मैसूर पैलेस संक्षिप्त जानकारी
स्थान | मैसूर, कर्नाटक (भारत) |
निर्माणकाल | (1897 ई. -1912 ई.) |
निर्माता | वाडियार शासको द्वारा |
वास्तुकार | हेनरी इरविन |
वास्तुकला | इंडो-सारसेनिक |
वर्तमान स्वामी | महारानी प्रमोदा देवी वाडियार |
वर्तमान संरक्षक | कर्नाटक सरकार |
नजदीकी हवाई अड्डा | मैसूर हवाई अड्डा |
नजदीक नदी | कबीनी नदी |
मैसूर पैलेस का संक्षिप्त विवरण
दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में स्थित मैसूर एक महत्वपूर्ण शहर है। आजादी से कुछ समय पहले तक मैसूर कर्नाटक के पूर्व महाराजा वोडेयार की राजधानी हुआ करता था। इस महल की अपनी कुछ ख़ास विशेषताएं है जैसे- इसकी समृद्ध सांस्कृति, सुंदर उद्यान व इसके भव्य महलों में की गई नक्काशीयाँ आगुंतको को इसकी ओर आकर्षित करती है।
मैसूर पैलेस का इतिहास
मैसूर पैलेस का अपना एक समृद्ध इतिहास है जिसका निर्माण वाडियार राजवंश ने 14वीं शताब्दी में किया था। साल 1638 में महल को आसमान से बिजली गिरने के कारण बहुत क्षति पंहुची थी जिसे वहाँ के शासको ने पुनपरिष्कृत करवाया था।
1793 में हैदर अली के बेटे टीपू सुल्तान द्वारा वाडियार राजा को हटा के मैसूर की सत्ता संभाल ली गई थी जिसके शासन के दौरान इस महल को मुस्लिम वास्तुकला शैली में ढाल दिया गया था।
1799 में जब टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई थी तो वाडियार राजवंश के पांच वर्ष के राजकुमार कृष्णराजा वाडियार तृतीय को राज सिंहासन पर बैठा दिया गया था जिसके बाद उन्होंने इस महल को पुन: हिंदू वास्तुकला शैली में बनवाया जो 1803 तक पूर्ण कर लिया गया था। 1897 में राजकुमारी जयलक्ष्स्मानी के विवाह समारोह के दौरान इस महल में आग लग गई थी जिसके कारण पूरा महल बर्बाद हो गया था। जिसके पुनर्निर्माण के लिए रानी केम्पा नानजमानी देवी ने प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार हेनरी इरविन को नियुक्त किया। हेनरी इरविन ने महल को 1897 में बनाना शुरू कर दिया और लगभग 15 वर्षो के बाद 1912 में इसे पूर्ण रूप से बनाकर रानी को सौंप दिया था।
मैसूर पैलेस के रोचक तथ्य
- इस मंदिर की सबसे पहली संरचना 14वीं शताब्दी में बनाई गई थी। इस महल को सर्वप्रथम चन्दन की लकड़ियों से बनाया गया था।
- यह महल लगभग 600 वर्षों (1350 ई. से 1950 ई.) तक मैसूर के शाही वाडियार परिवार का निवास स्थान रहा है।
- मैसूर बेंगलूरु से 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह दक्षिण भारत के अन्य प्रमुख शहरों से भी जुड़ा हुआ है।
- वर्तमान मैसूर पैलेस का निर्माण 1897 ई. से 1912 ई. के मध्य ब्रिटिश वास्तुकार हेनरी इरविन के नेतृत्व में किया गया था। इस महल के निर्माण में लगभग 41,47,913 रुपये की लागत आई थी।
- इसमें महल में एक 145 फुट ऊँची मीनार है, जिसके ऊपर संगमरमर के बने गुंबदों की संरचना उपस्थित है।
- इस महल में मुख्य रूप से 3 प्रवेश द्वार हैं। जिसमे पहला पूर्वी प्रवेश द्वार है जो सभी त्यौहारों के लिए, दूसरा दक्षिण प्रवेश द्वार है जो सामान्य पर्यटकों के लिए और तीसरा पश्चिम प्रवेश द्वार है जो केवल दशहरे के त्यौहार के लिए खोला जाता है।
- इस महल का मुख्य परिसर 156 फुट चौड़ा और 245 फुट लंबा है जिसमे सामान्य छोटे-मोटे काम किए जाते है।
- यह महल मैसूर के सबसे प्रसिद्ध त्यौहार दशहरा का प्रमुख स्थान है, जहाँ पर 10 दिनों तक सामान्य जनता यह त्यौहार बड़े धूम-धाम से मनाती है।
- महल में एक सोने का सिंहासन है जो मैसूर साम्राज्य के शासकों का शाही सिंहासन था। माना जाता है यह शाही सिंहासन शुद्ध 24 केरेट के सोने का बना है जिसका भार लगभग 200 किलोग्राम है।
- इस महल का एक सबसे महत्वपूर्ण कक्ष अंबविलास (दरबार-ए-खास) है जिसका उपयोग निजी दर्शकों के लिए एक कमरे के रूप में किया गया था।
- इस महल में कई मंडप है जिसमे से एक गुड़िया का मंडप (गोम्बे थॉटी) है जिसमे 84 किलोग्राम सोने से सजाए गए लकड़ी के हाथी हाउदा (यात्रा के लिए पालकी) सहित भारतीय और यूरोपीय मूर्तिकला और औपचारिक वस्तुओं का एक अच्छा संग्रह भी है।
- इस महल का सबसे सुंदर मंडप कल्याण मंडप है जिसे विवाह मंडप भी कहा जाता है। यह मंडप अष्टकोणीय आकार का बना हुआ है जिसमें बहु-रंग वाले रंगीन कांच की छत, ज्यामितीय पैटर्न और एक मोर मूल भाव वाला चित्रण हैं।