जहानपनाह किला संक्षिप्त जानकारी
स्थान | दक्षिण दिल्ली, दिल्ली (भारत) |
निर्माणकाल | 1326 ई. से 1327 ई. |
निर्माता | मुहम्मद-बिन तुगलक |
प्रकार | किला |
जहानपनाह किला का संक्षिप्त विवरण
आधुनिक भारत की राजधानी नई दिल्ली प्राचीनकाल से ही काफी सारे साम्राज्यों के आकर्षण का केंद्र रही है। दिल्ली को भारत का हृदय भी कहा जाता है क्यूंकि यह भारत की राजनैतिक गतिविधियों के साथ-साथ भारत के विभिन्न धर्मो, जातियों और साम्राज्यों के इतिहास और कलाकृति का भी केंद्र है। यहएक ऐसी राजधानी है जो न केवल अपनी राजनैतिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है अपितु यह अपने यहाँ के ऐतिहासिक और भ्रमणशील स्थानों के लिए भी प्रसिद्ध है। दिल्ली में स्थित जहाँपनाह किला भारत के सबसे प्राचीन किलो में से एक है जिसका निर्माण लगभग 13वीं शताब्दी में तुगलक़ राजवंश के शासको ने करवाया था।
जहानपनाह किला का इतिहास
इस विश्व प्रसिद्ध अद्भुत और ऐतिहासिक किले का निर्माण दिल्ली में तुगलक सल्तनत के संस्थापक ग्यासुद्दीन तुगलक के पुत्र मोहम्मद बिन तुगलक द्वारा वर्ष 1326 ई. से 1327 ई. के मध्य में करवाया गया था। इस किले का निर्माण तुगलको ने स्वंय और अपनी जनता को मंगोलों से बचाने के लिए किया था।
यह किला और इसके आस-पास की संरचनाये वर्तमान में खंडहरो में बदल चुकी है जिस कारण इस किले के निर्माण और अन्य उद्देश्यों के बारे में संपूर्ण जानकारी नही है। इस किले के परिसर में स्थित लाल कोट और बीजमंडल जैसी संरचनाओ का वर्णन प्रसिद्ध इतिहासकार और यात्री इब्न बतूता ने अपने यात्रा वृतांत में किया है।
इब्न बतूता ने अपने यात्रा वृतांत में यह वर्णित किया है की इस किले और इसके आस-पास की संरचनाये जैसे पुरानी दिल्ली, सिरी और तुगलकाबाद को प्रसिद्ध शासक मुहम्मद शाह देखना चाहते थे परंतु उन्होंने अधिक लागत आने के कारण इन स्थानों को अधुरा ही देखा था। इब्न बतूता ने अपने वृतांत में सुतन पैलेस का भी जिक्र किया थाई जिसमे लगभग 1000 स्तंभ बनाए गये थे।
जहानपनाह किला के रोचक तथ्य
- इस लोकिप्रिय किले के निर्माण में लगभग 1 वर्ष से अधिक का समय लगा था, इस किले का निर्माण तुगलक़ राजवंश के शासक मुहम्मद-बिन तुगलक ने वर्ष 1326 ई. से 1327 ई. के मध्य करवाया था।
- यह किला भारत के सबसे बड़े और भव्य किलो में से एक है, यह किला लगभग 49.4 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है।
- तुग़लकाबाद के दक्षिणी पहाड़ियों पर बना अदीलबाद (मुहम्मदाबाद) का किला जहाँपनाह किले की बाह्य सुरक्षा दीवार के रूप में कार्य करता है। इस किले की दीवारे लगभग 12 मीटर मोटी और लगभग 8 कि.मी. तक लंबी है।
- इस किले के परिसर में स्थित बेगमपुर मस्जिद के आरंभिक आंगन की लंबाई लगभग 75 मीटर और चौड़ाई लगभग 80 मीटर है, इस मस्जिद के आंतरिक आंगन का आकार भी कुछ इसी समान है जिसकी लंबाई लगभग 90 मीटर और चौड़ाई लगभग 94 मीटर है।
- इस किले में स्थित बेगमपुर मस्जिद का निर्माण प्रसिद्ध वास्तुकार जहीर अल-दीन अल-जयुश ने किया था, इस मस्जिद में 9 बड़े प्राथना कक्ष भी मौजूद है, इस मस्जिद में 3 बड़े मेहराब वाले द्वार भी मौजूद है।
- इस किले के परिसर में स्थित बिजयमंडल की कुल लंबाई लगभग 74 मीटर और कुल चौड़ाई लगभग 82 मीटर है, यह एक वर्गाकार संरचना है जिस पर की एक विशालका्य गुंबद बनाया गया है।
- वर्ष 1934 ई. में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा इस क्षेत्र में खुदाई करवाई गई थी जिसमे हज़ार सुतन पैलेस के 1000 से अधिक लकड़ी के खंभे मिलने का खुलासा हुआ था, ऐसा माना जाता था की यह उस महल का आधार थे।
- बिजयमंडल के उत्तर से मात्र 500 मीटर की दुरी पर कलुसराई मस्जिद स्थित है जोकि तुगलक़ वास्तुकला शैली में बनाई गई एक लोकप्रिय मस्जिद थी, वर्तमान में इस मस्जिद पर स्थानीय लोगो का आधिपत्य है।
- बेगमपुर मस्जिद के पूर्व में, सेराई शाहजी गांव में मुगल काल की कई इमारतों को देखा सकता है जिनमें सेराई शाजी महल काफी प्रमुख स्मारक है। इस स्मारक में शेख फरीद मुर्तजा खान का मकबरा स्थित है, जिसका निर्माण मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान किया गया था।
- इस किले के परिसर में स्थित लाल गुंबद नामक संरचना का निर्माण प्रसिद्ध संत शेख कबीरुद्दीन औलिया के मकबरे के रूप में किया गया था जोकि 14वीं शताब्दी में प्रसिद्ध सूफी संत शेख रोशन चिरघ-ए-दिल्ली के शिष्य रह चुके थे।
- इस किले के अन्य प्रसिद्ध संरचनाओ में से प्रमुख संरचनाये साधना एन्क्लेव के परिसर में स्थित 3 कब्रे है, जिनमे से आज केवल शेख अलाउद्दीन की ही कब्र सही-सलामत हालत में है।
- इस किले और इसकी प्राचीन संरचनाओ के संरक्षण में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने लगभग 15 लाख रुपये की लागत खर्च की है।