछ शोध उनके शासनकाल को जैसे 38-145 ई के बीच पाते हैं, तथा अन्य के अनुसार यह काल 158-165 ई तक था।

सातवाहन वंश का कालक्रम (Chronology of Satavahana Dynasty):

इतिहासकारों द्वारा सातवाहन राजाओं के पुनर्निर्माण दो श्रेणियों में आते हैं। पहले एक के अनुसार, मौर्य साम्राज्य के पतन के तुरंत बाद सिमुक के शासन से शुरू होकर, 30 सतवाहन राजाओं ने लगभग 450 वर्षों तक शासन किया। यह दृश्य पुराणों पर बहुत निर्भर करता है, पुनर्निर्माण की दूसरी (और अधिक व्यापक रूप से स्वीकृत) श्रेणी के अनुसार, सातवाहन शासन पहली शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ था। इस श्रेणी के कालक्रम में राजाओं की एक छोटी संख्या होती है, और पुराणिक अभिलेखों को पुरातात्विक, संख्यात्मक और पाठ्य प्रमाणों के साथ जोड़ा जाता है।

सातवाहन साम्राज्य की स्थापना तिथि के बारे में अनिश्चितता के कारण, सातवाहन राजाओं के शासनकाल के लिए पूर्ण तिथियां देना मुश्किल है। इसलिए, कई आधुनिक विद्वान ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित सातवाहन राजाओं के शासनकाल के लिए पूर्ण तारीखों को निर्दिष्ट नहीं करते हैं, और जो एक दूसरे के साथ बहुत भिन्न होते हैं।

अन्य राजा:

हाल (20 ई0पू0 - 24 ई0पू0)

हाल सातवाहनों का अगला महत्पूर्ण शासक था। यद्यपि उसने केवल चार वर्ष ही शासन किया तथापि कुछ विषयों उसका शासन काल बहुत महत्वपूर्ण रहा। ऐसा माना जाता है कि यदि आरम्भिक सातवाहन शासकों में शातकर्णी प्रथम योद्धा के रूप में सबसे महान था तो हाल शांतिदूत के रूप में अग्रणी था। हाल साहित्यिक अभिरूचि भी रखता था तथा एक कवि सम्राट के रूप में प्रख्यात हुआ। उसके नाम का उल्लेख पुराण, लीलावती, सप्तशती, अभिधान चिन्तामणि आदि ग्रन्थों में हुआ है। यह माना जाता है कि प्राकृत भाषा में लिखी गाथा सप्तशती अथवा सतसई (सात सौ श्लोकों से पूर्ण) का रचियता हाल ही था। बृहदकथा के लेखक गुणाढ्य भी हाल का समकालीन था तथा कदाचित पैशाची भाषा में लिखी इस पुस्तक की रचना उसने हाल ही के संरक्षण में की थी। कालानतर में बुद्धस्वामी की बृहदकथा‘यलोक-संग्रह, क्षेमेन्द्र की बृहदकथा-मंजरी तथा सोमदेव की कथासरितसागर नामक तीन ग्रन्थों की उत्पति गुणाढ्य की बृहदकथा से ही हुई।

महेन्द्र सातकर्णि:

राजा हाल के बाद क्रमशः पत्तलक, पुरिकसेन, स्वाति और स्कंदस्याति सातवाहन साम्राज्य के राजा हुए। इन चारों का शासन काल कुल 51 वर्ष था। राजा हाल ने 16 ई. से शुरू कर 21 ई. तक पाँच साल राज्य किया था। स्कंदस्याति के शासन का अन्त 72 ई. में हुआ। पर इतना निश्चित है, कि इनके समय में सातवाहन साम्राज्य अक्षुण्ण रूप में बना रहा। स्कंदस्याति के बाद महेन्द्र सातकर्णि राजा बना। *'परिप्लस आफ़ एरिथियन सी' के ग्रीक लेखक ने भी इसी महेन्द्र को 'मंबर' के नाम से सूचित किया है। प्राचीन पाश्चात्य संसार के इस भौगोलिक यात्रा-ग्रंथ में भरुकच्छ के बन्दरगाह से शुरू करके 'मंबर' द्वारा शासित 'आर्यदेश' का उल्लेख मिलता है।

सातवाहन वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:

  • कण्‍व वंश के अन्तिम शासक सुशर्मा की हत्‍या करके सिमुक ने सातवाहन वंश की स्‍थापना 28 ई० में की थी।
  • सिमुक को सिंधुक, शिशुक, शिप्र‍क, तथा बृषल भी कहा जाता है।
  • सिमुक के बाद उसका छोटा भाई कृष्‍ण राजगद्दी पर बैठा था।
  • सातवाहन वंश के प्रमुख शासक सिमुक, शातकर्णी, गौतमी पुत्र शातकर्णी, वाशिष्‍ठी पुत्र पुलुमावी तथा यज्ञ श्री शातकर्णी आदि थे।
  • शातकर्णी प्रथम ने शातकर्णी सम्राट, दक्खिनापथपति तथा अप्रतिहतचक्र की उपाधियॉ धारण की थी।
  • सातवाहन वंंश का सर्वश्रेष्‍ठ शासक गौतमी का पुत्र शातकर्णी था।
  • वेणकटक नामक नगर की स्‍थापना गौतमी का पुत्र शातकर्णी ने की थी।
  • सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत थी।
  • सातवाहनवंशी राजकुमारों को कुमार कहा जाता था।
  • सातवाहन काल में सरकारी आय केे महत्‍वपूर्ण साधन भूमिकर, नमक कर, तथा न्‍याय शुल्‍क कर था।
  • सातवाहन काल में तीन प्रकार के सामंत महारथी, महाभोज तथा महासेनापति थे।
  • इस काल में तॉबे तथा कॉसे के अलावा सीसे के सिक्‍के काफी प्र‍चलित हुऐ।
  • सातवाहन काल में मुख्‍य रूप से दो धार्मिक भवनो का निर्माण काफी संख्‍या में हुआ - चैत्‍य अर्थात बौद्ध मंदिर और बौद्ध भिक्षुुओं का निवास स्‍थान।
  • सातवाहन काल में व्‍यापारी को नैगम कहा जाता था।
  • व्‍यापारियों के काफिले के प्र‍मुख को सार्थवाह कहा जाता था।
  • सातवाहनोंं ने ब्राह्मणों को सर्वप्रथम भूमिदान एवं जागीर देने की प्रथा का आरम्‍भ किया था।

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  Last update :  Tue 13 Sep 2022
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