उद्योग किसे कहते हैं?
किसी विशेष क्षेत्र में या किसी बड़े स्थान पर भारी मात्रा में सामान का निर्माण/उत्पादन या वृहद रूप से सेवा प्रदान करने के मानवीय कर्म को उद्योग (industry) कहते हैं। बड़े - बड़े उद्योगों के कारण उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद सस्ते दामों पर प्राप्त होते है जिससे लोगों का रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है और जीवन सुविधाजनक होता चला जाता है।भारतीय उद्योग का इतिहास:
भारत औद्योगिक राष्ट्र नहीं हैं। यह मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र हैं। आजादी से पहले भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था। आधुनिक उद्योगों या बड़े उद्योगो की स्थापना भारत में 19वीं शताब्दी के मध्य शुरू हुई। जब कलकत्ता व मुम्बई में यूरोपीय व्यवसायियों या उद्योगों के द्वारा सूती वस्त्र उद्योगो की स्थापना हुईं। प्रथम विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप गुजरात में सूती वस्त्र, बंगाल में जूट की वस्तुयें, उड़ीसा व बंगाल में कोयला उद्योग, असम में चाय उद्योग का विशेष विकास हुआ। उस समय सूती वस्त्र के अलावा शेष सभी उद्योगों पर विदेशियों का अधिकार था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद लौह-इस्पात, सीमेंट, कागज, शक्कर, कांच, वस्त्र, चमड़ा उद्योगों में उन्नति हुई। दूसरे विश्वयुद्ध के समय भारत के ओद्यौगिक विकास के मार्ग में कई कठिनाईयां आयी जैसे:-- तकनीकी ज्ञान की कमी
- यातायात के साधनों की कमी
- बड़े उद्योगो को सरकार द्वारा हतोत्साहित करना।
भारत के प्रमुख उद्योग के प्रकार (Important Industries in India)
- लौह एवं इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry)
- सीमेन्ट उद्योग (Cement Industry)
- कोयला उद्योग (Coal Industry)
- पेट्रोलियम उद्योग (Petroleum Industry)
- कपड़ा उद्योग (Cloth Industry)
- रत्न एवं आभूषण उद्योग (Gems and Jewellery Industry)
- चीनी उद्योग (Sugar Industry)
1. लौह एवं इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry):
लौह इस्पात उद्योग को किसी देश के अर्थिक विकास की धुरी माना जाता है। भारत में इसका सबसे पहला बड़े पैमाने का कारख़ाना 1907 में झारखण्ड राज्य में सुवर्णरेखा नदी की घाटी में साकची नामक स्थान पर जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित किया गया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत इस पर काफ़ी ध्यान दिया गया और वर्तमान में 7 कारखानों द्वारा लौह इस्पात का उत्पादन किया जा रहा है। TISCO : Tata Iron & Steel Company limited, Jamshedpur) भारत का पहला सबसे बड़ा कारखाना जहां भारत का 20% इस्पात निर्मित होता हैं। इस उद्योग को बोकरो, जमशेदपुर, उड़ीसा से कोयला व लोहा प्राप्त होता हैं। इसकी स्थापना सन् 1907 में जमशेदजी टाटा द्वारा की गई थी। IISCO: Indian Iron Steel Company इसकी स्थापना सन् 1874 में की गई थी। यह भारत का सर्वाधिक लोहे की ढ़ुलाई करने वाला उद्योग हैं। बर्नपुर, हीरापुर, कुल्टी (पश्चिम बंगाल) में इसकी तीन इकाईयां हैं। भारत के प्रमुख इस्पात संयंत्रो के नाम और उनका स्थान:- राउरकेला इस्पात संयंत्र: इसकी स्थापना उड़ीसा में पश्चिम जर्मनी की सहायता से की गई थी।
- भिलाई लौह-इस्पात संयंत्र: इसकी स्थापना छत्तीसगढ़ में रूस की सहायता सें की गई थी।
- दुर्गापुर इस्पात संयंत्र: इसकी स्थापना पश्चिम बंगाल में ब्रिटेन की सहायता से की गई थी।
- बोकारो लौह-इस्पात कारखाना: इसकी स्थापना झारखण्ड में रूस की सहायता से की गई थी।
- विजयनगर इस्पात उद्योग: कर्नाटक में बेलारी जिले में।
- विशाखापट्टनम इस्पात उद्योग: आंध्रप्रदेश में।
- संलयन इस्पात उद्योग संयंत्र: तमिलनाडु में।
- दातेरी इस्पात उद्योग: उड़ीसा में।
2. एल्युमिनियम उद्योग (Aluminium Udyog)
ऐलुमिनियम उद्योग के अन्तर्गत बॉक्साइट की कच्ची धातु से इसका निर्माण किया जाता है। बॉक्साइट को गलाने के लिए बड़ी मात्रा में कोयले की आवश्यकता के कारण ऐलुमिनियम कारखाने उन्ही क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं, जहाँ दोनो खनिज साथ-साथ मिलते है। भारत में ऐलुमिनियम का पहला कारख़ाना 1937 मे जे.के. नगर में 'ऐलुमिनियम कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया' के नाम से स्थापित किया गया। भारत के ऐलुमिनियम उद्योग के प्रमुख कारखानों नाम और उनका स्थान:- इण्डियन एल्युमिनियम कम्पनी (सन् 1938):- बिहार स्थित में हैं।
- भारत एल्युमिनियम कम्पानी (BALCO):- छत्तीसगढ़ में कोरबा में स्थापित हैं।
- Hindalco:- उत्तर प्रदेश के रेनकूट में स्थित हैं।
- NALCO (1981) :- देश की सबसे बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई। इसकी 3 इकाईया मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश व उड़ीसा में हैं।
3. सीमेन्ट उद्योग (Cement Industry):
सीमेन्ट उद्योग का महत्त्वः वर्तमान में भारतीय सीमेन्ट उद्योग, विश्व में सीमेन्ट के उत्पादन में न केवल दूसरे स्थान पर है, बल्कि विश्वस्तरीय गुणवत्ता का सीमेन्ट भी उत्पादित करता है। सीमेन्ट उद्योग का प्रारंभ से अब तक की स्थितिः वर्ष 1904 में सर्वप्रथम मद्रास (अब चेन्नई) में भारत का पहला सीमेन्ट कारखाना खोला गया जो असफल रहा किंतु 1912–14 के मध्य 3 बड़े सीमेन्ट कारखाने खोले गएः- पोरबंदर (गुजरात)।
- कटनी (मध्य प्रदेश)।
- लाखेरी।
- 1991 में घोषित औद्योगिक नीति के अन्तर्गत सीमेन्ट उद्योग को लाइसेन्स मुक्त कर दिया गया।
- मार्च, 2011 के अन्त में देश में 166 बड़े सीमेन्ट संयंत्र है इसके अलावा देश में कुल 350 लघु सीमेन्ट संयंत्र भी है।
- वर्ष 2010–11 में सीमेन्ट और ईंट का निर्यात 40 लाख टन रहा।
- भारतीय सीमेन्ट ने बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल, मध्य पूर्व एशिया (Middle East Asia), म्यांमार, अफ्रीका, आदि देशों के बाजार में अपनी पहुंच बना ली है।
- भारत की सीमेन्ट कम्पनियां हैं: बिरला सीमेन्ट, जे-पी- सीमेन्ट, एसीसी सीमेन्ट और बांगर सीमेन्ट।
- पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश।
- भारत में प्राप्त कुल कोयले का 98% भाग गोंडवाना क्षेत्र से ही प्राप्त होता है।
- इस क्षेत्र से एन्थ्रेसाइट और बिटुमिनस किस्म के कोयले प्राप्त होते हैं।
- जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, तमिलनाडु, असम, मेघालय और उत्तर प्रदेश।
- भारत में प्राप्त कुल कोयले का 2% भाग टर्शियरी कोयला क्षेत्र से प्राप्त होता है।
- इस क्षेत्र से लिग्नाइट किस्म का कोयला प्राप्त होता है जिसे ‘भूरा कोयला’ भी कहते हैं।
- भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के अनुसार, ‘भारत में 1 अप्रैल, 2011 तक सुरक्षित कोयले का भंडार 285.87 अरब टन है।
- कोयला उद्योग में 800 करोड़ की पूंजी विनियोजित है तथा यह 7 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराता है।
- भारत में कोयले के सर्वाधिक भंडार वाले राज्य (जनवरी, 2008 के अनुसार) हैं—(1) झारखंड, (2) उड़ीसा,
- (3) छत्तीसगढ़, (4) पश्चिम बंगाल और (5) आंध्र प्रदेश।
- कोल इंडिया लि- (Coal India Ltd.—CIL): कोयले के कुल उत्पादन के लगभग 86% भाग पर नियंत्रण यह एक धारक कम्पनी है। इसके अधीन 7 कम्पनियां कार्यरत हैं।
- सिंगरैनी कोलारीज क- लि- (Singareni Collieries Company Ltd.—SCCL) यह आंध्र प्रदेश सरकार तथा केंद्र सरकार का संयुक्त उपक्रम (Joint venture) है।
- वर्ष 1956 तक भारत में केवल एक ही खनिज तेल उत्पादन क्षेत्र विकसित थी जो डिग्बोई असम में था। डिग्बोई के जिस तेल कुएं से तेल निकाला गया था वहां से आज भी तेल निकाला जा रहा है।
- वर्तमान में भारत असम, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, मुम्बई, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल के तटीय प्रदेशों तथा अंडमान एवं निकोबार से खनिज तेल प्राप्त करने का कार्य कर रहा है।
- भारत में तेल की खोज और इसके उत्पादन का काम व्यापक और व्यवस्थित रूप से 1956 में तेल और प्राकृतिक गैस आयोग (Oil and Natural Gas Commission—ONGC) के स्थापना के बाद प्रारंभ हुआ। इसी क्रम में ऑयल इंडिया लि- (Oil India Limited—OIL) सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी कम्पनी बन गई।
- वर्ष 1999 में केंद्र सरकार ने तेल एवं गैस की खोज एवं उत्खनन के लिए लाइसेंस प्रदान करने की नई नीति न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पॉलिसी तैयार की है।
- NELP के 9वें दौर के तहत 33 तेल ब्लाकों के लिए बोलियां लगाने की तिथि 15 अक्टूबर, 2010 से 18 मार्च, 2011 के दौरान सरकार द्वारा आमंत्रित की गई थी जिनमें से 16 ब्लाक आवंटित कर दिए गए हैं।
- वर्तमान में देश में 21 Oil Refineries हैं जिनमें 17 सार्वजनिक क्षेत्र, 3 निजी क्षेत्र एवं 1 संयुक्त क्षेत्र की है।
- मध्य प्रदेश के सागर जिले में 20 मई, 2011 को प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा इसका उदघाटन हुआ।
- यह भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लि- (BPCI) व ओमान ऑयल कम्पनी (BOL) का संयुक्त उपक्रम है।
- इसमें 1% हिस्सेदारी MP Govt. की, 26% हिस्सेदारी ओमान ऑयल कम्पनी तथा शेष 73% हिस्सेदारी भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लि- की है।
- वर्ष 2015–16 में इस रिफाइनरी की क्षमता 150 लाख टन करने की योजना है।
- पंजाब के भटिंडा में स्थित इस रिफाइनरी का उदघाटन 28 अप्रैल, 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया।
- यह सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन लि- (HPCL) तथा लक्ष्मी निवास मित्तल की मित्तल एनर्जी इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लि- का संयुक्त उपक्रम है।
- इस रिफाइनरी (Refinery) के प्रारंभ होने से भारत में कुल तेलशोधन क्षमता 213 मिलियन मीट्रिक टन सलाना (MMTPA) हो गया है।
- ONGC द्वारा 3 रिफायनरियां स्थापित करने की योजना है—(1) मंगलौर (कर्नाटक), (2) काकीनाड़ा (आंध्र प्रदेश) और (3) बाड़मेर (राजस्थान)।
- IOC द्वारा 2 रिफायनरियां स्थापित करने की योजना है—(1) एन्नोर (तमिलनाडु) और (2) पाराद्वीप में।
- देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में कपड़ा उद्योग का अंशदान: 14%
- सकल घरेलू उत्पादन में: 4%
- कुल विनिर्मित औद्योगिक उत्पादन: 20%
- कुल निर्यात में: 24.6%
- कुल आयात खर्च में अंशदान: 3%
- रोजाना सृजन की दृष्टि से इसका योगदान: 3.5 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
- भारत में प्रथम सूती कपड़ा मिल सन् 1818 में फोर्ट ग्लोस्टर (कलकत्ता) में स्थापित की गई परंतु यह मिल अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर सकी।
- भारत की दूसरी मिल ‘बंबई स्पिनिंग एंड वीविंग कम्पनी’ बंबई में KGN Daber द्वारा सन् 1854 में स्थापित की गई। इसके बाद यह उद्योग लगातार विकसित होता रहा।
- स्वतंत्रता के समय (13 अगस्त, 1947) भारत में कुल 394 सूती वस्त्र मिलें थी।
- विभाजन के समय (14 अगस्त, 1947) 14 सूती वस्त्र मिलें पाकिस्तान वाले क्षेत्र में चली गई साथ ही कपास का उत्पादन करने वाले कुल क्षेत्र का 40% क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया। यही कारण है कि भारत को कपास के आयात के क्षेत्र में कदम रखना पड़ा।
- भारत सरकार ने कपड़ा विकास और विनियमन आदेश (Textiles Development and Regulation Order, 1993) के माध्यम से इस उद्योग को लाइसेन्स मुक्त कर दिया है।
- देश का सूती कपड़ा उद्योग मुख्य रूप से महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं गुजरात में केन्द्रित है।
- कपड़ा मंत्रलय एवं कृषि मंत्रलय द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर ‘कपास प्रौद्योगिकी मिशन’ का शुभारंभ 21 फरवरी, 2000 को किया गया। जिसके अन्तर्गत कपास अनुसंधान एवं विकास, विपणन तथा प्रसंस्करण से संबंधित 4 लघु मिशन शामिल है।
- देश में सिले सिलाए वस्त्रें के निर्यात सवंर्द्धन के लिए एक वस्त्र पार्क (Apparel Park) की स्थापना तमिलनाडु में तिरूवर एट्टीवरम्पलायम गांव में की गई है।
- 300 करोड़ की अनुमानित लागत वाले देश के इस पहले वस्त्र पार्क का शिलान्यास 4 जुलाई, 2003 को किया गया। साथ ही इस गांव का नामकरण न्यू तिरूपुर किया गया है।
- 1 अप्रैल, 1999 को कपड़ा मंत्रलय द्वारा प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना की शुरूआत। यह योजना 11 FYP के दौरान भी जारी रखने की स्वीकृति दी गई है।
- हथकरघा गतिविधियों के विस्तार हेतु वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए अप्रैल, 2000 से ‘दीनदयाल हथकरघा प्रोत्साहन योजना’ प्रारंभ की गई।
- सरकार ने कपड़ा उद्योग की बुनियादी संभावनाओं के क्षेत्र के विकास के लिए अगस्त, 2005 में एकीकृत कपड़ा पार्क के लिए योजना योजना लागू की गई है जिसके अन्तर्गत वर्ष 2007 तक 25 SITP स्थापना प्रस्तावित है तथा जिसमें ₹ 18,550 करोड़ का निवेश किया जाएगा।
- केंद्र सरकार द्वारा कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा, आदि राज्यों में बहुमूल्य रत्नों के खनन में तेजी लाने की योजना बनाई गई है।
- केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश में हीरों एवं अन्य बहुमूल्य खनिजों के अन्वेषण के लिए अनेक कम्पनियों को अनुमति प्रदान की है।
- सरकार ने 1 अप्रैल, 2002 से अपरिष्कृत हीरों (Rough Diamonds) के आयात को लाइसेन्स मुक्त कर दिया है।
- रत्न और आभूषण के मुख्य निर्यातक देश हैं—यू-एस-ए, हांगकांग, यूएई, बेल्जियम, इजरायल, जापान, थाइलैण्ड और यू-के-।
- रत्न और आभूषण निर्यात के लिए मुख्य बाजार हैं—यू-एस-ए, हांगकांग, यूएई, बेल्जियम, इजरायल, जापान, थाइलैण्ड और यू-के-।
वर्ष | कुल निर्यात में प्रतिशत हिस्सा |
1998–99 | 17.8 |
2000–01 | 16.6 |
2002–03 | 16.9 (सर्वाधिक हिस्सेदारी) |
2009–10 | 16.3 |
2010–11 | 14.7 |
2011–12 | 15.1 |
ड्डोतः इकॉनोमिक सर्वे 2011–12 |
- तराशे हुए हीरो का।
- स्वर्ण आभूषण का।
- रंगीन नगीनों का।
- भारत रत्न एवं आभूषणों का सर्वाधिक निर्यात अमेरिका को करता है।
- भारत द्वारा कुल रत्न एवं आभूषणों का 70% भाग अमेरिका व यूरोपीय संघ को निर्यात किया जाता है।
- विदेश व्यापार नीति (Foreign Trade Policy, 2009–14) के अनुसार, ‘भारत को हीरे का अंतर्राष्ट्रीय केंद्र बनाने के लक्ष्य से हीरा विनिमय को स्थापित करने की योजना है।’
- वर्ष 1950–51 में देश में कुल चीनी मिलों की संख्या 138 थी।
- 31 मार्च, 2008 के अंत में भारत में कुल चीनी मिलों को संख्या 615 थी जो 31 मार्च, 2009 के अंत तक बढ़कर 624 हो गई।
- चीनी का उत्पादन वर्ष 2010–11 में रिकार्ड स्तर पर रहा। सरकार ने इस वर्ष के लिए 23 मिलियन टन उत्पादन रहने का अनुमान लगाया था जबकि ताजा आंकलन में यह उत्पादन 24.35 मिलियन टन रहने का अनुमान है। यह देश का अब तक का सर्वश्रेष्ठ उत्पादन है।
- भारत में चीनी की वार्षिक खपत लगभग 23 मिलियन टन है। इस वर्ष उत्पादन 24–25 मिलियन टन के आस-पास रहने से इस वर्ष चीनी के निर्यात की भी संभावना है।
- भारत में चीनी उत्पादन में महाराष्ट्र का प्रथम स्थान है साथ ही चीनी मिलों की सर्वाधिक संख्या महाराष्ट्र (134) में ही है।
- विश्व रैकिंग में चीनी के उत्पादन में ब्राजील का प्रथम और भारत का द्वितीय स्थान है परंतु चीनी के उपभोग में भारत विश्व में शीर्ष स्थान पर है।
- भारत में गन्ने की प्रति एकड़ उपज लगभग 15 टन है जो अन्य उत्पादक राष्ट्रों की तुलना में बहुत कम है।
- भारत में उत्पादित गन्ने में चीनी का प्रतिशत 9% से 10% है जबकि अन्य राष्ट्रों में यह 13% से 14% तक है।
- चीनी मिलों द्वारा कुल गन्ना उत्पादन का एक छोटा सा भाग ही प्रयुक्त कर पाना।
- प्रति हेक्टेयर गन्ने की निम्न उत्पादकता।
- उत्तम किस्म के गन्ने की कमी।
- उत्पादन लागतों में वृद्धि।
- मिलों के आधुनिकीकरण की समस्या।
- मौसमी उद्योग।
- अनुसंधान की कमी।
- चीनी मिलों द्वारा कृषकों को गन्ने के मूल्य का पूरा-पूरा भुगतान न कर पाना।
- 20 अगस्त, 1998 से सरकार ने चीनी मिलों की स्थापना को लाइसेन्स मुक्त कर दिया।
- केंद्र सरकार द्वारा गन्ने के मूल्य का निर्धारण करने के लिए सांविधिक न्यूनतम कीमत के स्थान पर उचित एवं लाभकारी मूल्य को अपनाया गया।
- चीनी उद्योग के विकास के लिए धन एकत्र करने हेतु 1982 में चीनी विकास निधि की स्थापना की गई। यह कोष मिलों के आधुनिकीकरण एवं मिल क्षेत्रें में गन्ने के विकास के लिए आसान शर्तों पर ऋण प्रदान करने का कार्य करता है।
- सरकार द्वारा चीनी के निर्यात को डिकनालीस करने का निर्णय लिया गया है। जिसके अन्तर्गत चीनी मिलें सीधे ही चीनी का निर्यात कर सकेंगी।
- चीनी प्रौद्योगिकी के भारतीय संस्थान: कानपुर (उत्तर प्रदेश)
- भारतीय चीनी अनुसंधान संस्थान: लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
- भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान: कोयम्बटूर (तमिलनाडु)
अब संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें और देखें कि आपने क्या सीखा?
☞ भारत के प्रमुख उद्योग से संबंधित प्रश्न उत्तर 🔗
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प्रश्नोत्तर (FAQs):
बॉक्साइट एल्यूमीनियम के उत्पादन में उपयोग किया जाने वाला प्राथमिक कच्चा माल है। राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट की स्थापना एल्यूमीनियम उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने और उद्योगों को आवश्यक मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध कराने के लिए की गई थी।
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक या सिडबी भारत का एक स्वतंत्र वित्तीय संस्थान है जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की वृद्धि और विकास के उद्देश्य से स्थापित किया गया है। इसका मुख्यालय लखनऊ में है और इसके कार्यालय पूरे देश में हैं।
कच्चा माल वे मूल पदार्थ हैं जिनका उपयोग विभिन्न शिल्पों में उत्पादन कार्य के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, चीनी मिल के लिए गन्ना, कपड़ा उद्योग के लिए कपास, कागज बनाने के लिए बांस, लौह कारखानों के लिए गन्ना और सन और कच्चा लोहा कच्चा माल हैं।
अकेले केरल राज्य कुल नारियल उत्पादन का 61% और कुल कॉयर उत्पादन का 85% प्रदान करता है। कॉयर ने सदियों पहले केरल राज्य में अपनी साधारण शुरुआत से एक लंबा सफर तय किया है।
कपड़ा उद्योग कृषि के बाद देश में दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है। यह साढ़े तीन करोड़ से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है। उनमें से बड़ी संख्या अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिलाओं की है।