भारत की पंचवर्षीय योजनाएँ:
भारत की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा, भारत के योजना आयोग द्वारा विकसित, कार्यान्वित और इसकी देख रेख मे चलने वाली पंचवर्षीय योजनाओं पर आधारित है। प्रधानमंत्री के योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष पद के साथ, आयोग का एक मनोनीत उपाध्यक्ष भी होता है जिसका ओहदा, एक कैबिनेट मंत्री के बराबर होता है। मोंटेक सिंह अहलूवालिया आयोग के अंतिम उपाध्यक्ष थे (26 मई 2014 को इस्तीफा दे दिया)। बारहवीं योजना का कार्यकाल मार्च 2017 में पूरा हो गया। चौथी योजना से पहले, राज्य संसाधनों का आवंटन पारदर्शी और उद्देश्य तंत्र के बजाय योजनाबद्ध पैटर्न पर आधारित था, जिसके कारण 1969 में गडगिल फॉर्मूला अपनाया गया था।
योजना के अंतर्गत सरकार द्वारा 12वी पंचवर्षीय योजना जारी है। 1951 में भारत में पहली पंचवर्षीय योजना शुरू की गई थी और 2017 में 12वी अंतिम पंचवर्षीय परियोजना हुई। इसके बाद मोदी सरकार द्वारा इन योजनाओ को बनाना बंद कर दिया है।
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का इतिहास:
आज़ादी के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने समाजवादी आर्थिक मॉडल को आगे बढ़ाया। जवाहरलाल नेहरू ने अनेक महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णय लिए जिनमें पंचवर्षीय योजना की शुरुआत भी थी। सन् 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना की नींव डाली गई और योजना आयोग का गठन किया। जवाहरलाल नेहरू ने 8 दिसंबर, 1951 को संसद में पहली पंचवर्षीय योजना को पेश किया था और उन्होंने उस समय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लक्ष्य 2.1 फ़ीसदी निर्धारित किया था।
भारत की पंचवर्षीय पंचवर्षीय योजनाओं की सूची:
पंचवर्षीय योजना | अवधि | प्राथमिक क्षेत्र | लक्ष्य की दर | वृद्धि दर |
पहली योजना | 1951-56 | कृषि, बिजली, सिंचाई | 2.1 | 3.6 |
दूसरी योजना | 1956-61 | पूर्ण उद्योग | 4.5 | 4.2 |
तीसरी योजना | 1961-66 | खाद्य, उद्योग | 5.6 | 2.8 |
चौथी योजना | 1969-74 | कृषि | 5.7 | 3.2 |
पांचवें योजना | 1974-79 | गरीबी उन्मूलन, आर्थिक आत्मनिर्भरता | 4.4 | 5 |
छठी योजना | 1980-85 | कृषि, उद्योग | 5.2 | 5.5 |
सातवीं योजना | 1985-90 | ऊर्जा, खाद्य | 5 | 6 |
आठवीं पंचवर्षीय योजना | 1992-97 | मानव स्रोत, शिक्षा | 5.6 | 6.6 |
नौवीं योजना | 1997-02 | सामाजिक न्याय | 6.5 | 5.4 |
दसवीं पंचवर्षीय योजना | 2002-07 | रोजगार, ऊर्जा | 8.1 | 7.6 |
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना | 2007-12 | समावेशी विकास | 8 | 7.9 |
बारह्वी योजना | 2012-17 | त्वरित, और समावेशी विकास | 8 | 8 |
पहली पंचवर्षीय योजना (1951-1956):
पहली पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- शरणार्थियों का पुनर्वास।
- खाद्यान्नों के मामले में कम से कम सम्भव अवधि में 3. आत्मनिर्भरता प्राप्त करना और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करना।
- इसके साथ- साथ इस योजना में सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया आरम्भ की गयी, जिससे राष्ट्रीय आय के लगातार बढ़ने का आश्वासन दिया जा सके।
- इस योजना में कृषि को प्राथमिकता दी गयी।
- इसी पंचवर्षीय योजना के दौरान पाँच इस्पात संयंत्रों की नींव रखी गई। अधिकतर पंचवर्षीय योजनाओं में किसी न किसी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई।
दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961):
दूसरी पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- विशेष रूप से भारी उद्योग, जो मुख्य रूप से कृषि पर ध्यान केंद्रित के विपरीत था, औद्योगिक उत्पादों के घरेलू उत्पादन को द्वितीय योजना में प्रोत्साहित किया गया था।
- सार्वजनिक क्षेत्र के विकास में 1953 में भारतीय सांख्यिकीविद् प्रशांत चन्द्र महलानोबिस द्वारा विकसित मॉडल का पालन किया।
- योजना के उत्पादक क्षेत्रों के बीच निवेश के इष्टतम आबंटन निर्धारित क्रम में करने के लिए लंबे समय से चलाने के आर्थिक विकास को अधिकतम करने का प्रयास किया।
- यह आपरेशन अनुसंधान और अनुकूलन के कला तकनीकों के प्रचलित राज्य के रूप में के रूप में अच्छी तरह से भारतीय सांख्यिकी संस्थान में विकसित सांख्यिकीय मॉडल के उपन्यास अनुप्रयोगों का इस्तेमाल किया
- योजना एक बंद अर्थव्यवस्था है, जिसमें मुख्य व्यापारिक गतिविधि आयात पूंजीगत वस्तुओं पर केंद्रित होगा।
- भारत में दूसरी पंचवर्षीय योजना के तहत आवंटित कुल राशि 4800 करोड़ रुपए थी। यह राशि विभिन्न क्षेत्रों के बीच आवंटित की गया थी।
तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-1966):
तीसरी पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- तृतीय योजना ने अपना लक्ष्य आत्मनिर्भर एवं स्वयं - स्फूर्ति अर्थव्यवस्था की स्थापना करना रखा।
- इस योजना ने कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की, परंतु इसके साथ-साथ इसने बुनियादी उद्योगों के विकास पर भी पर्याप्त बल दिया जो कि तीव्र आर्थिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक था।
- कृषि व उद्योग दोनों के विकास को लगभग समान महत्व दिया गया। चीन (1962) और पाकिस्तान (1965) से युद्ध एवं वर्षा न होने के कारण यह योजना अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रही, जिसके कारण चौथी योजना तीन वर्ष के लिए स्थगित करके इसके स्थान पर तीन एक वर्षीय योजनाएँ लागू की गईं।
- वर्ष 1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से हुए युद्ध से पैदा हुई स्थिति, दो साल लगातार भीषण सूखा पड़ने, मुद्रा का अवमूल्यन होने, कीमतों में हुई वृद्धि तथा योजना उद्देश्यों के लिए संसाधनों में कमी होने के कारण 'चौथी योजना' को अंतिम रूप देने में देरी हुई।
- इसलिए इसका स्थान पर चौथी योजना के प्रारूप को ध्यान में रखते हुए 1966 से 1969 तक तीन वार्षिक योजनाएँ बनायी गयीं। इस अवधि को 'योजना अवकाश' कहा गया है।
- भारत का चीन (1962) और पाकिस्तान (1965) से युद्ध होने एवं वर्षा न होने के कारण तृतीय पंचवर्षीय योजना अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रही, जिसके कारण चौथी योजना तीन वर्ष के लिए स्थगित करके इसके स्थान पर तीन एक वर्षीय योजनाएँ लागू की गईं।
चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-1974):
चौथी पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- स्थिरता के साथ आर्थिक विकास तथा आत्मनिर्भरता की अधिकाधिक प्राप्ति।
- स्थिरता के साथ विकास लक्ष्य, कृषि विकास के लिए गहन कृषि विकास कार्यक्रम अपनाया गया, पीडीएस को संगठित किया गया।
- आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आयात प्रतिस्थापक को अधिक महत्त्व दिया गया। आर्थिक शक्ति के केंद्रीकरण को रोकने के लिए एमआरटीपी एक्ट व पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग स्थापित हुआ।
- चतुर्थ योजना में राष्ट्रीय आय की 5.7% वार्षिक औसत वृद्धि दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया, बाद में इसमें 'सामाजिक न्याय के साथ विकास' और 'ग़रीबी हटाओ' जोड़ा गया।
5वीं पंचवर्षीय योजना (1974-1979):
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- इस योजना में योजना आयोग का लक्ष्य ग़रीबी हटाओ, निर्धन वर्ग की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने के कार्यक्रम, परिवार नियोजन प्रभावी ढंग से लागू करना रहा।
- आत्मनिर्भरता की प्राप्ति के लिए वृद्धि की उच्च दर को बढ़ावा देने के अलावा आय का बेहतर वितरण और देशीय बचत दर में महत्त्वपूर्ण वृद्धि करने की नीति अपनायी गयी।
छठी पंचवर्षीय योजना(1980-1985):
छठी पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र में रोज़गार का विस्तार करना।
- जन- उपभोग की वस्तुएँ तैयार करने वाले कुटीर एवं लघु उद्योगों को बढ़ावा देना।
- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम द्वारा निम्नतम आय वर्गों की आय बढ़ाना।
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-1989):
सातवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- सातवीं योजना में खाद्यान्नों की वृद्धि, रोज़गार के क्षेत्रों का विस्तार एवं उत्पादकता को बढ़ाने वाली नीतियों एवं कार्यक्रमों पर बल देने का निश्चय किया गया।
- 1991 में आर्थिक सुधार के लिए आधार तैयार करने का काम किया, इसमें उत्पादक रोजगार की व्यवस्था की गयी।
- इसमें भारी तथा पूँजी प्रधान उद्योगों पर आधारित योजना के आधार पर कृषि, लघु और मध्यम उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया।
8वीं पंचवर्षीय योजना (1992-1997):
आठवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1992 से 1997 तक रहा। केन्द्र में राजनीतिक अस्थिरता के कारण 'आठवीं योजना' दो वर्ष देर से प्रारम्भ हुई। आठवीं योजना का विवरण उस समय स्वीकार किया गया, जब देश एक भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा था।
आठवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- भुगतान संतुलन का संकट
- बढ़ता हुआ ऋण भार
- लगातार बढ़ता बजट-घाटा
- बढ़ती हुई मुद्रास्फीति और
- उद्योग में प्रतिसार
9वीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002)
नौवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- नौवीं पंचवर्षीय योजना में विकास का 15 वर्षीय परिप्रेक्ष्य शामिल किया गया।
- नौवी योजना में सकल राष्ट्रीय उत्पाद के 6.5 प्रतिशत के लक्ष्य के विरूद्ध वास्तविक उपलब्धि केवल 5.4 प्रतिशत रही। अत: नौवी योजना अपने सकल राष्ट्रीय उत्पाद वृद्धि के लक्ष्य को प्राप्तं करने में विफल रही।
- नौवी योजना में कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर के 3.9 प्रतिशत के लक्ष्य के विरूद्ध वास्तविक उपलब्धि केवल 2.1 प्रतिशत रही।
- विनिर्माण क्षेत्र के भी उपलब्धि 3.9 प्रतिशत रही, जबकि इसका लक्ष्य 8.2 प्रतिशत था।
- नौवी योजना के 14.5 प्रतिशत के निर्यात लक्ष्य के विरूद्ध योजना के पाँच वर्षों के दौरान निर्यात की औसत वार्षिक वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रही। इसी प्रकार आयात के 12.2 प्रतिशत के विरूद्ध उपलब्धि केवल 6.6 प्रतिशत रही।
10वीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007):
दसवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- दसवीं पंचवर्षीय योजना में पहली बार राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर राज्यवार विकास दर निर्धारित की गयी।
- इसके साथ ही पहली बार आर्थिक लक्ष्यों के साथ-साथ सामाजिक लक्ष्यों पर भी निगरानी की व्यवस्था की गयी।
- योजना काल के दौरान जी. डी. पी. में वृद्धि दर 8 प्रतिशत पहुँचाना।
- निर्धनता अनुपात को वर्ष 2007 तक कम करके 20 प्रतिशत और वर्ष 2012 तक कम करके 10 प्रतिशत तक लाना।
- वर्ष 2007 तक प्राथमिक शिक्षा की पहुँच को सर्वव्यापी बनाना।
- वर्ष 2001 और 2011 के बीच जनसंख्या की दसवर्षीय वृद्धि दर को 16.2 प्रतिशत तक कम करना।
- साक्षरता में वृद्धि कर इसे वर्ष 2007 तक 72 प्रतिशत और वर्ष 2012 तक 80 प्रतिशत करना।
- वर्ष 2007 तक वनों से घिरे क्षेत्र को 25 प्रतिशत और वर्ष 2012 तक 33 प्रतिशत बढ़ाना।
- वर्ष 2012 तक पीने योग्य पानी की पहुँच सभी ग्रामों में क़ायम करना।
- सभी मुख्य नदियों को वर्ष 2007 तक और अन्य अनुसुचित जल क्षेत्रों को वर्ष 2012 तक साफ़ करना।
11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012):
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- जीडीपी वृद्धि दर को 8% से बढ़ाकर 10% करना और इसे 12वीं योजना के दौरान 10% पर बरकार रखना ताकि 2016- 17 तक प्रति व्यक्ति आय को दोगुना किया जा सके।
- कृषि आधारित वृद्धि दर को 4% प्रतिवर्ष तक बढ़ाना।
- रोज़गार को 700 लाख नए अवसर पैदा करना।
- साक्षर बेरोज़गारी की दर को 5% से नीचे लाना।
- 2011 से 2012 तक प्राथमिक स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की दर में 2003-04 के 52.2% के मुकाबले 20% की कमी करना।
- 7 वर्षीय या अधिक के बच्चों व व्यक्तियों की साक्षरता दर को 85% तक बढ़ाना।
- प्रजनन दर को घटाकर 2.1 के स्तर पर लाना।
- बाल मृत्यु दर को घटाकर 28 प्रति 1000 व मातृ मृत्यु दर को '1 प्रति 1000' करना।
- 2009 तक सभी के लिए पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना।
- 0-3 वर्ष की आयु में बच्चों के बीच कुपोषण के स्तर में वर्तमान के मुकाबले 50% तक की कमी लाना।
- लिंग अनुपात को बढ़ाकर 2011-12 तक 935 व 2016-17 तक950 करना।
- सभी गाँवों तक बिजली पहुँचाना।
- नवंबर 2007 तक प्रत्येक गाँव में टेलीफोन सुविधा मुहैया कराना।
- देश के वन क्षेत्र में 5% की वृद्धि कराना।
- देश के प्रमुख शहरों में 2011-12 तक 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' के मानकों के अनुरूप वायु शुद्धता का स्तर प्राप्त करना।
- 2016-17 तक ऊर्जा क्षमता में 20% की वृद्धि करना।
12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017):
बारहवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य:
- योजना आयोग ने वर्ष 2012 से 2017 तक चलने वाली 12वीं पंचवर्षीय योजना में सालाना 10 फीसदी की आर्थिक विकास दर हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- वैश्विक आर्थिक संकट का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। इसी के चलते 11 पंचवर्षीय योजना में आर्थिक विकास दर की रफ्तार को 9 प्रतिशत से घटाकर 8.1 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है।
- सितंबर, 2008 में शुरू हुए आर्थिक संकट का असर इस वित्त वर्ष में बड़े पैमाने पर देखा गया है। यही वजह थी कि इस दौरान आर्थिक विकास दर घटकर 6.7 प्रतिशत हो गई थी। जबकि इससे पहले के तीन वित्त वर्षो में अर्थव्यवस्था में नौ फीसदी से ज्यादा की दर से आर्थिक विकास हुआ था।
- वित्त वर्ष 2009-10 में अर्थव्यवस्था में हुए सुधार से आर्थिक विकास दर को थोड़ा बल मिला और यह 7.4 फीसदी तक पहुंच गई।
- भारत सरकार ने चालू वित्त वर्ष में इसके बढ़कर 8.5 प्रतिशत तक होने का अनुमान लगाया।
अब संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें और देखें कि आपने क्या सीखा?
☞ भारत की पंचवर्षीय योजना से संबंधित प्रश्न उत्तर 🔗
यह भी पढ़ें:
- भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास, विशेषताएं, महत्वपूर्ण तथ्य 🔗
- भारत के मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज की सूची 🔗
- भारत के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री की सूची 🔗
- भारतीय मुद्रा, इतिहास, प्रयुक्त भाषाएँ एवं सभी नोट के महत्वपूर्ण तथ्य 🔗
भारतीय पंचवर्षीय योजना प्रश्नोत्तर (FAQs):
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1969 से 1974 तक रहा। जिसका मूल उद्देश्य: स्थिरता के साथ आर्थिक विकास तथा, और आर्थिक आत्मनिर्भरता की अधिकाधिक प्राप्ति। इसके अतिरिक्त चतुर्थ योजना में राष्ट्रीय आय की 5.7% वार्षिक औसत वृद्धि दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया, बाद में इसमें 'सामाजिक न्याय के साथ विकास' और 'ग़रीबी हटाओ' जोड़ा गया।
भारत ने पंचवर्षीय योजना भूतपूर्व सोवियत स्रामाजवादी गणतंत्र संघ से ग्रहण की थी। भारत ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समाजवादी प्रभाव के तहत स्वतंत्रता के तुरंत बाद 1951 में अपना पहली पंचवर्षीय योजना शुरू की थी।
प्रथम पंचवर्षीय योजना में भारत के विकास का प्राथमिक दायित्व सरकारी क्षेत्र को स्थानान्तरित कर दिया गया था। और पहली योजना हैराल्ड़-डोमर मॉडल पर आधारित थी।
पंचवर्षीय योजना के मसौदे का अनुमोदन अन्तिम रूप से राष्ट्रीय विकास परिषद करता है, जो बाबा साहब के आदर्शो को अपनाते हुए यह मानव-जीवन के सभी क्षेत्रों (संस्कृति, समाज, शिक्षा, नीति, अध्यात्म, राष्ट्रप्रेम आदि) में भारत के सर्वांगीण विकास के लिये समर्पित है।
प्रथम पंचवर्षीय योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता कृषि को दी गई थी। जिसमें सात व्यापक क्षेत्रों को आवंटित किया गया था: सिंचाई और ऊर्जा (27.2 प्रतिशत), कृषि और सामुदायिक विकास (17.4 प्रतिशत), परिवहन और संचार (24 प्रतिशत), उद्योग (8.4 प्रतिशत), सामाजिक सेवाओं के लिए (16.64 प्रतिशत), भूमि पुनर्वास (4.1 प्रतिशत) और अन्य क्षेत्रों और सेवाओं के लिए (2.5 प्रतिशत) थी।।