सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल और खोजकर्ता एवं महत्वपूर्ण तथ्य:
सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और 'सिंधु-सरस्वती सभ्यता' के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर 2014 में भिर्दाना को अब तक खोजा गया सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे प्राचीन नगर माना गया।
1826 में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में अलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की। 1904 मे लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग का महानिदेशक बनाया गया।
सिन्धु सभ्यता के प्रमुख स्थल व खोजकर्ता:
हड़प्पा:
स्थल | हड़प्पा |
अवस्थिति | मांटगोमरी (पाकिस्तान) |
खोजकर्ता का नाम | दयाराम साहनी |
वर्ष | 1921 |
नदी/सागर तट | रावी |
हड़प्पा स्थल का संक्षिप्त विवरण: हड़प्पा पूर्वोत्तर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक पुरातात्विक स्थल है। यह साहिवाल शहर से 20 किलोमीटर पश्चिम मे स्थित है। सिन्धु घाटी सभ्यता के अनेकों अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए है। सिंधु घाटी सभ्यता को इसी शहर के नाम के कारण हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।
1921 में जब जॉन मार्शल भारत के पुरातात्विक विभाग के निर्देशक थे तब दयाराम साहनी ने इस जगह पर सर्वप्रथम खुदाई का कार्य करवाया था। दयाराम साहनी के अलावा माधव स्वरुप व मार्तीमर वीहलर ने भी खुदाई का कार्य किया था। हड़प्पा शहर का अधिकांश भाग रेलवे लाइन निर्माण के कारण नष्ट हो गया था।
मोहनजोदड़ो:
स्थल | मोहनजोदड़ो |
अवस्थिति | लरकाना (पाकिस्तान) |
खोजकर्ता का नाम | राखालदास बनर्जी |
वर्ष | 1922 |
नदी/सागर तट | सिन्धु |
मोहनजोदड़ो स्थल का संक्षिप्त विवरण: मोहन जोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है " मुर्दों का टीला "। यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है 'मुअन जो दड़ो'। इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ। यहाँ पर खुदाई के समय बड़ी मात्रा में इमारतें, धातुओं की मूर्तियाँ, और मुहरें आदि मिले। पिछले 100 वर्षों में अब तक इस शहर के एक-तिहाई भाग की ही खुदाई हो सकी है, और अब वह भी बंद हो चुकी है। माना जाता है कि यह शहर 125 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था तथा इस में जल कुड भी हुआ करता था! स्थिति- पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला।
रोपड़:
स्थल | रोपड़ |
अवस्थिति | पंजाब |
खोजकर्ता का नाम | यज्ञदत्त शर्मा |
वर्ष | 1953 |
नदी/सागर तट | सतलज |
रोपड़ स्थल का संक्षिप्त विवरण: रोपड़ अति प्राचीन स्थल है, वर्तमान में इसे रूपनगर के नाम से जाना जाता है नगर का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता का शहर जाता है। रूपनगर सतलुज के दक्षिणी किनारे पे बसा है। सतलुज नदी के दूसरी ओर शिवालिक के पहाड़ हैं। रूपनगर चंडीगढ़ (सबसे समीप विमानक्षेत्र एवं पंजाब की राजधानी) से लगभग 50 कि.मी. की दूरी पर है। प्राचीन शहर रूपनगर का नाम 11वि सदी के रोकेशर नामक राजा ने अपने पुत्र रूप सेन के उपर रखा था।
लोथल:
स्थल | लोथल |
अवस्थिति | अहमदाबाद (गुजरात) |
खोजकर्ता का नाम | रंगानाथ नाथ राव |
वर्ष | 1954 |
नदी/सागर तट | भोगवा नदी |
लोथल स्थल का संक्षिप्त विवरण: लोथल प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों में से एक बहुत ही महत्वपूर्ण शहर है। लगभग 2400 ईसापूर्व पुराना यह शहर भारत के राज्य गुजरात के भाल क्षेत्र में स्थित है और इसकी खोज सन 1954 में हुई थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस शहर की खुदाई 13 फ़रवरी 1955 से लेकर 19 मई 1956 के मध्य की थी। लोथल, अहमदाबाद जिले के धोलका तालुका के गाँव सरागवाला के निकट स्थित है। सिंधु घाटी सभ्यता के समय इसके आसपास का कच्छ का मरुस्थल, अरब सागर का एक हिस्सा था।
प्राचीन समय में यह एक महत्वपूर्ण और संपन्न व्यापार केंद्र था जहाँ से मोती, जवाहरात और कीमती गहने पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सुदूर कोनों तक भेजे जाते थे। मनकों को बनाने की तकनीक और उपकरणों का समुचित विकास हो चुका था और यहाँ का धातु विज्ञान पिछले 4000 साल से भी अधिक से समय की कसौटी पर खरा उतरा था। प्रमुख खोजों में एक टीला, एक नगर, एक बाज़ार स्थल और एक गोदी शामिल है।
कालीबंगा:
स्थल | कालीबंगा |
अवस्थिति | गंगानगर (राजस्थान) |
खोजकर्ता का नाम | अमलानन्द घोष |
वर्ष | 1953 |
नदी/सागर तट | घग्घर |
कालीबंगा स्थल का संक्षिप्त विवरण: कालीबंगा सिंधु भाषा का शब्द है जो काली+बंगा (काले रंग की चूड़ियां) से बना है। काली का अर्थ काले रंग से तथा बंगा का अर्थ चूड़ीयों से है। कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थल है। यहां हड़प्पा सभ्यता के बहुत दिलचस्प और महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं। काली बंगा एक छोटा नगर था।
यहां एक दुर्ग मिला है। प्राचीन द्रषद्वती और सरस्वती नदी घाटी वर्तमान में घग्गर नदी का क्षेत्र में सैन्धव सभ्यता से भी प्राचीन कालीबंगा की सभ्यता पल्लवित और पुष्पित हुई। कालीबंगा 4000 ईसा पूर्व से भी अधिक प्राचीन मानी जाती है। सर्वप्रथम 1953 ई॰ में अमलानन्द घोष ने इसकी खोज की। बीके थापर व वीवी लाल ने 1961-69 में यहाँ उत्खनन का कार्य किया।
चन्हुदड़ो:
स्थल | चन्हूदड़ो |
अवस्थिति | सिंध (पाकिस्तान) |
खोजकर्ता का नाम | एन. जी. मजूमदार |
वर्ष | 1934 |
नदी/सागर तट | सिन्धु |
चन्हुदड़ो स्थल का संक्षिप्त विवरण: चन्हुदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता के नगरीय झुकर चरण से सम्बंधित एक पुरातत्व स्थल है। यह क्षेत्र पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के मोहेंजोदड़ो से 130 किलोमीटर (81 मील) दक्षिण में स्थित है। यह क्षेत्र 4000 से 1700 ईसा पूर्व में बसा हुआ माना जाता है और इस स्थान को इंद्रगोप मनकों के निर्माण स्थल के रूप में जाना जाता है।
चन्हुदड़ो की पहली बार खुदाई मार्च 1934 में एन॰जी॰ मजुमदार ने करवाई और उसके बाद 1935-36 में अमेरीकी स्कूल ऑफ़ इंडिक एंड इरानियन तथा म्यूज़ियम ऑफ़ फाइन आर्ट्स, बोस्टन के दल ने अर्नेस्ट जॉन हेनरी मैके के नेतृत्व में करवाई।
सुत्कांगेडोर:
स्थल | सुत्कांगेडोर |
अवस्थिति | बलूचिस्तान (पाकिस्तान) |
खोजकर्ता का नाम | आरेल स्टाइन |
वर्ष | 1927 |
नदी/सागर तट | दाश्क |
सुत्कांगेडोर स्थल का संक्षिप्त विवरण: सुत्कांगेडोर सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पश्चिमी ज्ञात पुरातात्विक स्थल है। यह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ईरानी सीमा के निकट ग्वादर के पास मकरान तट पर कराची से लगभग 480 किमी दूर पश्चिम में स्थित है। सुत्कांगेडोर की खोज 1875 में मेजर एडवर्ड मॉकलर ने की थी, जिन्होंने छोटे पैमाने पर उत्खनन किया था।
1928 में ऑरेल स्टीन ने अपने गेड्रोसिया दौरे के हिस्से के रूप में क्षेत्र का दौरा किया, और आगे की खुदाई की। अक्टूबर 1960 में, सुत्कांगेडोर को अपने मकरान सर्वेक्षण के एक हिस्से के रूप में जॉर्ज एफ. डेल्स द्वारा अधिक बड़े पैमाने पर खुदाई की गई थी, जो बिना पुआल के पत्थर और मिट्टी की ईंटों से बनी संरचनाओं को उजागर करते थे।
कोटदीजी:
स्थल | कोटदीजी |
अवस्थिति | सिंध (पाकिस्तान) |
खोजकर्ता का नाम | फज़ल अहमद खां |
वर्ष | 1955 |
नदी/सागर तट | सिन्धु |
कोटदीजी स्थल का संक्षिप्त विवरण: कोटदीजी में प्राचीन स्थल सिंधु सभ्यता का एक महत्वपूर्ण अंग था। इस स्थल की व्यवसाय पहले से ही 3300 ईसा पूर्व में प्रमाणित है। अवशेषों में उच्च भूमि और बाहरी क्षेत्र पर दो भागों का गढ़ क्षेत्र शामिल है। पाकिस्तान विभाग के पुरातत्व विभाग ने 1955 और 1957 में कोटदीजी में खुदाई की। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में खैरपुर से लगभग 24 किलोमीटर दक्षिण में, यह मोहनजोदाड़ो के सामने सिंधु के पूर्वी तट पर है।
यह स्थल रोहड़ी पहाड़ियों के तल पर स्थित है जहाँ एक किला (कोट दीजी का किला) 1790 के आसपास ऊपरी सिंध के तालपुर वंश के शासक मीर सुह्रब द्वारा बनाया गया था, जिन्होंने 1783 से 1830 ई. तक शासन किया था। एक तंग संकरी पहाड़ी के रिज पर बना यह किला अच्छी तरह से संरक्षित है।
आलमगीरपुर:
स्थल | आलमगीरपुर |
अवस्थिति | मेरठ |
खोजकर्ता का नाम | यज्ञदत्त शर्मा |
वर्ष | 1958 |
नदी/सागर तट | हिंडन |
आलमगीरपुर स्थल का संक्षिप्त विवरण: आलमगीरपुर सिंधु घाटी सभ्यता का एक पुरातात्विक स्थल है जो यमुना नदी (3300-1300 ईसा पूर्व) के साथ-साथ मेरठ जिले, उत्तर प्रदेश, भारत में स्थित हड़प्पा काल से जुड़ा हुआ है। यह सभ्यता का सबसे पूर्वी स्थल है। इस स्थल को परसाराम-खीरा भी कहा जाता था।
सुरकोटदा:
स्थल | सुरकोटदा |
अवस्थिति | कच्छ (गुजरात) |
खोजकर्ता का नाम | जगपति जोशी |
वर्ष | 1967 |
नदी/सागर तट | – |
सुरकोटदा स्थल का संक्षिप्त विवरण: सुरकोटदा या 'सुरकोटडा' गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित है। इस स्थल से हड़प्पा सभ्यता के विस्तार के प्रमाण मिले हैं। इसकी खोज 1964 में 'जगपति जोशी' ने की थी इस स्थल से 'सिंधु सभ्यता के पतन' के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
यहाँ पर एक बहुत बड़ा टीला था। यहाँ पर किये गये उत्खनन में एक दुर्ग बना मिला, जो कच्ची ईंटों और मिट्टी का बना था। परकोटे के बाहर एक अनगढ़ पत्थरों की दीवार थी। मृद्भाण्ड सैंधव सभ्यता के हैं। यहाँ पर एक क़ब्र बड़े आकार की शिला से ढंकी हुई मिली है। यह क़ब्र अभी तक ज्ञात सैंधव शव-विसर्जन परम्परा में सर्वथा नवीन प्रकार की है।
रंगपुर:
स्थल | रंगपुर |
अवस्थिति | कठियावाड़ (गुजरात) |
खोजकर्ता का नाम | ए. रंगनाथ राव |
वर्ष | 1953-54 |
नदी/सागर तट | सुकभादर |
रंगपुर स्थल का संक्षिप्त विवरण: रंगपुर गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में सुकभादर नदी के समीप स्थित है। इस स्थल की खुदाई वर्ष 1953-1954 में ए. रंगनाथ राव द्वारा की गई थी। यहाँ पर पूर्व हड़प्पा कालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। रंगपुर से मिले कच्ची ईटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ धान की भूसी के ढेर मिले हैं। यह ऐतिहासिक स्थान गोहिलवाड़ प्रांत में सुकभादर नदी के पश्चिम समुद्र में गिरने के स्थान से कुछ ऊपर की ओर स्थित है। इस स्थान से 1935 तथा 1947 में उत्खनन द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष प्रकाश में लाए गये थे।
यहाँ पहली बार की खुदाई के अवशेषों से विद्वानों ने यह समझा था कि ये हड़प्पा सभ्यता के दक्षिणतम प्रसार के चिन्ह हैं, जिनका समय लगभग 2000 ई. पू. होना चाहिए। वर्ष 1944 ई. के जनवरी मास में यहाँ पुरातत्त्व विभाग ने पुनः उत्खनन किया, जिससे अनेक अवशेष प्राप्त हुए। जिनमें प्रमुख थे- अलंकृत व चिकने मृदभांड, जिन पर हिरण तथा अन्य पशुओं के चित्र हैं; स्वर्ण तथा कीमती पत्थर की बनी हुईं गुरियां तथा धूप में सुखाई हुई ईंटे। यहाँ से भूमि की सतह के नीचे नालियों तथा कमरों के भी चिन्ह मिलें हैं।
बालाकोट:
स्थल | बालाकोट |
अवस्थिति | पाकिस्तान |
खोजकर्ता का नाम | डेल्स |
वर्ष | 1979 |
नदी/सागर तट | अरब सागर |
बालाकोट स्थल का संक्षिप्त विवरण: बालाकोट सिन्धु घाटी की सभ्यता का एक महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ खुदाई में ढाई हजार ईसापूर्व की निर्मित एक भट्ठी मिली है जिसमें सम्भवतः सिरैमिक वस्तुओं का निर्मान होता था। बालाकोट पाकिस्तान के उत्तरी भाग में ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त के मानसेहरा ज़िले की काग़ान घाटी में कुनहार नदी (नैनसुख नदी) के किनारे स्थित एक शहर है। यह 2005 कश्मीर भूकम्प में पूरी तरह ध्वस्त हो गया था और फिर इसका साउदी अरब की सहायक संस्थानों की मदद लेकर नवनिर्माण करा गया।
सोत्काकोह:
स्थल | सोत्काकोह |
अवस्थिति | पाकिस्तान |
खोजकर्ता का नाम | जॉर्ज एफ. डेल्स |
वर्ष | 1960 |
नदी/सागर तट | अरब सागर |
सोत्काकोह स्थल का संक्षिप्त विवरण: सोत्काकोह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में पसनी शहर के पास मकरान तट पर एक हड़प्पा स्थल है। यह पहली बार 1960 में अमेरिकी पुरातत्वविद् जॉर्ज एफ. डेल्स द्वारा सर्वेक्षण किया गया था, जबकि मकरान तट के साथ-साथ वनस्पतियों की खोज की गई थी। यह स्थल पसनी से लगभग 15 मील उत्तर में स्थित है।
बनावली:
स्थल | बनवाली |
अवस्थिति | हिसार (हरियाणा) |
खोजकर्ता का नाम | आर. एस. बिष्ट |
वर्ष | 1973-74 |
नदी/सागर तट | – |
बनावली स्थल का संक्षिप्त विवरण: बनावली एक भारतीय राज्य हरियाणा के हिसार जिला स्थित एक पुरातत्व स्थल है जो कि सिन्धु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित है। यह कालीबंगा से 120 किमी तथा फतेहाबाद से 16 किमी दूर है। यह नगर रंगोई नदी के तट पर स्थित था। कालीबंगा सरस्वती की निचली घाटी जबकि यह नगर इसकी उपरी घाटी में स्थित था।
गुजरात:
स्थल | धोलावीरा |
अवस्थिति | कच्छ (गुजरात) |
खोजकर्ता का नाम | जे.पी. जोशी |
वर्ष | 1967 |
नदी/सागर तट | – |
धोलावीरा स्थल का संक्षिप्त विवरण: गुजरात में कच्छ प्रदेश के उतरीय विभाग खडीर में धोलावीरा गांव के पास पांच हजार साल पहले विश्व का यह प्राचीन महानगर था। उस जमाने में लगभग 50,000 लोग यहाँ रहते थे। 4000 साल पहले इस महानगर के पतन की शुरुआत हुई। सन 1450 में वापस यहां मानव बसाहट शुरु हुई।
यहाँ उत्तर से मनसर और दक्षिण से मनहर छोटी नदी से पानी जमा होता था। हड़प्पा संस्कृति के इस नगर की जानकारी 1960 में हुई और 1990 तक इसकी खुदाई चलती रही। हड़प्पा, मोहन जोदडो, गनेरीवाला, राखीगढ, धोलावीरा तथा लोथल ये छः पुराने महानगर पुरातन संस्कृति के नगर है। जिसमें धोलावीरा और लोथल भारत में स्थित है।
मांडा:
स्थल | मांडा |
अवस्थिति | जम्मू-कश्मीर |
खोजकर्ता का नाम | जे.पी. जोशी |
वर्ष | 1976-77 |
नदी/सागर तट | चिनाब |
मांडा स्थल का संक्षिप्त विवरण: मांडा एक गाँव है और जम्मू और कश्मीर के भारतीय केंद्र शासित प्रदेश में एक पुरातात्विक स्थल है। इसकी खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 1976-77 के दौरान जे.पी. जोशी द्वारा की गई थी। साइट में एक प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के खंडहर हैं।
मांडा, जम्मू से 28 किमी उत्तर पश्चिम में पीर पंजाल रेंज की तलहटी में चिनाब नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है और इसे हड़प्पा सभ्यता की सबसे उत्तरी सीमा माना जाता है। इसे सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे उत्तरी स्थल माना जाता है। इसे हिमालय की उप पहाड़ियों से लकड़ी खरीदने और सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य शहरों में भेजने के लिए स्थापित स्थल माना जाता है।
दैमाबाद:
स्थल | दैमाबाद |
अवस्थिति | महाराष्ट्र |
खोजकर्ता का नाम | बी॰ पी॰ बोपर्दिकर |
वर्ष | 1990 |
नदी/सागर तट | प्रवरा |
दैमाबाद स्थल का संक्षिप्त विवरण: दैमाबाद गोदावरी नदी की सहायक प्रवरा नदी के तट पर स्थित एक निर्जन गाँव तथा पुरातत्व स्थल है, जो कि भारत के महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर ज़िले में है। यह स्थान बी॰ पी॰ बोपर्दिकर द्वारा खोजा गया था। इस स्थान की भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा तीन बार खुदाई की जा चुकी है।
पहली खुदाई 1958-59 में एम॰ एन॰ देशपांडे के नेतृत्व में हुई। दूसरी खुदाई एस॰ आर॰ राव के नेतृत्व में 1974-75 में हुई। अंतिम खुदाई एस॰ ए॰ सली के नेतृत्व में 1976-79 में हुई। दैमाबाद में हुई खोजों से सिन्धु घाटी सभ्यता के दक्खन के पठार तक विस्तार का निष्कर्ष निकाला गया। दैमाबाद बहुत से कांस्य के सामानों के लिये प्रसिद्ध है, जिसमे से कुछ सिन्धु घाटी सभ्यता के काल के हैं।
देसलपुर:
स्थल | देसलपुर |
अवस्थिति | गुजरात |
खोजकर्ता का नाम | के. वी. सुन्दराजन |
वर्ष | 1964 |
नदी/सागर तट | – |
देसलपुर स्थल का संक्षिप्त विवरण: गुजरात के भुज ज़िले में स्थित 'देसलपुर' की खुदाई 'पी.पी. पाण्ड्या' और 'एक. के. ढाके' द्वारा किया गया। बाद में 'सौनदरराजन' द्वारा भी उत्खनन किया गया। इस नगर के मध्य में विशाल दीवारों वाला एक भवन था जिसमें छज्जे वाले कमरे थे जो किसी महत्त्वपूर्ण भवन को चिह्नित करता है।
भिरड़ाना:
स्थल | भिरड़ाना |
अवस्थिति | हरियाणा |
खोजकर्ता का नाम | भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग |
वर्ष | 2014 |
नदी/सागर तट | सरस्वती नदी |
भिरड़ाना स्थल का संक्षिप्त विवरण: भिरड़ाना भारत के उत्तरी राज्य हरियाणा के फतेहाबाद जिले का एक छोटा सा गाँव है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के दिसम्बर 2014 के शोध से पता चला है कि यह सिंधु घाटी सभ्यता का अबतक खोजा गया सबसे प्राचीन नगर है जिसकी स्थापना 4540 ईसापूर्व में हुई थी। 2003-2004 में किए गए उत्खनन में इस नगर की खोज हुई थी।
मोहन जोदड़ो की कास्य की नर्तकी की नक़ल जो बर्तन पर उकेरी गयी थी यहाँ से प्राप्त हुई थी। नवपाषाण युग में भिरड़ाना एक छोटा सा ग्राम था, ताम्र पाषाण युग में यहाँ नगर व्यवस्था आई, कांस्य युग के आते आते यह राखीगढ़ी, मोहनजोदड़ो, सुमेर आदि अपने सभी समकालीन महानगरो की तरह एक समृद्ध महानगर बना।
सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में महत्पूर्ण तथ्य:
- भारत की प्रथम सभ्यता सिन्धु घाटी सभ्यता है।
- सिन्धु सभ्यता की खोज ब्रिटिश अधिकारी सर जॉन मार्शल के संरक्षण मेे राय बहादुर साहनी व राखल दास बनर्जी द्वारा 1921-22 ई० में की गयी थी।
- मोहनजोदडों के टीलों जिसे मृतको का टीला कहा जाता है। की खोज 1922 में राखल दास बनर्जी नेे की थी।
- चन्हूूदडों नगर की खोज सर्वप्रथम 1931 ई० में गोपाल मजूमदार ने की थी।
- लोथल की खुदाई 1957-58 में रंगनाथ राव नेे कराई थी।
- रोपड की खुदाई 1953-56 ई० में यज्ञदत्त शर्मा ने कराई थी।
- कालीबंगा की खुदाई 1953 में बी०बी० लाल एवं बी०के० थापर द्वारा कराई गई थी।
- बनवाली की खुदाई 1953 में बी०बी० लाल एवं बी०के० थापर द्वारा कराई गई थी।
- सुरकोटडा की खोज 1927 ई० में ऑरेन स्टाइन ने की थी।
- रंगपुरा की खुदाई 1951-53 ई० में माधोस्वरूप वत्स बी० बी० लाल एस आर० राव ने कराई थी।
- सिन्धु सभ्यता को वर्तमान मे हडप्पा सभ्यता कहा जाता है।
- हडप्पा सभ्यता को ऋग्वेद में हरियूपिया कहा जाता है।
- सिन्धु का बाग हडप्पा सभ्यता में मोहनजोदडो के पुरास्थल को कहा जाता है।
- हडप्पा सभ्यता के सम्पूर्ण क्षेेत्र का आकार त्रिभुजाकार था
- हडप्पा सभ्यता की मुद्राऍ मिट्टी से बनाई जाती थी।
- हडप्पा सभ्यता की मुद्राऍ आयताकार थी।
- अधिकतर हडप्पाई मुहर पर सॉड का चित्र बना हुआ था
- सिन्धु सभ्यता को सिन्धु घटी सभ्यता हडप्पा सभ्यता तथा नागरीय सभ्यता कहा जाता है।
- सिन्धु सभ्यता के अधिकांश नगर नदियों के किनारे बसे थे।
- सिन्धु सभ्यता में कालीबंगा से नक्काशीदार ईटों के प्रयुक्त होने का प्रमाण मिलता है।
- सिन्धु सभ्यता की सबसे बडी इमारत मोहनजोदडो का अन्नागार है।
- सिन्धु सभ्यता में प्रयुक्त ईटों की लम्बाई और चौडाई तथा ऊॅचाई का अनुपात क्रमश: 4:2:1 था
- मेलुहा सिन्धु क्षेेत्र का पुराना नाम था
- सबसे पहले सिन्धु सभ्यता के दो प्रमुख स्थल हडप्पा तथा मोहनजोदडो मिले थे।
- हडप्पा नगर रावी नदी के किनारे स्थित था
- लोथल भोगवा नदी के किनारे स्थित था
- मोहनजोदडो सिन्धु नदी के किनारे स्थित था
- स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हडप्पा सभ्यता के सबसे अधिक स्थल गुजरात में खोेजे गये थे।
- हडप्पावासी फिनीशिया के मूल निवासी थे।
- सर्वप्रथम कपास उपजाने का श्रेय हडप्पावासियों को जाता है।
- मोहनजोदडाेे में विशाल स्नानगार स्थित है।
- अण्डाकार शव के अवशेष सुरकोतडा से मिलते है।
- एक कब्र में दो शव आपस में लिपटे हुए लोथल से मिले है।
- मोहनजोदडो से नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति मिली थी।
- पुजारी का सिर मोहनजोदडो से मिला है।
- सिन्धु सभ्यता का प्रधान बन्दरगाह लोथल था
- सिन्धु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरो के विन्यास के लिए ग्रीड पदृति अपनाते थे।
- सिन्धु सभ्यता केे निवासी शाकाहारी और मासाहारी दोनों ही प्रकार का भोजन करते थे।
- सिन्धु सभ्यता के निवासी सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे।
- सिन्धुु सभ्यता के मानव आवागमन के लिए दो पहिये एवं चार पहियों वाली वैल गाडियों का प्रयोग करते थे।
- सिन्धु सभ्यता केे निवासी मनोरंजन के लिए शतरंज, संगीत, नृत्य, तथा जुआ आदि खेलते थे।
- सिन्धु सभ्यता के निवासी मातृदेवी और शिवलिंग के उपासना करते थे।
- सिन्धु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उपासना करते थे।
- वृक्ष पूजा और शिव पूजा के प्रचलन के साक्ष्य भी सिन्धु सभ्यता से मिलते है।
- स्वास्तिक चिन्ह हडप्पा सभ्यता की देन है।
- पशुओं में कूबड वाला सॉड इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था
- सिन्धुवासी वैल काेे शक्ति का प्रतीक मानते थे।
- सिन्धुवासियों को घोडे का ज्ञान नहीं था
- मनकेे बनाने के कारखाने लोथल एवं चन्हुदडो से प्राप्त हुऐ है।
- मोहनजोदडो में घोडे के दॉत के अवशेष मिले है।
- मोहनजोदडो से सीप का तथा लोथल से हाथी। दॉत से निर्मित एक-एक पैमाना मिला है।ै
- लोथल में घोडे की लघु मृण्मूर्तियों के अवशेष मिले है।
- कालीबंंगा से जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है।
- लोथल से चावल के प्रथम साक्ष्य मिले है।
- सिन्धु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किए हुए लाल मिट्टी् के बर्तन बनातेे थे।
- सिन्धु सभ्यता के लोग तलवार से परिचित नहीं थे।
- कालीबंगा एकमात्र हडप्पाकालीन स्थल था जिसका निचला शहर भी किलेे से घिरा हुआ था
- पर्दा-प्रथा एवं वेश्यावृत्ति सैधव सभ्यता में प्रचलित थी।
- शवों काेे गाडने और जलाने की दाेेनों ही प्रथाऐं प्रचलित थी।
- कालीबंंगा और लोथल में हवनकुुण्ड के प्रथम साक्ष्य मिले थे।
- मेहरगढ से भारत में कृषि का प्राचीनतम् साक्ष्य मिला था
- सिन्धुवासी तॉबा धातु का प्रयोग ज्यादा करते थे।
- सिन्धुवासी को लोहा धातु का ज्ञान नहीं था
- घरों के दरवाजे और खिडकीयॉ सडक की ओर न खुल कर पिछवाडे की ओर खुलते थे।
- केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे सडक की ओर खुलते थे।
- सिन्धुवासी मिठास शहद का प्रयोग करते थे।
- मोहनजोदडो की सडकों की लम्बाई 400 मीटर तथा चौडाई 10 मीटर थी।
- सिन्धुवासी का प्रमुख पेशा कृषि तथा पशुपालन था
- हडप्पावासी सुमेर देश से व्यापार करते थे।
- सिन्धु सभ्यता के विनाश के लिए वाढ, सूखा या विदेशी आक्रमण को जिम्मेदार ठहराया जाता है।
- प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है।
अब संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें और देखें कि आपने क्या सीखा?
☞ सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल से संबंधित प्रश्न उत्तर 🔗
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सिंधु घाटी सभ्यता प्रश्नोत्तर (FAQs):
सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता ईंटों से बनी इमारतें थीं। इसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कृषि की शुरुआत लगभग 4000 ईसा पूर्व हुई थी और लगभग 3000 ईसा पूर्व में शहरीकरण के पहले लक्षण दिखाई दिए थे।
सिंधु सभ्यता एक योजनाबद्ध सभ्यता थी, जिसमें घर पकी हुई ईंटों से बने होते थे, सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं, सड़कें और गलियाँ 9 से 34 फीट चौड़ी होती थीं और कुछ स्थानों पर आधे मील तक सीधी जाती थीं।
लोथल प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह शहरों में से एक है। लगभग 2400 ईसा पूर्व का यह प्राचीन शहर भारत के गुजरात राज्य के भाल क्षेत्र में स्थित है और इसकी खोज 1954 में हुई थी।
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन था। उन्होंने कृषि की बारीकी से व्यवस्था की और गेहूं, जौ, बाजरा, दालें, दलिया, तिल, मूंगफली और सब्जियों की खेती की। इसके अलावा, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सुअर, मुर्गा, बत्तख, हाथी, घोड़ा और ऊँट जैसे विभिन्न पशुओं को पालतू बनाया गया।
सिंधु घाटी की प्राचीन संस्कृति और आज के हिंदू धर्म के बीच जैविक संबंध का प्रमाण पशुपति, इंद्र और देवी माँ की पूजा से मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता में पशुपति शिव की पूजा की जाती थी और उनका संबंध जानवरों से था।