महाभियोग क्या है या किसे कहते है?
महाभियोग की परिभाषा:
जब किसी भी देश की बड़े अधिकारी या प्रशासक पर विधानमंडल के समक्ष अपराध का दोषारोपण होता है तो इसे महाभियोग (इमपीचमेंट) कहा जाता है। लैटिन भाषा में 'इमपीचमेंट' शब्द का अर्थ है पकड़ा जाना है। अगर सरल शब्दों में कहे तो भारतीय संविधान के अनुसार महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसके द्वारा भारत के राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के न्यायाधीशों (जजों) को पद से हटाया जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में इसका ज़िक्र मिलता है।
भारतीय संविधान के अनुसार महाभियोग किस किस पर लगता है?
भारत के संविधान के अनुसार अनुच्छेद 124(4) सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के न्यायाधीशों (जजों) के महाभियोग से संबंधित है, जबकि अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति के महाभियोग से संबंधित है। भारतीय संविधान में प्रधानमंत्री, उप-राष्ट्रपति, राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री पर महाभियोग चलाने के लिए कोई प्रावधान नही है।
महाभियोग प्रस्ताव का इतिहास:
महाभियोग प्रस्ताव की शुरूआत ब्रिटेन से मानी जाती है। यहां 14वीं सदी के उत्तरार्ध में महाभियोग का प्रावधान किया गया था। इंग्लैड में राजकीय परिषद क्यूरिया रेजिस के न्यासत्व अधिकार द्वारा ही इस प्रक्रिया का जन्म हुआ। 16वीं शताब्दी में वारेन हेस्टिंग्ज तथा लार्ड मेलविले (हेनरी उंडस) के खिलाफ लाया गया महाभियोग प्रस्ताव हमेशा याद रहेगा।
संयुक्त राष्ट्र अमरीका में महाभियोग प्रस्ताव:
संयुक्त राष्ट्र अमरीका के संविधान के अनुसार उस देश के राष्ट्रपति, सहकारी राष्ट्रपति तथा अन्य सब राज्य पदाधिकारी को अपने पद से तभी हटाया जा सकता है, जब उनके ऊपर राजद्रोह, घूस तथा अन्य किसी प्रकार के विशेष दुराचारण का आरोप महाभियोग द्वारा सिद्ध हो होगा। अमरीका के विभिन्न राज्यों में महाभियोग का स्वरूप और आधार भिन्न-भिन्न रूप में हैं।
प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिये महाभियोग संबंधी भिन्न भिन्न नियम बनाए हैं, किंतु नौ राज्यों में महाभियोग चलाने के लिये कोई कारण विशेष नहीं प्रतिपादित किए गए हैं अर्थात् किसी भी आधार पर महाभियोग चल सकता है।
इंग्लैंड एवं अमरीका महाभियोग प्रकिया में अंतर:
संयुक्त राष्ट्र अमरीका और इंग्लैंड की महाभियोग प्रकिया में एक मुख्य अंतर है। इंग्लैंड में महाभियोग की पूर्ति के पश्चात् क्या दंड दिया जायेगा, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं है परन्तु संयुक्त राष्ट्र अमरीका में देश के संविधान के अनुसार महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के बाद सम्बंधित व्यक्ति को पद से निष्कासित (हटा देना) कर दिया जाता है तथा यह भी निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में वह किसी गौरवयुक्त पद ग्रहण करने का अधिकारी न रहेगा। इसके अतिरिक्त और कोई दंड नहीं दिया जा सकता।
भारत में महाभियोग की प्रक्रिया:
- भारत में महाभियोग प्रक्रिया का ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है, जिसका इस्तेमाल भारत के राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के न्यायाधीश (जज) को हटाने के लिए किया जाता है।
- महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है, जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों।
- नियमों के मुताबिक़, महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है।
- लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तख़त, और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के दस्तख़त ज़रूरी होते हैं। इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें (वे इसे ख़ारिज भी कर सकते हैं) तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है।
- उस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, एक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (जज) और एक ऐसे प्रख्यात व्यक्ति को शामिल किया जाता है जिन्हें स्पीकर या अध्यक्ष उस मामले के लिए सही मानें।
- अगर महाभियोग प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में लाया गया है तो दोनों सदनों के अध्यक्ष मिलकर एक संयुक्त जांच समिति बनाते हैं
- जांच पूरी हो जाने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या अध्यक्ष को सौंप देती है जो उसे अपने सदन में पेश करते हैं। अगर जांच में पदाधिकारी दोषी साबित हों तो सदन में वोटिंग कराई जाती है।
- प्रस्ताव पारित होने के लिए उसे सदन के कुल सांसदों का बहुमत या वोट देने वाले सांसदों में से कम से कम 2/3 का समर्थन मिलना ज़रूरी है। अगर दोनों सदन में ये प्रस्ताव पारित हो जाए तो इसे मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश को कैसे बर्खास्त या पद से हटाया जा सकता है?
भारत में सुप्रीम कोर्ट या किसी हाईकोर्ट के न्यायाधीश (जज) को महाभियोग प्रस्ताव के द्वारा ही हटाया जा सकता है। केवल देश के राष्ट्रपति के पास ही किसी न्यायाधीश (जज) को हटाने का अधिकार है।
न्यायाधीश (जज) पर महाभियोग की प्रक्रिया:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) में सुप्रीम कोर्ट या किसी हाईकोर्ट के जज को हटाए जाने का प्रावधान है। महाभियोग के जरिए सुप्रीम कोर्ट या किसी हाईकोर्ट के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया का निर्धारण जज इन्क्वायरी एक्ट 1968 द्वारा किया जाता है।
- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को राष्ट्रपति के आदेश से हटाया जा सकता है। न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों (लोकसभा एवं राज्यसभा) में दो-तिहाई बहुमत के साथ पारित होना चाहिए।
- न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव को लोकसभा के 100 और राज्यसभा के 50 सदस्यों का समर्थन होना चाहिए। इसके बाद इस प्रस्ताव को किसी एक सदन में पेश किया जाता है। लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापित के पास महाभियोग के प्रस्ताव को स्वीकार करने अथवा खारिज करने का विशेषाधिकार होता है। महाभियोग प्रस्ताव मंजूर किए लिए जाने के बाद एक तीन सदस्यीय समिति का गठन होता है और यह समिति न्यायाधीश के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करती है।
- इस तीन सदस्यीय समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश अथवा सुप्रीम कोर्ट का एक जज, हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश और एक प्रख्यात विधि वेत्ता शामिल होते हैं। समिति यदि अपनी जांच में न्यायाधीश को दोषी पाती है तो सदन में महाभियोग लगाने की कार्यवाही शुरू होती है। सदन के दो तिहाई सदस्यों द्वारा महाभियोग का प्रस्ताव पारित हो जाने के बाद उसे दूसरे सदन में भेजा जाता है। दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पारित महाभियोग को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। इसके बाद राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी करते हैं।
- भारत में आज तक किसी जज को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया क्योंकि इससे पहले के सारे मामलों में कार्यवाही कभी पूरी ही नहीं हो सकी या तो प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिला, या फिर जजों ने उससे पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया।
भारत में कब और किस न्यायाधीश खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया:
- सवतंत्र भारत में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (जज) जस्टिस वी रामास्वामी पर संसद में महाभियोग चलाया गया था। उनके ख़िलाफ़ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। उनके ऊपर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश रहने के दौरान प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियों का दुरुपयोग करने का आरोप था। यह महाभियोग मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश पर नहीं बल्कि लोकसभा की ओर से स्वयं लाया गया था। लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस ने इसके पक्ष में मतदान नहीं किया और यह विफल हो गया था।
- कोलकाता हाईकोर्ट के न्यायाधीश सौमित्र सेन देश के दूसरे ऐसे जज थे, जिन्हें 2011 में अनुचित व्यवहार के लिए महाभियोग का सामना करना पड़ा। यह भारत का अकेला ऐसा महाभियोग का मामला है जो राज्य सभा में पास होकर लोकसभा तक पहुंचा था। परन्तु लोकसभा में इस पर वोटिंग होने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफ़ा दे दिया।
- गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश जे बी पार्दीवाला के ख़िलाफ़ साल 2015 में जाति से जुड़ी अनुचित टिप्पणी करने के आरोप में महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन उन्होंने उससे पहले ही अपनी टिप्पणी वापिस ले ली।
- मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायाधीश एसके गंगेल के ख़िलाफ़ भी 2015 में ही महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके।
- आंध्र प्रदेश/तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के ख़िलाफ़ 2016 और 17 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई लेकिन इन प्रस्तावों को कभी ज़रूरी समर्थन नहीं मिला।
राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया:
भारत के राष्ट्रपति यानि देश के प्रथम नागरिक को भारतीय संविधान में काफी शक्तियां प्रदान की गई हैं। भारत के राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को हटाने ताकत भी प्रदान की गई है। महाभियोग द्वारा भारतीय संविधान के अंतर्गत राष्ट्रपति मात्र महाभियोजित होता है, अन्य सभी पदाधिकारी पद से हटाये जाते हैं। महाभियोजन एक विधायिका सम्बन्धित कार्यवाही है जबकि पद से हटाना एक कार्यपालिका सम्बन्धित कार्यवाही है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 61 के तहत राष्ट्रपति को उसके पद से मुक्त किया जा सकता है। आइये जानते है भारतीय राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग चलाने की पूरी प्रक्रिया क्या होती है:-
- राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग की कार्यवाही संसद के किसी सदन में प्रारम्भ की जा सकती है। लेकिन कार्यवाही शुरु करने से पहले राष्ट्रपति को 14 दिन पहले इसकी लिखित सूचना देनी होती है।
- आरोप एक संकल्प के रुप में होना चाहिए और उस पर सदन के एकक चौथाई सदस्यों के दस्तखत होने चाहिए।
- इस प्रस्ताव को संसद के एक सदन द्वारा पारित कर देने पर दूसरा सदन महाभियोग की वजहों की जांच करेगा, जब दूसरा सदन महाभियोग के कारणों की जांच कर रहा होता है तो तब राष्ट्रपति स्वयं उपस्थित होकर या अधिवक्ता के माध्यम से अपना बचाव प्रस्तुत कर सकता है।
- दोनों सदनों की कुल संख्या के 2/3 बहुमत से ही यह प्रस्ताव पारित होगा। महाभियोग पारित होने की तिथि से राष्ट्रपति पदमुक्त हो जाएगा।
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