वेंकटेश्वर मंदिर संक्षिप्त जानकारी
स्थान | चित्तूर, आंध्र प्रदेश (भारत) |
निर्माणकाल | 9वीं शताब्दी |
वास्तुकला | कोविल |
प्रकार | भगवान हिन्दू मंदिर |
मुख्य देवी-देवता | वेंकटेश्वर या बालाजी |
वेंकटेश्वर मंदिर का संक्षिप्त विवरण
तिरुपति वेन्कटेशवर मन्दिर भारतीय राज्य के आंध्र प्रदेश में के चित्तूर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है। भगवान वेंकटेश्वर को बालाजी, श्रीनिवास और गोविंदा के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए तिरुमाला में बना यह मंदिर तिरुपति बालाजी मंदिर के नाम से विश्व विख्यात है।
प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। तिरुपति बालाजी का मंदिर देश के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। यहां पर प्रतिवर्ष बड़े-बड़े उद्योगपति, फिल्मी सितारे और राजनेताओं के अलावा दूर-दूर से लाखों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते है और अपनी इच्छा अनुसार चढ़वा चढाते है। कई शताब्दी पहले निर्मित यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का बेजोड़ उदाहरण हैं। तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है।
वेंकटेश्वर मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का निर्माण कब हुआ इसके मूल तथ्य उपलब्ध नहीं है, लेकिन इतिहासकारों द्वारा माना जाता है कि इस मंदिर के इतिहास का उल्लेख 9वीं शताब्दी में मिलता है, जब काँचीपुरम के पल्लव वंश शासकों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। 15वीं शताब्दी में तिरुपति बालाजी मंदिर को प्रसिद्धि मिलना आरम्भ हुआ था।
इस मंदिर का प्रबंधन 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला था। इस मंदिर का प्रबंधन वर्ष 1933 में मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंपा गया था।
आंध्रप्रदेश राज्य का निर्माण होने के बाद इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया था। तिरुपति बोर्ड नई दिल्ली, ऋषिकेश, गुवाहाटी, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद और कन्याकुमारी समेत कई शहरों और कस्बों में मंदिरों का संचालन करता है।
वेंकटेश्वर मंदिर के रोचक तथ्य
- हिन्दुओं का सबसे पवित्र तीर्थस्थल माना जाने वाला यह प्राचीन तिरूपति बालाजी का मंदिर तिरुमला पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है।
- बालाजी के सबसे प्राचीन मंदिर की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 3200 फीट है।
- मंदिर के अन्दर भगवान तिरुपति बालाजी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ विराजमान हैं।
- मंदिर परिसर में खूबसूरती से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं।
- मंदिर के मुख्य द्वार के दाईं ओर एक छड़ी रखी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि इसी छड़ी से बालाजी की बचपन में पिटाई हुई थी, जिसके चलते उनकी ठोड़ी पर चोट आई थी। इसके बाद से ही बालाजी की प्रतीमा की ठोड़ी पर चंदन लगाने का चलन शुरू हुआ था और तब से लेकर अब तक उनकी थोड़ी में चंदन का लेप लगया जाता है।
- मंदिर में एक दिया है जो काफी लम्बे समय से बिना तेल और घी के लगातार जल रहा है, ऐसी ही अनेक विशिष्टाओं से युक्त यह स्थल लोगो की अनन्य श्रद्धा का केंद्र बना हुआ हैं।
- मुख्य मंदिर के प्रांगण में भगवान वैंकटेश्चर की प्रतिमा स्थापित है, जिसे प्रतिदिन धोती और साड़ी से सजाया जाता है।
- भगवान की मूर्ति की सफाई के लिए एक ख़ास प्रकार के कपूर का इस्तेमाल किया जाता है जो पत्थर की दीवार पर रगड़ने पर तुरंत टूट जाता है लेकिन मूर्ति पर रगड़ने पर ऐसा कुछ नहीं होता है।
- मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गाँव है, जहाँ पर बाहरी लोगों का जाना निषेध है। वहाँ पर रहने वाले लोग काफी नियमो को मानते हैं। वहां की महिलाएँ ब्लाउज नहीं पहनती है। वहीँ से लाए गये फल और फूल भगवान को चढाए जाते है और वहीँ की ही वस्तुओं को चढाया जाता है जैसे- दूध, घी, माखन आदि।
- मंदिर परिसर में मुख्य दर्शनीय स्थलों में पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि शामिल है।
- तिरूपति बालाजी का मंदिर विश्व का दूसरा सबसे धनी मंदिर है। उसकी संपत्ति 50,000 करोड़ की है और सालाना आय करीब 650 करोड़ रुपये है। मंदिर में प्रतिदिन लगभग 50,000 से ज्यादा भक्त दर्शन करने आते है।