इस अध्याय के माध्यम से हम जानेंगे दयानंद सरस्वती (Dayananda Saraswati) से जुड़े महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्य जैसे उनकी व्यक्तिगत जानकारी, शिक्षा तथा करियर, उपलब्धि तथा सम्मानित पुरस्कार और भी अन्य जानकारियाँ। इस विषय में दिए गए दयानंद सरस्वती से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित किया गया है जिसे पढ़कर आपको प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में मदद मिलेगी। Dayananda Saraswati Biography and Interesting Facts in Hindi.
दयानंद सरस्वती के बारे में संक्षिप्त जानकारी
नाम | दयानंद सरस्वती (Dayananda Saraswati) |
वास्तविक नाम | मूलशंकर |
जन्म की तारीख | 12 फरवरी 1824 |
जन्म स्थान | मोरबी, गुजरात (भारत) |
निधन तिथि | 30 अक्टूबर 1883 |
माता व पिता का नाम | यशोदाबाई / करशनजी लालजी तिवारी |
उपलब्धि | 1875 - आर्य समाज के संस्थापक |
पेशा / देश | पुरुष / दार्शनिक / भारत |
दयानंद सरस्वती (Dayananda Saraswati)
महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे। सरस्वती जी एक संन्यासी तथा एक महान चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना था। इन्होने ही सबसे पहले 1876 में ‘स्वराज्य" का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया था। उन्होंने वैदिक विचारधाराओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम किया। इसके बाद, दार्शनिक और भारत के राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन ने उन्हें “आधुनिक भारत के निर्माता” में से एक कहा, जैसा कि श्री अरबिंदो ने किया था।
दयानंद सरस्वती का जन्म
दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को टंकारा मोरबी, गुजरात (भारत) में हुआ था| इनके बचपन का नाम मूलशंकर तिवारी था| इनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी और उनकी माँ का नाम यशोदाबाई था। इनके पिता एक कर-कलेक्टर होने के साथ ब्राह्मण परिवार के एक अमीर, समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे।
दयानंद सरस्वती का निधन
दयानंद सरस्वती की हत्या करने के अनेक प्रयास हुए परन्तु वह इन प्रयासों से कई बार बच गए थे इनके कुछ जगहों पर जहर भी दिया गया था लेकिन हठ योग के अपने नियमित अभ्यास के कारण वे इस तरह के सभी प्रयासों से बच गए। लेकिन 30 अक्टूबर 1883 (59 वर्ष की आयु) अजमेर , अजमेर-मेरवाड़ा , ब्रिटिश भारत (वर्तमान राजस्थान , भारत ) में इनके दूध के गिलास में कांच के छोटे-छोटे टुकड़े मिला दिए और परियाप्त उपचार न मिलने के कारण इनकी मृत्यु हो गयी।
दयानंद सरस्वती की शिक्षा
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने हुगली मोहसिन कॉलेज (बंगाली परोपकारी मुहम्मद मोहसिन द्वारा स्थापित) और बाद में प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता में 1858 में कला में डिग्री के साथ स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। स्कूल के पहले स्नातक बनने के लिए परीक्षा। बाद में उन्होंने 1869 में कानून की डिग्री प्राप्त की। 1858 में, उन्हें जेसोर के एक डिप्टी कलेक्टर (उनके पिता द्वारा आयोजित उसी प्रकार का पद) नियुक्त किया गया। वह 1891 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होकर एक डिप्टी मजिस्ट्रेट बन गए। उनके काम के वर्षों को उन घटनाओं के साथ पूरा किया गया, जिन्होंने उन्हें सत्ताधारी अंग्रेजों के साथ संघर्ष में लाया। हालाँकि, उन्हें 1894 में भारतीय साम्राज्य के आदेश में एक साथी बनाया गया था।
दयानंद सरस्वती का करियर
दयानंद सरस्वती का पूरा नाम महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती था यह आर्य समाज के प्रवर्तक और प्रखर सुधारवादी संन्यासी थे। अपनी बहिन की मृत्यु से अत्यन्त दु:खी होकर इन्होने संसार त्याग करने तथा मुक्ति प्राप्त करने का निश्चय था। दयानंद सरस्वती को 14 वर्ष की उम्र तक उन्हें रुद्री आदि के साथ-साथ यजुर्वेद तथा अन्य वेदों के भी कुछ अंश कंठस्थ हो गए थे। वे व्याकरण के भी अच्छे ज्ञाता थे। वर्ष 1863 से 1875 ई. तक स्वामी जी देश का भ्रमण करके अपने विचारों का प्रचार करते रहें। उन्होंने वेदों के प्रचार करने का कार्य-भार संभाला था और इस काम को पूरा करने के लिए संभवत: 7 या 10 अप्रैल 1875 ई. को ‘आर्य समाज" नामक संस्था की स्थापना की थी। आर्यसमाज के नियम और सिद्धांत प्राणिमात्र के कल्याण के लिए है। संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना है। महर्षि दयानन्द ने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों तथा अन्धविश्वासों और रूढियों-बुराइयों को दूर करने के लिए, निर्भय होकर उन पर आक्रमण किया था। इसके लिए वे ‘संन्यासी योद्धा" भी कहलाए थे। वर्ष 1873 में ‘आर्योद्देश्यरत्नमाला" नामक पुस्तक प्रकाशित हुई जिसमें स्वामी जी ने एक सौ शब्दों की परिभाषा वर्णित की है। इनमें से कई शब्द आम बोलचाल में आते हैं। वर्ष 1881 में स्वामी दयानन्द ने ‘गोकरुणानिधि" नामक पुस्तक प्रकाशित की जो कि गोरक्षा आन्दोलन को स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाने का श्रेय भी लेती है। लाला लाजपत राय ने कहा था की- स्वामी दयानन्द मेरे गुरु हैं उन्होंने हमे स्वतंत्रता पूर्वक विचारना , बोलना और कर्त्तव्यपालन करना सिखाया था। स्वामी दयानन्द के प्रमुख अनुयायियों में लाला हंसराज ने 1886 में लाहौर में ‘दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज" की स्थापना की तथा स्वामी श्रद्धानन्द ने 1901 में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कई धार्मिक व सामाजिक पुस्तकें अपनी जीवन काल में लिखीं। प्रारम्भिक पुस्तकें संस्कृत में थीं, किन्तु समय के साथ उन्होंने कई पुस्तकों को आर्यभाषा (हिन्दी) में भी लिखा, क्योंकि आर्यभाषा की पहुँच संस्कृत से अधिक थी। हिन्दी को उन्होंने ‘आर्यभाषा" का नाम दिया था। उत्तम लेखन के लिए आर्यभाषा का प्रयोग करने वाले स्वामी दयानन्द अग्रणी व प्रारम्भिक व्यक्ति थे। आज भी इनके अनुयायी देश में शिक्षा आदि का महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
दयानंद सरस्वती के पुरस्कार और सम्मान
रोहतक में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, अजमेर में महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, जालंधर में डीएवी विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा गया है। और इसके अतिरिक्त उद्योगपति नानजी कालिदास मेहता ने महर्षि दयानंद विज्ञान महाविद्यालय का निर्माण किया और इसे स्वामी दयानंद सरस्वती के नाम पर रखने के बाद पोरबंदर की एजुकेशन सोसायटी को दान कर दिया था।
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व्यक्ति | उपलब्धि |
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नीचे दिए गए प्रश्न और उत्तर प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं। यह भाग हमें सुझाव देता है कि सरकारी नौकरी की परीक्षाओं में किस प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं। यह प्रश्नोत्तरी एसएससी (SSC), यूपीएससी (UPSC), रेलवे (Railway), बैंकिंग (Banking) तथा अन्य परीक्षाओं में भी लाभदायक है।
महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर (FAQs):
- प्रश्न: दयानंद सरस्वती को कितनी वर्ष की उम्र तक रुद्री आदि के साथ-साथ यजुर्वेद तथा अन्य वेदों के भी कुछ अंश कंठस्थ हो गए थे?उत्तर: 14 वर्ष
- प्रश्न: आर्य समाज के संस्थापक कौन थे?उत्तर: स्वामी दयानंद सरस्वती
- प्रश्न: आर्योद्देश्यरत्नमाला नामक पुस्तक प्रकाशित हुई थी?उत्तर: 1873
- प्रश्न: वर्ष 1881 में स्वामी दयानन्द ने कौन-सी पुस्तक प्रकाशित की जो कि गोरक्षा आन्दोलन को स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाने का श्रेय भी लेती है?उत्तर: गोकरुणानिधि
- प्रश्न: दयानंद सरस्वती की मृत्यु किस वजह से हुई थी?उत्तर: कांच पीसकर पिलाने से