गुरुवायुर मंदिर संक्षिप्त जानकारी

स्थानत्रिशूर (थ्रिसुर), केरल (भारत)
निर्माणकाल17वीं शताब्दी (वर्तमान मंदिर का जिक्र)
प्रकारहिन्दू मंदिर
मुख्य देवतागुरुवायुरप्पन (कृष्ण भगवान का बालरूप)

गुरुवायुर मंदिर का संक्षिप्त विवरण

गुरुवायूर मंदिर भारतीय राज्य केरल के त्रिशूर (थ्रिसुर) जिले के अंतर्गत आने वाले गुरुवायूर में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थल है। केरल से लगभग 30 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह स्थान आमतौर दक्षिण की द्वारका के नाम से भी जाना जाता है। गुरुवायूर मंदिर भारत में चौथा सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर को "भूलोक वैकुनतम" भी कहा जाता है। यह मंदिर भगवान गुरुवायुरप्पन (कृष्ण का बालरूप) को समर्पित है।

इस मंदिर का मुख्य त्यौहार गुरुवायुर एकादशी है। इसके अतिरिक जन्माष्टमी, कुंभम उत्सव आदि पर्वों पर भी मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है। गुरुवायुर श्री कृष्ण मंदिर (Guruvayur Temple) आध्यात्मिक कारणों के साथ अपने रीति-रिवाजों के लिए भी प्रसिद्ध है। यह मंदिर कई शताब्दियों पुराना है, जिसे देखने के लिए प्रतिदिन हजारो की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते है।

गुरुवायुर मंदिर का इतिहास

मंदिर के पीछे की पौराणिक कथा: इस मंदिर की स्थापना से संबंधित कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नही हैं, लेकिन गुरुवायूर मंदिर के निर्माण के पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा का वर्णन मिलता है, जो भगवान् गुरु बृहस्पति और वायु (पवन देवता) से सम्बंधित है।

वर्तमान युग के आरम्भ में, एक बार जब द्वारका में भयंकर बाढ़ आई थी और बाढ़ के दौरान भगवान बृहस्पति को कृष्ण की तैरती हुई एक मूर्ति मिली थी। उन्होंने उस प्रतिमा की स्थापना में केरल कर दी।

प्रतिमा की स्थापना गुरु एवं वायु के द्वारा होने के कारण इस स्थान को 'गुरुवायुर' के नाम से ही पुकारा जाने लगा, तब से यह पवित्र स्थल इसी नाम से प्रसिद्ध है।

यह माना जाता है कि यह मूर्ति जो अब गुरुवायुर में है, वह द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण द्वारा प्रयोग की गयी थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस मंदिर को स्वंय विश्वकर्मा द्वारा बनवाया गया था और मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया था कि सूर्य की पहली किरण सीधे भगवान गुरुवायुर के चरणों पर गिरें। केरल में स्थित वर्तमान मंदिर का उल्लेख करीब 17वीं शताब्दी में मिलता हैं, इस समय के तमिल संतों के गीतों में कृष्ण मंदिर का जिक्र किया गया है।

गुरुवायुर मंदिर के रोचक तथ्य

  1. केरल में बने इस प्राचीन मंदिर का मुख्य आकर्षण यहां स्थित भगवान कृष्ण की एक चार हाथों वाली मूर्ति है, इस प्रतिमा में भगवान हाथों में शंख, सुदर्शन चक्र, गदा और तुलसी माला के साथ कमल का फूल पकड़े हुए हैं।
  2. मंदिर के बिहार एक 7 मीटर ऊंचा दीपस्तंभ (दीपों का स्तंभ) भी है, जो जलने के बाद बेहद भव्य दिखाई देता है।
  3. यहाँ पर भगवान कृष्ण को 'उन्निकृष्णन', 'कन्नन' और 'बालकृष्णन' आदि नामों से भी जाना जाता है।
  4. यह मंदिर दो प्रमुख साहित्यिक कृतियों के लिए भी विख्यात है, जिनमें मेल्पथूर नारायण भट्टाथिरी द्वारा निर्मित 'नारायणीयम' और पून्थानम द्वारा रचित 'ज्नानाप्पना' है। ये दोनो कृतियाँ भगवान गुरुवायुरप्प्न को समर्पित हैं।
  5. इन लेखों में भगवान के स्वरूप तथा भगवान के अवतारों को दर्शाया गया है। संस्कृत भाषा में रचित नारायणीयम में भगवान विष्णु के 10 अवतारों का उल्लेख किया आया है और मलयालम भाषा में रचित ज्नानाप्पना में जीवन के कटु सत्यों का अवलोकन किया गया है।
  6. भारत की आजादी से पूर्व अन्य मंदिरों की भांति इस मंदिर में भी हरिजनों के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध था।
  7. केरल के गांधी समर्थक श्री केलप्पन ने इस प्रथा के विरुद्ध आवाज उठायी और इसके लिये सन् 1933 ई0 में सविनय अवज्ञा प्रारंभ किया था, जिसमे महात्मा गांधी तथा श्री केलप्पन द्वारा आमरण अनशन की धमकी दी गई। उनका यह प्रयोग संन्तोषजनक तथा शिक्षाप्रद रहा।
  8. उनके द्वारा दी गयी धमकी से डरकर मंदिर के ट्रस्टियो की ओर से बैठक बुलाकर मंदिर के उपासको की राय ली गयी। बैठक मे 77% उपासको के द्वारा दिये गये बहुमत के आधार पर मंदिर में हरिजनों के प्रवेश को स्वीकृति दे दी गयी और इस प्रकार 1 जनवरी 1934 से केरल के श्री गुरूवायूर मंदिर में किये गये निश्चय दिवस की सफलता के रूप में हरिजनों के प्रवेश को सैद्वांतिक स्वीकृति दी गयी थी।
  9. मंदिर के अन्दर कृष्ण की बाल लीलाओ को प्रस्तुत करती हुई शानदार चित्रकारी की गयी है।
  10. अप्रैल 2018 में मंदिर से जुड़ा ‘ओट्टूपुरा ’ (मंदिर का भोजन स्थल) को गैर-हिंदुओं सहित सबके लिए खोल दिया गया है। इसके साथ ही मंदिर प्रबंधन ‘गुरूवयूर देवस्वोम’ ने भोजन स्थल में लगे ड्रेस कोड संबंधी प्रतिबन्ध भी हटा लिए है और श्रद्धालुओं को पैंट-कमीज और चप्पल- जूते पहनने की मंजूरी दे दी है।
  11. मंदिर में प्रवेश के लिए खास ड्रेस कोड है। पुरुष कमर पर मुंडु पहनते हैं और सीना खुला रहता है। औरतें साड़ी पहनती हैं। लड़कियों को लॉन्ग स्कर्ट और ब्लाउज पहनने की इजाजत है और गर्मी के दिनों में सलवार कमीज भी प्रवेश दिया जाता है, इसके अलावा सुरक्षा कारणों से मोबाइल फोन और कैमरा अन्दर लेना सख्त मना है।
  12. मंदिर के अन्दर केवल हिन्दू संप्रदाय के लोग ही प्रवेश कर सकते है, गैर-हिन्दू लोगों का मदिर में प्रवेश सर्वथा वर्जित है।
  13. मंदिर सुबह 3 बजे खुलता है और दोपहर 1 बजे दर्शन बंद होते हैं। शाम को पुन: 4.30 मंदिर खुलता है और रात में 10 बजे बंद होता है। यहां पांच पूजा और तीन सिवेली होती हैं। मंदिर का पुजारी सुबह मुख्य स्थान पर प्रवेश करने के बाद दोपहर तक कुछ भी खाता या पीता नहीं है।
  14. मंदिर में लगभग हर दिन विवाह और छोरॊनु का आयोजन किया जाता है।
  15. मंदिर में रोजाना प्रात:काल और शाम को नि:शुल्क भोजन का वितरण किया जाता है।
  16. गुरूवायूर में हाथियों के जुलूस वाला शिवेली का त्योहार अत्यंत प्रसिद्ध है, जहां मंदिर में रहने वाले देवताओं का हाथियों के साथ जुलूस निकला जाता है।
  17. मंदिर में वार्षिक उत्सव के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य जैसे कथकली, कूडियट्टम, थायाम्बका आदि का भी आयोजन किया जाता है।

  Last update :  Wed 3 Aug 2022
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