सिरी फोर्ट संक्षिप्त जानकारी
स्थान | नई दिल्ली (भारत) |
निर्माण | 1303 ई. |
निर्माता | खिलजी राजवंश |
प्रकार | किला |
सिरी फोर्ट का संक्षिप्त विवरण
भारत की राजधानी नई दिल्ली अपनी राजनैतिक गतिविधियों के लिए पूरे विश्वभर में विख्यात है। नई दिल्ली न केवल अपनी राजनीति के लिए प्रसिद्ध है अपितु यह अपने यहाँ के रोचक इतिहास और ऐतिहासिक स्मारको के लिए भी पूरी दुनिया में जानी जाती है। भारतीय राजधानी नई दिल्ली में स्थित सीरी किला भारत के सबसे पुराने किलो में एक है जिसके अवशेष आज भी यहाँ पर देखे जा सकते है।
सिरी फोर्ट का इतिहास
अलाउद्दीन खिलजी को “खिलजी वंश” का सबसे बड़ा सम्राट माना जाता है क्यूंकि इन्होने ही अपना प्रभुत्व दक्षिणी भारत में बढ़ाया था और दिल्ली में सिरी नामक दूसरे शहर की स्थापना की थी। अलाउद्दीन खिलजी ने इस किले का निर्माण में 13वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत को मंगोलो के हमलों से बचाने के लिए किया था।
पश्चिम एशिया में लगातार बढ़ते मंगोलो के प्रभाव के कारण सेल्जूको ने दिल्ली में अलाउद्दीन खिलजी से शरण मांगी थी जिसे खिलजी ने स्वीकृति भी प्रदान कर दी थी। सेल्जूक राजवंश के शिल्पकारों को ही दिल्ली में इस युग के स्थापत्य स्मारकों को बनाने का श्रेय दिया जाता है।
13वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक मंगोल जनरल तर्गी ने सिरी किले को चारो ओर से घेर लिया जिस कारण अलाउद्दीन ने भारत से पीछे हटना शुरू कर दिया था परंतु तर्गी सिरी किले की किलेबंदी में प्रवेश नहीं कर सका अंत में वह मध्य एशिया में अपने राज्य में वापस लौट गया जिस कारण अलाउद्दीन खिलजी का शासन चलता रहा और इसके कुछ समय बाद ही अलाउद्दीन की सेना ने अमरोहा में मंगोलों को निर्णायक रूप से हराया था। इस घटना के कुछ दशको बाद ही दिल्ली में चल रहे दिल्ली सल्तनत के शासन को तैमूर वंश ने उखाड़ने की कोशिश की जिसमे वह सफल हो गया था
सिरी फोर्ट के रोचक तथ्य
- इस भव्य और ऐतिहासिक किले का निर्माण लगभग 1303 ई. में खिलजी राजवंश के प्रसिद्ध शासक अलाउद्दीन खिलजी ने करवाया था।
- वर्ष 1297- 1307 के मध्य अलाउद्दीन खिलजी ने सीरी शहर की स्थापना दिल्ली सल्तनत को मंगोलो से बचाने के लिए की थी।
- वर्ष 1303 ई. में इस क्षेत्र पर एक बहुत बड़ी विपदा आ खड़ी हुई थी मंगोल साम्राज्य के जनरल तर्गी ने इस किले को घेर लिया था लेकिन किले की बाहरी सुरक्षा दीवार काफी मजबूत होने के कारण वह किले में प्रवेश नही कर पाए और वापस अपने घर लौट गये थे।
- वर्ष 1303 ई. वाली घटना के 3 साल बाद ही वर्ष 1306 ई. में अलाउद्दीन की सेना ने इसके नेतृत्व में अमरोहा नामक स्थान पर मंगोलों के खिलाफ एक युद्ध छेड़ दिया जिसमे अलाउद्दीन खिलजी की सेना काफी अच्छे तरीके से जीती थी।
- सीरी को 13वीं शताब्दी तक “दारुल खिलफत” और "कैलिफोट की सीट" के नाम से भी जाना जाता था।
- वर्ष 1398 ई में दिल्ली सल्तनत पर हमला करने वाले मंगोल वंश के शासक तैमुर ने अपने संस्मरणों में इसे "सिरी एक गोल शहर” कहकर संबोधित किया था।
- एक लोककथा के अनुसार इस किले को सीरी नाम 1306 ई. में हुये युद्ध के नाम पर दिया गया था, ऐसा माना जाता है की इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी ने लगभग 8,000 से अधिक मंगोल सैनिकों की हत्या कर उनके सर को इसे किले के आधार में दबवा दिया था।
- यह किला दिल्ली के पास स्थित कुतुब मीनार के उत्तर-पूर्व से मात्र 5 कि.मी. की दुरी पर स्थित है।
- यह किला भारत के सबसे विशालका्य किलो में से एक था, जोकि लगभग 1.7 वर्ग कि.मी. के क्षेत्रफल में फैला हुआ था।
- कुछ इतिहासकारों द्वारा ऐसा माना जाता है कि यह पहला ऐसा शहर था जो मुसलमानों द्वारा अंडाकार आकार में बनाया गया था।
- एक दंतकथाओ के अनुसार इस किले और शहर की संरचना एक योजना के अनुसार अंडाकार आकार में की गई थी, जिसमे लगभग 70,000 से अधिक श्रमिक इस शहर में स्थित किले के निर्माण में लगे हुये थे।
- इस किले का जब निर्माण किया गया था तो इसमें लगभग 7 प्रवेश द्वार बनाये गये थे जिनमे से आज केवल दक्षिण-पूर्व में स्थित द्वार ही मौजूद है।
- ऐसा माना जाता है की इस किले के भीतर स्थित महल में लगभग 1000 से अधिक खंभे स्थित थे जिस कारण इसे “हज़ार सुतन” भी कहा जाता था।
- वर्तमान में यह किला एक खंडहर बन चूका है जिसके पूर्वी हिस्से में एक ज्वाला के आकार की संरचना मौजूद है जिसमे तीर के उपयोग लिए लूप छेद, और बुर्जों के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
- इस किले का एक छोटा हिस्सा “तोहफवाला गुंबद मस्जिद” है जिसका केंद्र गुंबददार है, यह संरचना खिलजी वास्तुकला का काफी उचित प्रतिनिधित्त्व करती है।
- इस किले को जल प्रदान करने के लिए “हौज खास” जैसी संरचना को बनाया गया था, इसके अतिरिक्त और भी संरचनाये बनाई जा रही थी जिसमे कुतुबुल-इस्लाम मस्जिद और कुतुब मीनार के ऊपर एक और मीनार सम्मिलित है परंतु दुर्भाग्यपूर्ण ये संरचानाये अधूरी ही बनी क्यूंकि वर्ष 1316 ई में अलाउद्दीन की मृत्यु हो गई थी।
- इस किले को नष्ट करने का काम स्थानीय लोगो और शेर शाह सूरी जैसे शासको ने किया था, बाकी जो संरचनाएं बची थी उन्हें पुरातत्वविदों द्वारा अनजाने में 1982 में आयोजित एशियाई खेलो के लिए स्टेडियम बनाने में दबा दिया गया था।
- साल 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन से पहले ही प्राचीन स्मारकों को सुंदर बनाने का काम पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने शुरू कर दिया था, जिसके कारण किले की बची हुई दीवारो और आदि चीजो को पुन: बनाया जाने लगा था। इस काम को पूरा करने में सरकार को लगभग 1 करोड़ रूपये खर्च करने पड़े थे।