रायगढ़ किला संक्षिप्त जानकारी
स्थान | रायगढ़, महाराष्ट्र (भारत) |
निर्माण | 1030 ई. |
निर्माता | छत्रपति शिवाजी |
प्रकार | किला |
रायगढ़ किला का संक्षिप्त विवरण
भारत कई महान और शक्तिशाली साम्राज्यों का निवास स्थान रहा है, जिन्होंने भारत के कई क्षेत्रो में विभिन्न प्रकार के किलो और महलो का निर्माण करवाया है। यह किले भारतीय इतिहास को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखते हुये आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुये है। भारत के सबसे ऐतिहासिक और महान किलों में से एक रायगढ़ किला महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित है, यह किला भारतीय संस्कृति और वास्तुकला का सर्वोच्च उदाहरण है।
रायगढ़ किला का इतिहास
छत्रपति शिवाजी महाराज ने वर्ष 1656 ई. में जवली के राजा चंद्राराव मोर के किले को अपने कब्जे में कर लिया था और उनके किले “रैरी” का पुनर्निर्माण और विस्तार कर इसका नाम बदलकर रायगढ़ रखा जिसके बाद यह मराठा साम्राज्य की राजधानी बन गया था। इस किले के आधार पर ही पाचाड और रायगढ़वाड़ी के गांव आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुये है, यह दोनों गाँव मराठा शासन के दौरान बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते थे।
इस किले को राजा चंद्राराव मोर से छिन्न के बाद, छत्रपति शिवाजी महाराज ने रायगढ़ से 2 मील दूर एक और किला लिंगाना बनाया, जिसे कैदियों को रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इस किलो को शिवाजी महाराज के बाद कई साम्राज्यों ने अपने कब्जे में ले लिया था जिसमे प्रसिद्ध मुगल साम्राज्य और ब्रिटिश साम्राज्य सम्मिलित थे।
रायगढ़ किला के रोचक तथ्य
- भारत के सबसे प्रसिद्ध और ऐतिहासिक किलो में से एक रायगढ़ किले का सर्वप्रथम निर्माण वर्ष 1030 ई. में मौर्य राजा चंद्रराव मोरे द्वारा करवाया गया था।
- राजा चंद्रराव मोरे की मृत्यु के उपरांत यहाँ पर कमजोर शासको का शासन शुरू हो गया था, जिसके परिणाम स्वरूप वर्ष 1656 ई. के आसपास मराठा साम्राज्य के राजा शिवाजी महाराज ने इस किले पर अपने अधीन कर कुछ वर्षो के लिए इसे अपना निवास स्थान बना लिया था।
- शिवाजी महाराज ने कुछ समय बाद इसमें कुछ सुधार और इसका पुनर्निर्माण करवाया था, जिसके बाद इसका नाम बदलकर रायगढ़ रखा दिया था। वह इस किले से इतने भावनात्मक रूप से जुड़े हुये थे की उन्होंने वर्ष 1674 में इसे अपने राज्य की राजधानी तक बना दिया था।
- वर्ष 1689 ई. में इस किले पर प्रसिद्ध मुगल साम्राज्य के क्षेत्रीय कर्मचारी जुल्फखार खान ने अपना आधिपत्य स्थापित कर यहाँ से मराठाओं को उखाड़ फेंका और इसका नाम बदलकर “इस्लामगढ” रख दिया था। जुल्फखार खान के बाद इस किले पर सिद्धि फथेखान ने कब्जा कर लिया और 1733 ई. तक इसकी सारी की सारी गतिविधियों को अपने नियन्त्रण में रखा था।
- वर्ष 1765 ई. में महाराष्ट्र के दक्षिणी में स्थित सिंधुदुर्ग जिले में मालवान के साथ-साथ रायगढ़ का किला को भी ब्रिटिशो द्वारा चलाये गये एक सशस्त्र अभियान का सामना करना पड़ा था, जिस कारण इस किले को काफी क्षति उठानी पड़ी और इसके कई प्रमुख इमारते नष्ट हो गई थी।
- वर्ष 1818 में इस किले पर ब्रिटिशो का आधिपत्य हो गया लेकिन उनके द्वारा पहले किए गए हमले में इस किले का काफी नुकसान हुआ था, जिस कारण इसका ज्यादातर भाग नष्ट हो गया था।
- इस किले को मुख्यत: 6 मंडलों में विभाजित किया गया था, जिसके प्रत्येक मंडल में एक निजी आराम कक्ष भी बनाया गया था।
- यह किला मुगल, मराठा और यूरोपीय वास्तुकला के मिश्रण का उचित उदाहरण है क्यूंकि इसमें जिस तरह से महलो को बनाने के लिए लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है वह इन्ही की वस्तुक्लाओ में सम्मिलित है जो इसका मुख्य आकर्षण केंद्र भी है।
- इस किले के किनारे से गंगा सागर नामक एक प्रसिद्ध झील भी बहती है, जोकि मनमुग्ध कर देने वाला दृश्य प्रस्तुत करती है, ऐसा माना जाता है कि इस झील के कारण ही इस किले के आस-पास की मृदा इतनी उपजाऊ थी कि यहाँ वर्षभर विभिन्न प्रकार की खेती एक साथ की जाती थी।
- यह किला भारत के सबसे अद्भुत और ऊँचे किलो में से एक है जो लगभग 1,356 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
- इस किले में एक विशेष प्रकार का बाजार भी मौजूद है, जहाँ से पर्यटक अपनी आवश्कताओं की वस्तुएं आसानी से खरीद सकते है।
- विश्वभर में प्रसिद्ध इस किले में प्रवेश करने के लिए आपको लगभग 1737 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ेगी।
- यह किला ट्रेकिंग के शौकीन लोगों को बहुत पसंद आता है क्यूंकि यह ऊँचाई पर स्थित है इससे यहां ट्रेकिंग करना ओर भी मजेदार हो जाता है, इसकी चढ़ाई रोपवे में बनी हुई है, जोकि पूरी 760 मीटर लंबी है।
- इस किले का एकमात्र मुख्य मार्ग "महा-दरवाजा" (विशाल द्वार) से होकर गुज़रता है। महा-दरवाजा के दरवाजे के दोनों किनारों पर दो विशाल गढ़ हैं, जिनकी ऊंचाई में लगभग 65-70 फीट हैं। इस दरवाजे के स्थान से किले का शीर्ष 600 फीट ऊंचा है।