कॉलेजियम किसे कहते है?
कॉलेजियम का अर्थ: भारत में जिस व्यवस्था के तहत सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियां की जातीं हैं उस प्रणाली को “कॉलेजियम सिस्टम” कहा जाता है। एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए यह कमिशन बनाया था।
आइये जाने कॉलेजियम प्रणाली (सिस्टम) क्या है?
- भारतीय संविधान में कॉलेजियम व्यवस्था (सिस्टम) का कोई जिक्र नही है, इस व्यवस्था का उल्लेख न तो मूल संविधान में है और न ही उसके किसी संशोधन में।
- कॉलेजियम व्यवस्था 28 अक्टूबर 1998 को 3 जजों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए प्रभाव में आया था।
- कॉलेजियम प्रणाली के अंतर्गत भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों की समिति जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है। कॉलेजियम की सिफारिश मानना सरकार के लिए जरूरी होता है।
- इसके अलावा उच्च न्यायालय के कौन से जज पदोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
भारत में न्यायाधीशों (जजों) को नियुक्त करने की क्या प्रक्रिया है?
इस पोस्ट में आप जानेंगे कि कॉलेजियम प्रणाली (सिस्टम) भारत की न्याय व्यवस्था के लिए क्यों ठीक नही है:- भारत में न्यायाधीशों (जजों) को नियुक्ति की प्रक्रिया: केंद्र सरकार को वकीलों या जजों के नाम की सिफारिस कॉलेजियम के द्वारा ही भेजी जाती है। ठीक इसी प्रकार केंद्र सरकार भी अपने कुछ प्रस्तावित नाम कॉलेजियम को भेजती है। केंद्र के समक्ष कॉलेजियम से आने वाले नामों की जांच/आपत्तियों की छानबीन की जाती है और रिपोर्ट वापस कॉलेजियम को भेजी जाती है; सरकार इसमें कुछ नाम अपनी ओर से सुझाती है।
कॉलेजियम केंद्र द्वारा सुझाव गए नए नामों और कॉलेजियम के नामों पर केंद्र की आपत्तियों पर विचार करके फाइल दुबारा केंद्र के पास भेजती है। इस तरह नामों को एक-दूसरे के पास भेजने का यह क्रम जारी रहता है और देश में मुकदमों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जाती है। जब कॉलेजियम किसी वकील या जज का नाम केंद्र सरकार के पास “दुबारा” भेजती है तो केंद्र को उस नाम को स्वीकार करना ही पड़ता है, लेकिन “कब तक” स्वीकार करना है इसकी कोई समय सीमा नही है। इस समय उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश केएम जोसेफ के नाम के साथ यही प्रक्रिया चल रही है और उनकी नियुक्ति अटकी हुई है।
केंद्र ने जस्टिस जोसेफ के नाम की सिफारिश 26 अप्रैल को कॉलेजियम को लौटा दी थी। पांच सदस्यीय कॉलेजियम के दो जज इस मसले पर सरकार से बात करने के पक्ष में थे। उनका कहना था कि कॉलेजियम चाहे तो दोबारा जोसेफ के नाम की सिफारिश भेज सकती है, लेकिन सरकार ने उनके नाम की सिफारिश वापस भेजते वक्त जो मसले उठाए हैं, उन पर गौर कर के फैसला लेना बेहतर होगा। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 10 जनवरी को जोसफ और इंदु मल्होत्रा के नाम की सिफारिश एक साथ भेजी थी, लेकिन सरकार ने पिछले हफ्ते सिर्फ इंदु मल्होत्रा के नाम को मंज़ूरी दी। जोसेफ का नाम दोबारा विचार के लिए कॉलेजियम के पास भेजा गया है।
कौन है जस्टिस केएम जोसेफ?
जस्टिस केएम जोसेफ उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (चीफ जस्टिस हैं)। उन्हें 14 अक्टूबर 2004 को केरल हाईकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और उन्होंने 31 जुलाई 2014 को उत्तराखंड उच्च न्यायलय का प्रभार संभाला था। उन्होंने 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने का मोदी सरकार का आदेश खारिज कर दिया था और हरीश रावत सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि कॉलेजियम और केंद्र दोनों के पास फंसे जजों के 36% पद खाली हैं। इस समय (साल 2018 तक) भारत के 24 हाईकोर्ट में 395 और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के 6 पद रिक्त है। पिछले 2 साल से सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच मंजूरी ना मिलने के कारण न्यायालयों में नियुक्ति के लिए 146 नाम अटके हुए हैं। इन नामों में 36 नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास लंबित है, जबकि 110 नामों पर केंद्र सरकार की मंजूरी मिलनी बाकी है।
एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) का गठन कब किया था?
यूपीए सरकार ने 15 अगस्त 2014 को कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) का गठन किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून को असंवैधानिक करार दे दिया था। इस प्रकार वर्तमान में भी जजों की नियुक्ति और तबादलों का निर्णय सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम ही करता है। 6 सदस्यों की सहायता से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन किया जाना था, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इसका प्रमुख बनाया जाना था।
इसमें सुप्रीम कोर्ट के 2 वरिष्ठ जजों, कानून मंत्री और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ीं 2 जानी-मानी हस्तियों को सदस्य के रूप में शामिल करने की बात थी। एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) में जिन 2 लोगों को शामिल किए जाने की बात कही गई थी, उनका चुनाव सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष का नेता नहीं होने की स्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता वाली कमिटी करती। इसी पर सुप्रीम कोर्ट को सबसे ज्यादा आपत्ति थी।
अब संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें और देखें कि आपने क्या सीखा?
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कॉलेजियम प्रणाली प्रश्नोत्तर (FAQs):
सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त न्यायाधीशों का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता है। वे 65 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुंचने तक पद पर बने रहते हैं, जब तक कि वे इस्तीफा नहीं देते या संविधान में निर्दिष्ट कारणों से पहले ही हटा नहीं दिए जाते।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए आयु सीमा 65 वर्ष है। इसके बाद उन्हें संन्यास का फैसला लेना होगा. यह नियम भारतीय संविधान में वर्णित है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीशों का चुनाव महासभा द्वारा किया जाता है। ये जज नौ साल के लिए चुने जाते हैं और दोबारा चुने जा सकते हैं। इन 15 न्यायाधीशों में से पांच को हर तीन साल में चुना जा सकता है।
संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर केवल राष्ट्रपति ही उसे हटा सकता है। संविधान में सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की बहुत जटिल प्रक्रिया है।
देश के सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित 33 न्यायाधीश होते हैं। ये न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहते हैं।