अरुणाचलेश्वर मंदिर संक्षिप्त जानकारी
स्थान | तिरुवनमलाई शहर, तमिलनाडु राज्य (भारत) |
निर्माण (किसने बनवाया) | पल्लव वंश |
निर्माणकाल | 9वीं शताब्दी |
देवी और देवता | अरुणाचलेश्वरा (शिव) और अन्नामलाई अम्मन (पार्वती) |
समर्पित | भगवान शिव |
प्रकार | ऐतिहासिक हिन्दू मंदिर |
अरुणाचलेश्वर मंदिर का संक्षिप्त विवरण
भारतीय राज्य तमिलनाडू के तिरुवनमलाई जिले में शिव का अनूठा मंदिर स्थित है, जिसे अन्नामलैयार या अरुणाचलेश्वर शिव मंदिर कहकर संबोधित किया जाता है। यह मंदिर तिरुवनमलाई जिले अन्नामलाई पर्वत के क्षेत्र तराई में स्थित है, जो इसे एक विशेष प्रकार की भौगोलिक संरचना प्रदान करता है। इस मंदिर में हर पूर्णिमा को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और खासतौर पर कार्तिक पूर्णिमा पर विशाल मेला लगता है। श्रद्धालु को यहां पहुँचने से पहले अन्नामलाई पर्वत की 14 किलोमीटर लंबी परिक्रमा करनी पड़ती है।
अरुणाचलेश्वर मंदिर का इतिहास
मंदिर में प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार अरुणाचलेश्वर मंदिर की वर्तमान संरचना और मीनारें चोल वंश के राजाओं द्वारा बनवाई गई थी। मंदिर में मिले और भी शिलालेखों द्वारा यह बात भी साबित हुई है, की यह क्षेत्र 9वीं शताब्दी से पहले पल्लव राजाओं के अधीन था, जिनका साम्राज्य कांचीपुरम तक फैला हुआ था।
इतिहासकारों के अनुसार चोल राजाओं ने 850 ई॰ से लेकर 1280 ई॰ तक तिरुवन्नमलाई शहर पर शासन किया था और यह मंदिर के संरक्षक के रूप में कार्यरत रहे थे। 1328 ई॰ में होयसाल राजवंश के राजा वीरा बल्लाला तृतीय ने तिरुवन्नमलाई शहर को राजधानी बनाया था।
जिसके बाद 1336 ई॰ से 1485 ई॰ तक संगमा राजवंश के विजयनगर शासकों ने और 1491 ई॰ से 1515 ई॰ तक सलुवा राजवंश और तुलुवा राजवंश ने मंदिर का विस्तार और मंदिर का रखरखाव किया था।
अरुणाचलेश्वर मंदिर के रोचक तथ्य
- अरुणाचलेश्वर मंदिर का परिसर 10 एकड़ जमीन पर फैला हुआ हैं और वर्तमान समय में यह भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक माना जाता है।
- अरुणाचलेश्वर मन्दिर के परिसर में पाँच शिव मन्दिर हैं जिसमें भूमि, जल, वायु, आकाश और अग्नि शामिल हैं और यह प्रत्येक एक प्राकृतिक तत्व की अभिव्यक्ति को दर्शाते हैं।
- लिंगम द्वारा उनकी मूर्ति को अग्नि लिंगम कहा जाता है, जिसमें उनकी पत्नी पार्वती को अन्नामलाई अम्मन के रूप में दर्शाया गया है।
- मंदिर के पीठासीन देवता 7वीं शताब्दी के तमिल सायवा विहित कार्यों में प्रतिष्ठित है और कवि मणिक्कवासाकार जिन्हे तमिल संत कवियों के नयनार रूप में जाना जाता है, उन्होने 9वीं शताब्दी में यहाँ सैवित तिरुमुरई नामक तमिल ग्रंथ की रचना की थी।
- मंदिर के अंदर चार गेटवे टावर हैं जिन्हें गोपुरम के नाम से जाना जाता है। मंदिर का सबसे ऊंचा गेटवे टावर पूर्वी राजगोपुरम है जिसकी ऊंचाई 66 मीटर है। इसी कारण यह मंदिर भारत के सबसे ऊंचे मंदिरों में शामिल किया जाता है और यह 1572 ई॰ में शिवनेसा और उनके भाई लोकनाथ के कहने पर बनाया गया था।
- मंदिर के पश्चिम में स्थित टावर को पेई गोपुरम कहा जाता है, दक्षिणी टावर को तिरुमंजंगोपुरम और उत्तरी दिशा में स्थित टावर को अम्मानी अम्माँ गौरामी कहा जाता है।
- मंदिर के परिसर में संगम राजवंश द्वारा बने गए कई हॉल मौजूद हैं जिसमें ग्यारह हजार स्तंभ वाला विशाल हॉल शामिल है।
- मंदिर में प्रतिदिन सुबह साढ़े पांच बजे से रात 10 बजे तक छह बार अनुष्ठान होते हैं और भारतीय कैलेंडर अनुसार बारह वार्षिक उत्सव होते हैं। यहाँ कार्तिगई दीपम त्योहार नवंबर और दिसंबर के बीच पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
- मंदिर में प्रत्येक पुर्णिमा से एक दिन पहले तीर्थयात्री गिरिवलम नामक एक पूजा में मंदिर के आधार और अरुणाचल पहाड़ियों पर परिक्रमा करते हैं, जो एक लाख तीर्थयात्रियों द्वारा प्रतिवर्ष की जाती है।
- अरुणाचलेश्वर के मुख्य मंदिर के पूर्वी दिशा में नंदी और सूर्य कीप्रतिमा बनी हुई है, जो मंदिर की सबसे पुरानी संरचना है।
- मंदिर के गर्भगृह की दीवारों के पीछे, विष्णु के एक अवतार "वेणुगोपालस्वामी" की छवि है जिसके साथ ही गर्भगृह के चारों ओर, सोमस्कंदर, दुर्गा, चन्देश्वर, गजलक्ष्मी, अरुमुगास्वामी, दक्षिणामूर्ति, स्वर्णबैरवर, नटराज, और लिंगोद्भवार की प्रतिमाएँ हैं।
- मुख्य मंदिर के गर्भगृह की चारों दिशाओं में पल्लियाराई नामक चार गर्भगृह बने हुए हैं और हजार-स्तंभ वाले हॉल के दक्षिण में, सुब्रमया और एक बड़े टैंक के लिए एक छोटा मंदिर बना हुआ है।
- मंदिर के अंदर भूमिगत लिंगम, वह स्थान है जहाँ रमण महर्षि ने 1879 ई॰ से 1950 ई॰ के मध्य अपनी तपस्या की थी।
- मंदिर के तीसरी परिसीमा में सोलह स्तंभों वाली दीपा दर्शन मंडपम या हॉल ऑफ लाइट है। मंदिर मे स्थित मगिजा नामपेड़ पवित्र और औषधीय माना जाता है।
- मंदिर के अंदर स्थित शादी मंडप, कल्याण मंडपम, दक्षिणपूर्व के पश्चिम में है जिसे विजयनगर शैली में बनाया गया है।
- मंदिर के तीसरे प्रागंण में वसंत मंडपम स्थित है जिसे हॉल ऑफ स्प्रिंग भी कहा जाता है और इसी प्रांगण में मंदिर का कार्यालय और कलहतीश्वर मंदिर शामिल हैं।
- मंदिर के चौथे प्रांगण में एक नंदी, ब्रह्मा तीर्थ, मंदिर की टंकी, यानाई थिराई कोंडा नामक विनायगा मंदिर और नंदी की छह फुट ऊंची प्रतिमा वाला एक हॉल है, जिसे वल्लला महाराजा द्वारा निर्मित किया गया था।
अरुणाचलेश्वर मंदिर कैसे पहुँचे
- सड़क मार्ग तिरुवन्नामलाई अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। मंदिर से 69 किमी की दूर पर तिण्डिवनं रेलवे स्टेशन और 63.2 किमी की दूरी पर विलुप्पुरम जंक्शन हैं यहाँ बस और टैक्सी से मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त वायु द्वारा मंदिर का सबसे निकटतम हवाई अड्डा पुदुचेरी हवाई अड्डा है यह मंदिर से 106 किमी की दूरी पर स्थित है और यहाँ बस और टैक्सी से मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।