अंगकोर वाट मंदिर संक्षिप्त जानकारी
स्थान | सिमरिप, कंबोडिया |
स्थापना | 12वीं शताब्दी |
निर्माता | सूर्यवर्मन द्वितीय द्वारा शुरू एवं जयवर्मन VII द्वारा पूरा किया गया। |
स्थापत्य शैली | खमेर (अंगकोरवाट शैली) |
प्रकार | सांस्कृतिक, मंदिर |
अंगकोर वाट मंदिर का संक्षिप्त विवरण
मीकांग नदी के किनारे कंबोडिया के सीम रीप शहर में स्थित अंकोरवाट मंदिर संसार के सबसे बड़े हिंदू मंदिरो में से एक है। यह भव्य मन्दिर हिन्दुओं के भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर में बहुत ही अद्भुत कलाकृति के नमूने व विशेष प्रकार की शैली का रचनात्मक चित्रण देखने को मिलता है।
अंगकोर वाट मंदिर का इतिहास
12वीं शताब्दी के आरंभ में सूर्यवर्मन द्वितीय के शासन काल के दौरान मंदिर का निर्माण किया गया था। यह मंदिर प्राचीन राजधानी अंगकोर राज्य में स्थित है। इसका मूल नाम अज्ञात है क्यूंकि न तो इसके स्थापना संदर्भ के बारे में कोई शिलालेख पाए गए हैं और न ही समकालीन शिलालेखो में इसका कंही जिक्र हैं। परंतु इसे राष्ट्रपति देवता और "वरह विष्णु-लोक" के नाम से जाना जाता है।
सूर्यवर्मन द्वितीय की मृत्यु के लगभग 27 साल बाद खमेर के पारंपरिक दुश्मन चम्स ने अंगकोर को नष्ट कर दिया जिसके बाद साम्राज्य को एक नए राजा जयवर्मान सप्तम द्वारा बहाल किया गया। 12वीं शताब्दी के अंत में अंगकोर वाट धीरे-धीरे हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में बदल गया था।
अंगकोर वाट मंदिर के रोचक तथ्य
- इस भव्य मंदिर का निर्माण लगभग 1112 से 53 ईस्वी के मध्य खमेर सभ्यता के शासको ने करवाया था।
- इसका निर्माण लगभग 65 मीटर ऊंचाई पर किया गया था। इस मंदिर के केंद्र में 65 मीटर ऊँचा टावर स्थित है जो चार छोटे टावरों और घेरे की दीवारों की एक श्रृंखला से घिरा हुआ है।
- यह मंदिर लगभग 208 हेक्टेयर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जिसके चारो और एक जल करधनी का भी निर्माण कराया गया था।
- इस मंदिर के निर्माण में लगभग 300,000 से अधिक मजदूरों और 1,000 से अधिक हाथियों की मदद ली गई थी।
- यह मंदिर विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है, जिसे 1992 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित कर दिया गया था।
- इस मंदिर की सबसे बड़ी खास बात यह है कि यह विश्व का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर है।
- कंबोडिया के इतिहास पर भारत की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है क्यूंकि वहाँ करीब 27 भारतीय शासकों राज किया था जिनमें से कुछ शासक हिन्दू और कुछ बौद्ध धर्म के थे।
- इस मंदिर में हिन्दू और बौद्ध दोनों से ही जुड़ी विशालकाय मूर्तियां देखी जा सकती हैं।
- यह मंदिर अंगकोर वाट खमेर वास्तुकला की शास्त्रीय शैली का सबसे अच्छा उदाहरण पेश करता है।
- भारतीय इतिहास में रामायण का उल्लेख बहुत सी जगह देखने को मिलता है परंतु यह केवल भारत तक नही बल्कि कंबोडिया में भी बहुत प्रसिद्ध था इसका प्रमाण वहाँ के मंदिर की दीवारो पर गढ़ी रामायण और महाभारत जैसे धर्मग्रंथों की कहानियों से मिलता हैं।
- वर्ष 1983 से इस मंदिर को राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक के रूप में कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है।