झांसी का किला संक्षिप्त जानकारी
स्थान | झांसी, उत्तर प्रदेश (भारत) |
निर्माण | 1613 ई. |
निर्माता | ओरछा नरेश “बीरसिंह जुदेव” |
प्रकार | किला |
झांसी का किला का संक्षिप्त विवरण
1857 की क्रांति का भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसमे एक से बढकर एक वीर योद्धाओ ने अपना विशेष योगदान दिया है, इन वीर योद्धाओ में रानी लक्ष्मीबाई और मंगल पांडे जैसे वीर नाम भी सम्मिलित है। रानी लक्ष्मी बाई का नाम भारतीय इतिहास के सुनहरे पन्नो में दर्ज है, उन्ही से संबंधित झांसी का किला अपनी वास्तुकला शैली और कलाकृतियों के लिए पूरे विश्वभर में मशहूर है।
झांसी का किला का इतिहास
इस विश्व प्रसिद्ध किले का निर्माण वर्ष 1613 में ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव द्वारा करवाया गया था। यह किला बुंदेला का सबसे शक्तिशाली किला हुआ करता था। 17वीं शताब्दी में मोहम्मद खान बंगेश ने महाराजा छत्रसाल पर आक्रमण कर दिया था, इस आक्रमण से महाराजा छत्रसाल को बचाने में पेशवा बाजीराव ने सहायता की थी जिसके बाद महाराजा छत्रसाल ने उन्हें राज्य का कुछ भाग उपहार के रूप में दे दिया था, जिसमे झाँसी भी शामिल था।
इसके बाद नारोशंकर को झाँसी का सूबेदार बना दिया गया। उन्होंने केवल झाँसी को ही विकसित नही किया बल्कि झाँसी के आस-पास स्थित दूसरी इमारतो को भी बनवाया। नारोशंकर के बाद झांसी में कई सूबेदार बनाए गये थे जिनमे रघुनाथ भी सम्मिलित थे जिन्होंने इस किले के भीतर महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर का भी निर्माण करवाया था।
वर्ष 1838 में रगुनाथ राव द्वितीय की मृत्यु के बाद ब्रिटिश शासको ने गंगाधर राव को झाँसी के नए राजा के रूप में स्वीकार किया। वर्ष 1842 ई. में राजा गंगाधर राव ने मणिकर्णिका ताम्बे से शादी की, जिसे बाद में रानी लक्ष्मीबाई के नाम से पुकारा जाने लगा था। वर्ष 1851 ई. में रानी ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम दामोदरराव रखा गया परंतु वह शिशु 4 महीने के भीतर ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था, इसके बाद महाराजा ने अपने भाई के एक पुत्र “आनंद राव” को गोद लिया जिसका नाम बाद में बदलकर दामोदर राव रख दिया गया था।
वर्ष 1853 में महाराजा की मृत्यु के बाद, गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना ने चुक का सिद्धांत लगाकर दामोदर राव को सिंहासन सौपने से मना कर दिया था। 1857 के विद्रोह दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने किले की बागडोर अपने हाथ में ले ली और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ अपनी सेना का नेतृत्व किया।
अप्रैल 1858 में जनरल ह्यूज के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना झाँसी को पूरी तरह से घेर लिया और 4 अप्रैल 1858 को उन्होंने झाँसी पर कब्ज़ा भी कर लिया। उस समय रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत दिखाकर ब्रिटिश सेना का सामना किया और घोड़े की मदद से महल से निकलने में सफल रही परंतु 18 जून 1858 में ब्रिटिश सेना से लड़ने के दौरान वह शहीद हो गई थी। वर्ष 1861 में ब्रिटिश सर्कार ने झाँसी के किले और झाँसी शहर को जियाजी राव सिंधियां को सौप दिया, जो ग्वालियर के महाराज थे लेकिन 1868 में ब्रिटिशो ने ग्वालियर राज्य से झाँसी को वापिस ले लिया था।
झांसी का किला के रोचक तथ्य
- इस भव्य किले का निर्माण वर्ष 1613 ई. में ओरछा साम्राज्य के प्रसिद्ध शासक राजा बीरसिंह जुदेव द्वारा करवाया गया था।
- यह किला भारत के सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश के झाँसी में स्थित है।
- यह किला भारत के सबसे भव्य और ऊँचे किलो में से एक है, यह किला पहाडियों पर बना हुआ है जिसकी ऊंचाई लगभग 285 मीटर है।
- यह किला भारत के सबसे अद्भुत किलो में से एक है, क्यूंकि इस किले के अधिकत्तर भागो का निर्माण ग्रेनाइट से किया गया है।
- यह ऐतिहासक किला भारत के सबसे विशाल किलो में शामिल है, यह किला लगभग 15 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है, यह किला 312 मीटर लंबा और 225 मीटर चौड़ा है जिसमे घास के मैदान भी सम्मिलित है।
- इस किले की बाहरी सुरक्षा दीवार का निर्माण पूर्णता ग्रेनाइट से किया गया है जो इसे एक मजबूती प्रदान करती है, यह दीवार 16 से 20 फुट मोटी है और दक्षिण में यह शहर की दीवारों से भी लगती है।
- इस विश्व प्रसिद्ध किले में मुख्यत: 10 प्रवेश द्वार है, जिनमे खंडेरो गेट, दतिया दरवाजा, उन्नाव गेट, बादागाओ गेट, लक्ष्मी गेट, सागर गेट, ओरछा गेट, सैनीर गेट और चंद गेट आदि प्रमुख है।
- इस किले के समीप ही स्थित रानी महल का निर्माण 19वीं शताब्दी में करवाया गया था, जिसका वर्तमान में उपयोग एक पुरातात्विक संग्रहालय के रूप में किया जाता है।
- वर्ष 1854 ई. में रानी लक्ष्मीबाई द्वारा ब्रिटिशो को महल और किले को छोड़कर जाने के लिए लगभग 60,000 रुपये की रकम दी गई थी।
- इस किले तक पंहुचने के सारे साधन मौजूद है, इसका सबसे निकटम रेलवे स्टेशन “झांसी रेलवे स्टेशन” है जो इससे 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, यहाँ पर हवाई जहाज की सहायता से भी पंहुचा जा सकता क्यूंकि मात्र 103 कि.मी. की दूरी पर ग्वालियर हवाई अड्डा मौजूद है।