इस अध्याय के माध्यम से हम जानेंगे हरगोविन्द खुराना (Har Gobind Khorana) से जुड़े महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्य जैसे उनकी व्यक्तिगत जानकारी, शिक्षा तथा करियर, उपलब्धि तथा सम्मानित पुरस्कार और भी अन्य जानकारियाँ। इस विषय में दिए गए हरगोविन्द खुराना से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित किया गया है जिसे पढ़कर आपको प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में मदद मिलेगी। Har Gobind Khorana Biography and Interesting Facts in Hindi.
हरगोविन्द खुराना के बारे में संक्षिप्त जानकारी
नाम | हरगोविन्द खुराना (Har Gobind Khorana) |
जन्म की तारीख | 09 जनवरी 1922 |
जन्म स्थान | रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) |
निधन तिथि | 09 नवम्बर 2011 |
माता व पिता का नाम | एस्थर / लाला गणपतराय |
उपलब्धि | 1968 - चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के प्रथम व्यक्ति |
पेशा / देश | पुरुष / वैज्ञानिक / भारत |
हरगोविन्द खुराना (Har Gobind Khorana)
डॉ. हरगोविंद खुराना एक भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक थे, जिन्हें सन 1968 में प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का प्रदर्शन करने के लिए चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हें यह पुरस्कार साझा तौर पर दो और अमेरिकी वैज्ञानिकों के साथ दिया गया।
हरगोविन्द खुराना का जन्म
हरगोविन्खुद खुराना का जन्म 09 जनवरी 1922 रायपुर, ब्रिटिशकालीन भारत में, एक ग़रीब परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम कृष्णा देवी खुराना और पिता का नाम गणपत राय खुराना था। इनके पिता एक वकील थे| ये अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे।
हरगोविन्द खुराना का निधन
हर गोबिंद खुराना का 9 नवंबर 2011 को कॉनकॉर्ड, मैसाचुसेट्स में 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी पत्नी, एस्थर और बेटी, एमिली ऐनी की पहले मृत्यु हो गई थी, लेकिन खोराना उनके अन्य दो बच्चों से बच गए थे। जूलिया एलिजाबेथ ने बाद में एक प्रोफेसर के रूप में अपने पिता के काम के बारे में लिखा: "यह सब अनुसंधान करते हुए भी, वह हमेशा छात्रों और युवा लोगों में शिक्षा में रुचि रखते थे।"
हरगोविन्द खुराना की शिक्षा
उन्होंने डी.ए.वी. पश्चिम पंजाब के मुल्तान में हाई स्कूल (दयानंद आर्य समाज हाई स्कूल जिसे अब मुस्लिम हाई स्कूल कहा जाता है)। बाद में, उन्होंने छात्रवृत्ति की सहायता से लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय में अध्ययन किया, जहां उन्होंने 1943 में स्नातक की डिग्री और 1945 में मास्टर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की।
हरगोविन्द खुराना का करियर
हरगोविन्द खुराना जब इंग्लैंड से शिक्षा ग्रहण करके भारत आए तो इन्हें कोई अपने योग्य कोई काम नहीं मिला। तो निराश होकर दौबरा इंग्लैंड चले गए जहां इन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सदस्यता मिली और लार्ड टाड के साथ कार्य करने का अवसर मिला। जिसके बाद सन् 1952 में हरगोविन्द कनाडा की ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद् के जैव रसायन विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। सन् 1960 में इन्होंने संयुक्त राज्य अमरीका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑव एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर का पद पाया। जिसके बाद उन्होंनेअमरीकी नागरिकता स्वीकार कर ली। हरगोविन्द लंबे समय तक जीव कोशिकाओं के नाभिकों की रासायनिक संरचना के अध्ययन में लगे रहे। नाभिकों के नाभिकीय अम्लों के संबंध में खोज दीर्घकाल से हो रही थी, पर डाक्टर खुराना की विशेष पद्धतियों से वह संभव हुआ। इनके अध्ययन का विषय न्यूक्लिऔटिड नामक उपसमुच्चर्यों की अतयंत जटिल, मूल, रासायनिक संरचनाएँ हैं। डाक्टर खुराना इन समुच्चयों का योग कर महत्व के दो वर्गों के न्यूक्लिप्रोटिड इन्जाइम नामक यौगिकों को बनाने में सफल हुये। डॉ॰ खुराना ग्यारह न्यूक्लिऔटिडों का योग करने में सफल हो गए थे तथा अब वे ज्ञात शृंखलाबद्ध न्यूक्लिऔटिडोंवाले न्यूक्लीक अम्ल का प्रयोगशाला में संश्लेषण करने में सफल हुये इस सफलता से ऐमिनो अम्लों की संरचना तथा आनुवंशिकीय गुणों का संबंध समझना संभव हो गया है और वैज्ञानिक अब आनुवंशिकीय रोगों का कारण और उनको दूर करने का उपाय ढूँढने में सफल हो सकेंगे। बता दे की हरगोविन्द खुराना प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का प्रदर्शन करने वाले वह पहले थे।
हरगोविन्द खुराना के पुरस्कार और सम्मान
डाक्टर खुराना की प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका सफलता के लिए इस महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें अन्य दो अमरीकी वैज्ञानिकों के साथ सन् 1968 का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। लेकिन इस से पहले सन् 1958 में कनाडा के केमिकल इंस्टिटयूट से मर्क पुरस्कार मिला से सम्मानित किया गया था तथा इसी वर्ष न्यूयार्क के राकफेलर इंस्ट्टियूट में वीक्षक (visiting) प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् 1959 में ये कनाडा के केमिकल इंस्ट्टियूट के सदस्य निर्वाचित हुए तथा सन् 1967 में होनेवाली जैवरसायन की अंतरराष्ट्रीय परिषद् में आपने उद्घाटन भाषण दिया। डॉ॰ निरेनबर्ग के साथ पचीस हजार डालर का लूशिया ग्रौट्ज हॉर्विट्ज पुरस्कार भी सन् 1968 में ही मिला है। Google ने pechele वर्ष 9 जनवरी 2018 में उनकी 96 वीं जयंती पर उन्हें याद करते हुए और उनके कार्यों का सम्मान करते हुए उनकी याद में गूगल डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया था।
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