लोकसभा का अध्यक्ष (स्पीकर) किसे कहते है?
लोकसभा का अध्यक्ष (स्पीकर) संसद के निम्न सदन का सभापति होता है। 'लोकसभा अध्यक्ष' का पद भारतीय लोकतंत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। अध्यक्ष पद के बारे में कहा गया है कि संसद सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, अध्यक्ष सदन के ही पूर्ण प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। कांग्रेस के बलराम जाखड़ सबसे लंबे समय तक सेवारत लोकसभा के अध्यक्ष थे , जो 9 साल 10 महीने और 27 दिन तक लोकसभा के अध्यक्ष रहे थे।
लोकसभा के वर्तमान अध्यक्ष (स्पीकर):
भारत के लोकसभा की वर्तमान अध्यक्ष ओम बिड़ला हैं। वे भारत के कोटा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी की 17वीं लोकसभा में सांसद हैं। वे कोटा से लगातार दूसरी बार संसद बने है। ओम बिड़ला ने 19 जून 2019 को लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में पद संभाला है।
ओम बिरला से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी:
- ओम बिड़ला राजस्थान में तीन बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके हैं। बिड़ला गवर्नमेंट कॉमर्स कॉलेज, कोटा में शिक्षित एक वाणिज्य स्नातकोत्तर है।
- उनका राजनीतिक जीवन छात्र की राजनीति से शुरू हुआ। वह 1979 में छात्र संघ के अध्यक्ष थे।
- बिड़ला ने 2003 में कोटा दक्षिण से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता। वह 2008 और 2013 में दो बार और चुने गए। उन्होंने वसुंधरा राजे सरकार में राज्य मंत्री (MoS) के रूप में भी कार्य किया है।
- बिड़ला एक पार्टी के कार्यकर्ता हैं और भाजपा की युवा शाखा, भारतीय जनता युवा मोर्चा में काफी सक्रिय हैं।
- वह राजस्थान में सहकारिता आंदोलन से भी जुड़े रहे और राष्ट्रीय सहकारी संस्था लिमिटेड के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए सुपर बाज़ार योजना को शुरू करने में मदद की।
- लोकसभा में, स्पीकर और डिप्टी स्पीकर दोनों सदनों में उपस्थित सदस्यों और साधारण सदस्यों द्वारा सदन में मतदान के लिए चुने जाते हैं। इसलिए, घर के भाले के रूप में चुने जाने के लिए कोई विशिष्ट योग्यता निर्धारित नहीं है।
- भारत के संविधान को केवल यह चाहिए कि अध्यक्ष को सदन का सदस्य होना चाहिए।
भारत के लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर)की सूची 1952 से 2024 तक (List of Lok Sabha Speakers in Hindi):
नाम | कार्यकाल अवधि |
जी॰ वी॰ मावलंकर | 15 मई 1952 से 27 फ़रवरी 1956 तक |
एमए अय्यंगर | 08 मार्च 1956 से 16 अप्रैल 1962 तक |
सरदार हुकम सिंह | 17 अप्रैल 1962 से 16 मार्च 1967 तक |
नीलम संजीव रेड्डी | 17 मार्च 1967 से 19 जुलाई 1969 तक |
जीएस ढिल्लों | 08 अगस्त 1969 से 01 दिसम्बर 1975 तक |
बलि राम भगत | 15 जनवरी 1976 से 25 मार्च 1977 तक |
एन संजीव रेड्डी | 26 मार्च 1977 से 13 जुलाई 1977 तक |
के. एस॰ हेगड़े | 21 जुलाई 1977 से 21 जनवरी 1980 तक |
बलराम जाखड़ | 22 जनवरी 1980 से 18 दिसम्बर 1989 तक |
रबी रे | 19 दिसम्बर 1989 से 09 जुलाई 1991 तक |
शिवराज पाटिल | 10 जुलाई 1991 से 22 मई 1996 तक |
पी॰ए॰ संगमा | 25 मई 1996 से 23 मार्च 1998 तक |
जी॰ एम॰ सी॰ बालयोगी | 24 मार्च 1998 से 03 मार्च 2002 तक |
मनोहर जोशी | 10 मई 2002 से 02 जून 2004 तक |
सोमनाथ चटर्जी | 4 जून 2004 से 30 मई 2009 तक |
मीरा कुमार | 30 मई 2009 से 06 जून 2014 तक |
सुमित्रा महाजन | 06 जून 2014 से 16 जून 2019 तक |
ओम बिड़ला | 19 जून 2019 से अब तक |
लोकसभा स्पीकर का कार्यकाल:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 83 (2) के अनुसार लोकसभा के अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। लोकसभा अध्यक्ष, इस पद पर निर्वाचित किये जाने की तारीख से लेकर जिस लोक सभा में उसका निर्वाचन किया गया हो, उसके भंग होने के बाद नई लोक सभा की प्रथम बैठक के ठीक पहले तक इस पर आसीन रहता है। वह पुनः इस पद पर निर्वाचित हो सकता है। लोक सभा भंग होने की स्थिति में अगर अध्यक्ष संसद सदस्य नहीं रहता है परन्तु उसे अपना पद नहीं छोड़ना पड़ता है। अध्यक्ष किसी भी समय उपाध्यक्ष को लिखित सूचना देकर अपने पद से त्याग-पत्र दे सकता है। अध्यक्ष को उसके पद से लोक सभा में उपस्थित सदस्यों द्वारा बहुमत से पारित संकल्प द्वारा ही हटाया जा सकता है।
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव:
भारतीय संसद के निचले सदन, लोक सभा में, दोनों पीठासीन अधिकारियों (presiding officers), अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन, इसके सदस्यों में से सभा में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है। वैसे तो अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए कोई विशेष योग्यता निर्धारित नहीं की गई है और संविधान में मात्र यह अपेक्षित है कि वह सभा का सदस्य होना चाहिए। परन्तु अध्यक्ष का पद धारण करने वाले व्यक्ति के लिए संविधान, देश के क़ानून, प्रक्रिया नियमों और संसद की परिपाटियों की समझ होना एक महत्त्वपूर्ण गुण माना जाता है।
लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियाँ और कार्य:
- बैठकों की अध्यक्षता करना व अनुशासन बनाए रखना- लोकसभा के अध्यक्ष का सबसे महत्वपूर्ण कार्य लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना व लोकसभा में अनुशासन में व्यवस्था को बनाए रखना है। उसकी आज्ञा का पालन लोकसभा के प्रत्येक सदस्य को करना पड़ता है। वह राज्य के विधानमंडलों के अध्यक्षों के सम्मेलन की भी अध्यक्षता करता है तथा विदेशों में भेजे जाने वाले शिष्टमंडलों के सदस्यों की नियुक्ति की भी करता है।
- प्रस्तावों को अनुमति देना- लोकसभा में प्रस्तुत किए जाने वाले प्रत्येक प्रस्तावों के संबंध में लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम निर्णय होता है। वह निर्णय करता है कि क्या प्रस्ताव को प्रस्तुत किया जा सकता है या नहीं। प्रस्ताव को पारित करने के लिए पर्याप्त कारण इसका निर्णय भी वही करता हैं।
- नेताओं को परामर्श देना- लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा के सबसे शीर्ष नेताओं जैसे कि प्रधानमंत्री को परामर्श देकर लोकसभा के कार्यक्रम को निर्धारित करने तथा बिलों का क्रम निर्धारित करने में सहायता करता है।
- संसदीय समितियों से संबंधित शक्तियाँ- संसद के कार्य को संवैधानिक और सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ समितियों का निर्माण किया जाता है। नियम समिति तथा कार्यमंत्रणा समिति की अध्यक्षता भी लोकसभा अध्यक्ष ही कार्य करता है। किसी समिति तथा अन्य समितियों के सभापति की नियुक्ति करने का अधिकार भी उसे ही है। अगर सरकार गोपनीयता की आड़ लेकर किसी दस्तावेज या रिपोर्ट को किसी समिति को देने से इनकार करे तो समिति वह मामला स्पीकर को सौंप सकती है तथा अध्यक्ष का निर्णय की सरकारी रिकॉर्ड समिति को दिखाया जाए अथवा नहीं अंतिम माना जाता है।
- भाषण संबंधी अधिकार- लोकसभा में दिए जाने वाले प्रत्येक भाषण लोकसभा अध्यक्ष को ही संबोधित करके दिए जाते हैं। अध्यक्ष ही यह निश्चित करता है कि कौन-सा सदस्य भाषण देगा और किस सदस्य का भाषण कितना प्रासंगिक अथवा अप्रासंगिक है।
- सदस्यों को चेतावनी देना- सदन में अनुशासन व्यवस्था को बनाए रखना अध्यक्ष का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। यदि लोकसभा का कोई सदस्य व्यवस्था को भंग करें तो अध्यक्ष उसे चेतावनी दे सकता है और आवश्यकता पड़ने पर उसे सदन के बाहर जाने के लिए बाध्य भी कर सकता है। सदन में यदि कोई सदस्य असंसदीय भाषा का प्रयोग करता है तो अध्यक्ष उसे वह भाषण वापस लेने के लिए भी मजबूर कर सकता है।
- सदन की बैठक को स्थगित करना- लोकसभा के अध्यक्ष की सबसे महत्वपूर्ण शक्तियों में से एक शक्ति यह है कि यदि उसे यह लगता है कि लोकसभा का वातावरण असंवैधानिक तथा गंभीर अवस्था में पहुंच गया है तो वह सदन की बैठक को जितने समय के लिए चाहे स्थगित कर सकता है।
- दर्शकों पर नियंत्रण- लोकसभा अध्यक्ष ऐसे व्यक्ति जो कि लोकसभा के सदस्य नहीं है और मात्र दर्शक के रूप में उपस्थित है, उनकी उपस्थिति पर नियंत्रण लगा सकता है अथवा उन्हें दर्शक गैलरी से बाहर जाने की आज्ञा या आदेश दे सकता है।
- सदस्यों की सुख-सुविधा संबंधित कार्य- लोकसभा के सदस्यों की सुविधा की दृष्टि से अध्यक्ष के कई उत्तरदायित्व होते हैं, वह सदस्यों के आवास, भत्ते, वेतन, टेलीफोन, परिवहन और अन्य सुविधाओं की देखभाल और प्रबंधन करता है।
- वित्त विधयेक का निर्णय- लोकसभा के अध्यक्ष का कार्य यह है कि वह यह निर्णय ले कि, कौन सा विधेयक धन विधेयक है तथा कौन सा विधेयक वित्त विधेयक है। विशेष विधयेक तथा साधारण में भी अंतर करने का अधिकार भी केवल अध्यक्ष को है।
- विधयेकों पर हस्ताक्षर करना- जिस विधेयक को लोकसभा द्वारा पास कर दिया जाता है, उस पर लोकसभा अध्यक्ष हस्ताक्षर करके आवश्यकता अनुसार उसे राज्यसभा या फिर राष्ट्रपति के पास विचार और अनुमति के लिए भेज सकता है।
- विशेषाधिकर की रक्षा करना- अध्यक्ष लोकसभा के सदस्यों के विशेष अधिकारों की रक्षा करता है। विरोधी दलों के अधिकारों की रक्षा का विशेष ध्यान रखता है जिससे बहुमत प्राप्त दल सदन में बहुमत के बल पर मनमानी ना कर सके।
- गणमूर्ति (कोरम) का निर्णय- सदन की बैठक होने के लिए निश्चित किया गया है कि कोरम है अथवा नहीं इसका निर्णय भी लोकसभा अध्यक्ष ही करें। क्योंकि कोरम की अनुपस्थिति में लोकसभा की कार्यवाही कभी भी नहीं हो सकती है इसीलिए यह सुनिश्चित करना बेहद आवश्यक हो जाता है कि कोरम हमेशा मौजूद हो।
- विधेयकों पर मत लेना- कोई भी विधेयक उचित है या नहीं इसे लेकर लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सदन के सदस्यों से उस विधयेक के पक्ष और विपक्ष में मत (वोट) देने को कहा जाता है। जब मतदान हो जाता है तो उस प्रस्ताव की स्वीकृति तथा अस्वीकृति की घोषणा भी अध्यक्ष करता है।
- निर्णायक मत देना- जब कभी भी सदन में किसी प्रस्ताव पर वोटिंग करवाई जाती है और अगर वोटिंग का अनुपात बराबर होता है तो ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष का निर्णायक मत ही सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है। वह अपने मत का उपयोग कर प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में मतदान करके उसे स्वीकृति आता अस्वीकृति दे सकता है।
- संयुक्त अधिवेशन का सभापतित्व करना- जब कभी राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा और राज्यसभा दोनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है तो ऐसे में संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता करने का कार्य लोकसभा अध्यक्ष करता है।
- प्रशासनिक कार्य- अध्यक्ष के प्रशासनिक कार्यो में सदन की सुरक्षा देखना, अजनबी (दर्शक) लोगों और समाचारपत्रों के प्रतिनिधियों की सदन की गैलरी में प्रवेश पाने की अनुमति देना तथा सदन के निर्णयों को लागू करवाने हेतु उचित अधिकारी को पहुंचाना आदि शामिल है। उसकी अनुमति के बिना किसी भी सदस्य को सदन के सीमाक्षेत्र में बंदी नहीं बनाया जा सकता है। वह अधिकारियों को यह आदेश दे सकता है कि वे सदन या उसकी किसी समिति के लिए कोई आवश्यक सूचना या जानकारी जुटाएँ।
स्पीकर (अध्यक्ष) की सदन में स्थिति
लोकसभा स्पीकर का पद संसदीय प्रणाली पर आधारित होने के कारण एक प्रतिष्ठित व अराजनैतिक पद है। अध्यक्ष सदन की प्रतिष्ठा और मर्यादा का संरक्षक माना जाता है। जब वह खड़ा हो जाता है तब सदन के सभी सदस्य बैठ जाते है और जब तक वह अपना कथन समाप्त न कर ले, कोई भी सदस्य सदन नहीं छोड़ सकता है। उसके कथन से सदस्य बेशक नाराज हो जाए परंतु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि वह अध्यक्ष के आदेश का पालन करें।
ब्रिटेन के स्पीकर के समान ही भारत के स्पीकर के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने आपको दलगत राजनीति से दूर रखें। वह विरोधी दल रूपी अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की सदन में रक्षा करें। उसे ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे ऐसा लगे कि वह सत्तारूढ़ दल का पक्षधर है। उसे किसी का पक्षधर नहीं होना चाहिए ताकि उसके मन में अनजाने में भी कोई पूर्वाग्रह ना बन जाए। सदन के सभी पक्षों का उसकी ईमानदारी और निष्पक्षता में विश्वास इसी तरह अर्जित हो सकेगा।
अब संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें और देखें कि आपने क्या सीखा?
☞ भारत की लोकसभा से संबंधित प्रश्न उत्तर 🔗
यह भी पढ़ें:
- भारत के उपराष्ट्रपति की सूची (1952 से 2024) 🔗
- भारत के राष्ट्रपतियों की सूची 1950 से 2024 तक 🔗
- भारत के प्रधानमंत्री की सूची 1947 से 2024 तक, राजनीतिक पार्टी, कार्यकाल 🔗
- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की सूची 1974 से 2023 तक 🔗
भारत के लोकसभा अध्यक्ष प्रश्नोत्तर (FAQs):
लोकसभा अध्यक्ष अपना त्यागपत्र लोकसभा के उपाध्यक्ष को संबोधित करते हैं। लोकसभा अपने अध्यक्ष का चुनाव अपने में से करती है। लोकसभा अध्यक्ष अपने पद के लिए कोई अलग से शपथ या प्रतिज्ञान नहीं लेता, बल्कि लोकसभा के सदस्य के रूप में शपथ लेता है।
वर्ष 1976 में घोषित आपातकाल के दौरान लोकसभा का कार्यकाल केवल एक बार 5 वर्ष से 6 वर्ष तक बढ़ाया गया था लेकिन विस्तारित अवधि की समाप्ति से पहले ही लोकसभा भंग कर दी गई थी।
लोकसभा द्वारा पारित और प्रेषित धन विधेयक को उसकी प्राप्ति के 14 दिनों के भीतर वापस करना अनिवार्य है। राज्यसभा प्रेषित धन विधेयक को सिफारिशों के साथ या बिना सिफारिशों के वापस भेज सकती है।
गणेश वासुदेव मावलंकर भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं भारतीय लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष थे। उन्हें 'दादासाहेब' के नाम से भी जाना जाता था। वे अहमदाबाद लोकसभा क्षेत्र से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रुप में लोकसभा में निर्वाचित हुये थे।
भारत की संसद के निचले सदन लोकसभा के अध्यक्ष का चयन इसके सदस्यों द्वारा किया जाता है। अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया लोकसभा के एक सदस्य द्वारा अध्यक्ष पद के लिए एक उम्मीदवार का प्रस्ताव पेश करने वाले प्रस्ताव से शुरू होती है।