फोर्ट सेंट जॉर्ज संक्षिप्त जानकारी
स्थान | चेन्नई, तमिलनाडु (भारत) |
निर्माण | 1638 ई. से 1644 ई. |
निर्माता | ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी |
वास्तुकला शैली | यूरोपीय शैली |
प्रकार | किला |
फोर्ट सेंट जॉर्ज का संक्षिप्त विवरण
भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित तमिलनाडु राज्य भारत का सबसे प्रमुख राज्य है। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में स्थित सेंट जॉर्ज किला भारत के उपनिवेशवाद होने का सबसे अच्छा उदाहरण है, क्यूंकि इस किले का निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा करवाया गया था। यह किला यूरोपीय वास्तुकला शैली का प्रतिनिधित्व करता है।
फोर्ट सेंट जॉर्ज का इतिहास
ईस्ट इंडिया कंपनी लगभग 1600 ई. के आसपास व्यापार के उद्देश्य से भारत में आई थी, जिसने सूरत की सरकार से लाइसेंस प्राप्त अपने व्यापार को शुरू कर दिया था। जब उन्होंने व्यापार शुरू किया था तब उन्हें मलक्का जलडमरूमध्य (इंडोनेशिया) के नजदीक एक बंदरगाह की आवश्यकता महसूस हुई थी, जिस कारण उन्होंने भारत के पूर्वी तट पर एक भूमि का टुकड़ा खरीदने का निश्चय किया जिसमे वह सफल रहे और उन्होंने उस क्षेत्र को मूल रूप से चेनिर्यायरपट्टिनम (चन्नपट्टनम) का नाम दिया गया था।
इस भूमि के टुकड़े पर वर्ष 1638 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सेंट जॉर्ज फोर्ट का निर्माण शुरू किया गया था जिसे वर्ष 1644 ई. तक बनाकर पूर्ण कर दिया गया। इस किले से ही जॉर्ज टाउन नामक एक योजना की शुरुआत की गई थी, जिसके अनुसार उस क्षेत्र के गांवों को समाप्त कर एक शहर के निर्माण की योजना को कार्यप्रणाली में लाया गया था, इसके परिणाम स्वरूप ही मद्रास शहर का निर्माण हुआ था।
इस किले ने ही कर्नाटक पर अंग्रेजी सरकार के प्रभाव को बढ़ाने, आर्कोट और श्रीरंगपटना के राजाओं के शासन को समाप्त करने का भी कार्य किया था। यह किला 18वीं शताब्दी तक कई हमलों से जूझता रहा, जिसे वर्ष 1746 ई. में फ्रांसीसी ने अपने कब्जे में ले लिया, जिसे बाद में उसने एक एक्स ला चैपल संधि के तहत इसे ग्रेट ब्रिटेन सौंप दिया था। वर्ष 1947 के बाद से इस किले पर भारत सारकार का नियंत्रण है।
फोर्ट सेंट जॉर्ज के रोचक तथ्य
- इस किले के निर्माण में लगभग 6 वर्षो का समय लगा था, इसका निर्माण वर्ष 1638 ई. में प्रारंभ किया गया था जिसे वर्ष 1644 ई. तक पूर्ण रूप से बनाकर तैयार कर दिया गया था। इस किले को “वाइट टाउन” के नाम से भी जाना जाता है।
- इस विश्व प्रसिद्ध किले का निर्माण 23 अप्रैल 1644 में पूरा हुआ था, जिसे पूर्ण करने के लिए उस समय लगभग 3000 पाउंड की लागत आई थी।
- इस किले को सुरक्षा की दृष्टि से काफी मजबूत बनाया गया था, इस किले के मुख्य दीवारे लगभग 6 मीटर (20 फीट) ऊंची थी जिसे किसी भी दुश्मन द्वारा पार कर पाना काफी कठिन था।
- यह संक्षेप में फ्रांसीसी के कब्जे में 1746 से 1749 तक पारित हो गया, लेकिन एक्स-ला-चैपल के संधि के तहत ग्रेट ब्रिटेन में बहाल किया गया, जिसने ऑस्ट्रियाई उत्तराधिकार के युद्ध को समाप्त कर दिया।
- वर्ष 1665 में फ़्रांस में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन किया गया था, जिसके बाद ब्रिटिशो की ईस्ट इंडिया कंपनी को उनसे अपनी रक्षा करने के लिए किले को ओर भी मजबूत करना पड़ा था, जिस कारण यह किला धीरे-धीरे सैनिक छावनी में परिवर्तित होने लगा था।
- इस ऐतिहासिक किले ने 18वीं शताब्दी तक कई हमलों को झेला था परंतु वर्ष 1746 ई. में फ्रांसीसियो द्वारा यह किला अपने कब्जे में ले लिया गया था, जिस पर उन्होंने वर्ष 1749 तक शासन किया और वर्ष 1748 में एक एक्स-ला-चैपल संधि के तहत इसे ग्रेट ब्रिटेन को वापस सौंप दिया था।
- इस किले की भीतरी संरचना में सबसे प्रमुख है “सेंट मैरी चर्च” जो भारत का अबतक का सबसे पुराना एंग्लिकन चर्च है। इस चर्च का निर्माण मद्रास स्ट्रेन्शम मास्टर के तत्कालीन एजेंट के आदेशानुसार वर्ष 1678 ई. से 1680 ई. के मध्य किया गया था।
- इस किले की सबसे अद्भुत और भव्य संरचना इसका संग्रहालय है जिसे “फोर्ट म्यूजियम” के नाम से भी जाना जाता है, इसका निर्माण वर्ष 1795 ई. में किया गया था, जिसमे ब्रिटिश शासन की कई वस्तुए और मद्रास में खोले गये पहले बैंक की चीजों को संभाल कर रखा गया है। इस संग्रहालय के ऊपर नोबेल पुरस्कार विजेता “ओरहान पामुक” द्वारा एक उपन्यास लिखा था।
- इस किले की अन्य प्रमुख संरचना में वेलेस्ली हाउस शामिल है, जिसमे एक दावत खाना (बैंक्वेटिंग हॉल),टीपू सुल्तान के सिद्धांत का एक संग्रहालय और एक 14.5 फुट की ऊँची मूर्ति सम्मिलित है।
- 15 अगस्त 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के अवसर पर भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज इसी किले पर फहराया गया था जो आज तक इस किले के ऊपर सही-सलामत लहरा रहा है।
- इस किले पर भारत के जिस तिरंगे को फहराया गया था उसे पिंगली वेंकय्या द्वारा डिजाइन किया गया था, जिसे 22 जुलाई 1947 को आयोजित संविधान सभा की बैठक के दौरान भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपना लिया गया था।
- इस किले के भीतर 10 मंजिला ऊँची नमक्कल काविंगार मालिगाई कैंपस नामक एक इमारत स्थित है, यह वर्तमान में तमिलनाडु राज्य के सचिवालय का पावर सेंटर है। इस इमारत के रख-रखाव में वर्ष 2012 से 2014 के मध्य लगभ 28 करोड़ की लागत आई थी।
- इस किले का मुख्य भाग तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के कार्यालयों के रूप में उपयोग किया जाता है।