तक्षशिला रावलपिंडी संक्षिप्त जानकारी
स्थान | रावलपिंडी जिला, पंजाब, पाकिस्तान |
निर्माणकाल | 1000 ईसा पूर्व |
प्रकार | पुरातात्विक स्थल |
स्थान की खोज | 19वीं शताब्दी के मध्य |
प्रथम खोजकर्ता | सर अलेक्जेंडर कनिंघम |
यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल | 1980 ई॰ में |
तक्षशिला रावलपिंडी का संक्षिप्त विवरण
तक्षशिला रावलपिंडी जिला, पंजाब पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है। तक्षशिला का शाब्दिक अर्थ “कटे हुए पत्थर का शहर” या “तक्षक चट्टान”। इसे प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल माना जाता है क्योंकि यह दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक रहा था।
तक्षशिला रावलपिंडी का इतिहास
इतिहासकारों और पुरातात्विभाग के अनुसार तक्षशिला लगभग नवपाषाण युग में बसाया गया था। क्योंकि तक्षशिला के खंडरों में लगभग 3360 ईसा पूर्व तक की डेटिंग प्राप्त हुई है। और साथ में हड़प्पा काल के भी कुछ अवशेष प्राप्त हुए हैं। तक्षशिला में हुए एक पुरातात्विक उत्खनन से पता चलता है कि 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में फारसी अचमेनिद साम्राज्य के शासन के दौरान शहर में काफी वृद्धि हुई होगी, क्योंकि अलेक्जेंडर के साथ आए यूनानी इतिहासकारों ने तक्षशिला को “समृद्ध और शासित” बताया था।
तक्षशिला रावलपिंडी के रोचक तथ्य
- तक्षिशिला की खोज सर्वप्रथम 19वीं शताब्दी के मध्य सर अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी।
- तक्षशिला की खोज के बाद 1980 ई॰ में इसे युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया था। जिसके बाद इसे 2006 में द गार्जियन अखबार ने पाकिस्तान के शीर्ष पर्यटन स्थल के रूप में इसे स्थान दिया था।
- ग्लोबल हेरिटेज फंड द्वारा 2010 की एक रिपोर्ट में तक्षशिला को दुनिया भर की 12 ऐसी साइटों में से एक के रूप में पहचाना गया, जोकि अपर्याप्त प्रबंधन, विकास के दबाव, लूटपाट और युद्ध और संघर्ष को प्राथमिक खतरों के रूप में, अपूरणीय क्षति और "द वेज" के रूप में दर्ज किया गया है।
- तक्षशिला को ग्लोबल हेरिटेज में शामिल करने पर पाकिस्तान की सरकार ने भी महत्वपूर्ण संरक्षण के प्रयास किए गए हैं जिसके परिणामस्वरूप इस ऐतिहासिक स्थल को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों द्वारा "अच्छी तरह से संरक्षित" घोषित किया गया है।
- तक्षशिला एक व्यापक संरक्षण प्रयासों और रखरखाव के कारण, एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो हर साल दस लाख पर्यटकों को आकर्षित करता है।
- तक्षशिला को पहले "कट स्टोन का शहर" कहा जाता था। परंतु यूनानियों ने इस शहर का नाम तक्षशिला कर दिया था।
- तक्षशिला को रामायण के संदर्भ में वैकल्पिक रूप से "रॉक ऑफ तक्षक" के रूप में भी अनुवादित किया जा सकता है, जिसमें यह कहा गया है कि शहर का नाम भरत के पुत्र और पहले शासक तक्षक के सम्मान में रखा गया था।
- तक्षशिला का हिंदू संस्कृति और संस्कृत भाषा पर बहुत प्रभाव था और यह चाणक्य के संबंध में भी रहा उन्हे तक्षशिला में कौटिल्य के नाम से जाना जाता था। इन्हें अर्थशास्त्र का ज्ञान तक्षशिला में ही हुआ था।
- पाणिनि भी तक्षशिला समुदाय का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने व्याकरणिक नियमों को संहिताबद्ध किया था और शास्त्रीय संस्कृत को परिभाषित किया था।
- तक्षशिला में पहली बार खुदाई जॉन मार्शेल द्वारा की गई थी जिन्होंने 1913 ई॰ से 1933 ई॰ तक बीस साल की अवधि तक तक्षशिला में खुदाई का काम किया था और यह खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संस्थापक और पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम के आदेशानुसार की गई थी।
- वर्तमान में तक्षशिला को धर्मराजिका स्तूप, जूलियन मठ और मोहरा मुरादु मठ सहित बौद्ध धार्मिक स्मारकों के संग्रह के लिए भी जाना जाता है।
- तक्षशिला के मुख्य खंडों में चार प्रमुख शहर शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक तीन अलग-अलग स्थलों पर एक अलग समय अवधि से संबंधित है।
- तक्षशिला में सबसे पहली बस्ती हाथियाल खंड में पाई जाती है, जिसमें मिट्टी के बर्तनों की पैदावार होती थी जोकि दूसरी शताब्दी से 6वीं शताब्दी तक मौजूद थी।
- तक्षशिला में प्राप्त सिरकाप के खंडहर दूसरी बस्ती का रूप हैं, जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के हैं, और इस क्षेत्र को ग्रीको-बैक्ट्रियन राजाओं द्वारा बनाया गया था जिन्होंने 326 ईसा पूर्व में सिकंदर महान के आक्रमण के बाद इस क्षेत्र में शासन किया था।
- तक्षशिला में मिली तीसरी हालिया बस्ती सिरसुख की है, जिसे कुषाण साम्राज्य के शासकों द्वारा बनाया गया था।
- तक्षशिला राजनीति और शस्त्रविद्या की शिक्षा का उत्तम केंद्र था, वहाँ के एक शस्त्रविद्यालय में विभिन्न राज्यों के 103 राजकुमार पढ़ते थे।आयुर्वेद और विधिशास्त्र के वहाँ विशेष विद्यालय थे।
- तक्षशिला के पाठयक्रम में आयुर्वेद, धनुर्वेद, हस्तिविद्या, त्रयी, व्याकरण, दर्शनशास्त्र, गणित, ज्योतिष, गणना, संख्यानक, वाणिज्य, सर्पविद्या, तंत्रशास्त्र, संगीत, नृत्य और चित्रकला आदि के लिए मुख्य स्थान था। इसकी सबसे बड़ी विशेषता थी, वहाँ पढ़ाए जानेवाले शास्त्रों में लौकिक शस्त्रों की श्रेष्ठता और उत्तमता का भरपूर ज्ञान था।
- तक्षशिला के लिए कुछ विद्वानों का मत है की वह विद्या का ऐसा केंद्र था जहाँ अलग-अलग छोटे-छोटे गुरुकुल होते और व्यक्तिगत रूप से विभिन्न विषयों के आचार्य आगंतुक विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे। परंतु उस समय के गुरुकुलों पर गुरुओं के अतिरिक्त अन्य किसी अधिकारी अथवा केंद्रीय संस्था का कोई नियंत्रण नहीं होता था।