इस अध्याय के माध्यम से हम जानेंगे चित्तरंजन दास (Chittaranjan Das) से जुड़े महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्य जैसे उनकी व्यक्तिगत जानकारी, शिक्षा तथा करियर, उपलब्धि तथा सम्मानित पुरस्कार और भी अन्य जानकारियाँ। इस विषय में दिए गए चित्तरंजन दास से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित किया गया है जिसे पढ़कर आपको प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में मदद मिलेगी। Chittaranjan Das Biography and Interesting Facts in Hindi.
चित्तरंजन दास के बारे में संक्षिप्त जानकारी
नाम | चित्तरंजन दास (Chittaranjan Das) |
वास्तविक नाम | देशबंधु चित्तरंजनदास |
जन्म की तारीख | 05 नवम्बर 1870 |
जन्म स्थान | कोलकाता (भारत) |
निधन तिथि | 16 जून 1925 |
पिता का नाम | भुबन मोहन दास |
उपलब्धि | 1924 - अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष |
पेशा / देश | पुरुष / राजनीतिक नेता / भारत |
चित्तरंजन दास (Chittaranjan Das)
चित्तरंजन दास एक प्रसिद्द भारतीय नेता, राजनीतिज्ञ, वकील, कवि तथा पत्रकार थे। एक महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी नेता के साथ-साथ वो एक सफल विधि-शास्त्री भी थे। स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान उन्होंने ‘अलीपुर षड़यंत्र काण्ड" (1908) के अभियुक्त अरविन्द घोष का बचाव किया था। चित्तरंजन दास ने अपनी चलती हुई वकालत छोड़कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और पूर्णतया राजनीति में आ गए थे।
चित्तरंजन दास का जन्म
चित्तरंजन दास का जन्म 05 नवम्बर को कोलकाता (भारत)में हुआ था। इनका पूरा नाम देशबंधु चित्तरंजनदास था तथा इनका पूरा परिवार वकीलों से भरा हुआ था। इनके पिता का नाम भुबन मोहन दास और माता का नाम निस्तारिणी देवी था इनके पिता कलकत्ता उच्च न्यायालय के जाने-माने वकीलों में से एक थे। और इनके पिता कविताये भी लिखा करते थे। ये अपने माता पिता की इकलोती संतान थे।
चित्तरंजन दास का निधन
चित्तरंजन दास की मृत्यु 16 जून 1925 (उम्र 55) को दार्जिलिंग, ब्रितानी भारत में बीमारी के कारण हुई थी।
चित्तरंजन दास की शिक्षा
चित्तरंजन दास का परिवार वकीलों का परिवार था। चित्तरंजन दास के बड़े भाई सत्य रंजन ने इमैनुएल कॉलेज से मैट्रिक उत्तीर्ण किया और 1883-1886 के दौरान मध्य मंदिर में थे, और चित्तरंजन दास भी 1890-1894 के दौरान अपने बड़े भाई के साथ रहे। साथ रहकर उन्होंने सतीश रंजन दास (1891-1894), ज्योतिष रंजन दास और अतुल प्रसाद सेन (1892-1895) ने उनके मुकदमे का अनुसरण किया। लंदन में उन्होंने श्री अरबिंदो घोष, अतुल प्रसाद सेन और सरोजिनी नायडू के साथ दोस्ती की और अन्य लोगों के साथ मिलकर उन्होंने दादाभाई नौरोजी को ब्रिटिश संसद में पदोन्नत किया।
चित्तरंजन दास का करियर
सन् 1890 ई. में बी.ए. पास करने के बाद चितरंजन दास आइ.सी.एस्. होने के लिए इंग्लैंड गए और सन् 1892 ई. में बैरिस्टर होकर स्वदेश लौटे थे। चित्तरंजन दास ने अपनी चलती हुई वकालत छोड़कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और पूर्णतया राजनीति में आ गए थे। चित्तरंजन दास ‘अलीपुर षड़यंत्र काण्ड" (1908) के अभियुक्त अरविन्द घोष के बचाव के लिए बचाव पक्ष के वकील भी थे। वर्ष 1921 में अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन के ये अध्यक्ष थे। इन्होने ‘स्वराज पार्टी" का गठन भी किया था। इन्होंने 1923 में लाहौर तथा 1924 में अहमदाबाद में ‘अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस" की अध्यक्षता भी की थी।
चित्तरंजन दास के पुरस्कार और सम्मान
चित्तरंजन दास के सम्मान में कोलकाता के चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान ने अपनी विनम्र शुरुआत वर्ष 1950 में की थी जब चित्तरंजन कैंसर अस्पताल की स्थापना चितरंजन सेवा सदन के परिसर में की गई थी। अपनी मृत्यु से कुछ साल पहले चित्तरंजन ने इस संपत्ति को अपने घर और राष्ट्र के आसपास की भूमि सहित महिलाओं के जीवन की बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया था।
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