पाल राजवंश का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची:
पाल वंश:
पाल वंश का उद्भव बंगाल में लगभग 750 ई. में गोपाल से हुआ। इस वंश ने बिहार और अखण्डित बंगाल पर लगभग 750 से 1174 ई. तक शासन किया। इस वंश की स्थापना गोपाल ने की थी, जो एक स्थानीय प्रमुख था। गोपाल 8वीं शताब्दी के मध्य में अराजकता के माहौल में सत्ताधारी बन बैठा। उसके उत्तराधिकारी धर्मपाल (शासनकाल, लगभग 770-810 ई.) ने अपने शासनकाल में साम्राज्य का काफ़ी विस्तार किया और कुछ समय तक कन्नौज, उत्तर प्रदेश तथा उत्तर भारत पर भी उसका नियंत्रण रहा। यह पूर्व मध्यकालीन राजवंश था।
जब हर्षवर्धन काल के बाद समस्त उत्तरी भारत में राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक गहरा संकट उत्पन्न हो गया, तब बिहार, बंगाल और उड़ीसा के सम्पूर्ण क्षेत्र में पूरी तरह अराजकत फैली थी। इसी समय गोपाल ने बंगाल में एक स्वतन्त्र राज्य घोषित किया। जनता द्वारा गोपाल को सिंहासन पर आसीन किया गया था। वह योग्य और कुशल शासक था, जिसने 750 ई. से 770 ई. तक शासन किया। इस दौरान उसने औदंतपुरी (बिहार शरीफ) में एक मठ तथा विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया। पाल शासक बौद्ध धर्म को मानते थे। आठवीं सदी के मध्य में पूर्वी भारत में पाल वंश का उदय हुआ। गोपाल को पाल वंश का संस्थापक माना जाता है।
पाल वंश के बारे में हमें तिब्बती ग्रंथों से भी पता चलता है, यद्यपि यह सतरहवीं शताब्दी में लिखे गए। इनके अनुसार पाल शासक बौद्ध धर्म तथा ज्ञान को संरक्षण और बढ़ावा देते थे। नालन्दा विश्वविद्यालय को, जो सारे पूर्वी क्षेत्र में विख्यात है, धर्मपाल ने पुनः जीवित किया और उसके खर्चे के लिए 200 गाँवों का दान(अलग) कर दिया। उसने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की भी स्थापना की। जिसकी ख्याति केवल नालन्दा के बाद है। यह मगध में गंगा के निकट एक पहाड़ी चोटी पर स्थित था। पाल शासकों ने कई बार विहारों का भी निर्माण किया जिसमें बड़ी संख्या में बौद्ध रहते थे।
पाल राजवंश का उत्थान व पतन का क्रम:
देवपाल (शासनकाल, लगभग 810-850 ई.) के शासनकाल में भी पाल वंश एक शक्ति बना रहा, उन्होंने देश के उत्तरी और प्राय:द्वीपीय भारत, दोनों पर हमले जारी रखे, लेकिन इसके बाद से साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक महेन्द्र पाल (नौवीं शताब्दी के उत्तरार्ध्द से आरंभिक दसवीं शताब्दी) ने उत्तरी बंगाल तक हमले किए। 810 से 978 ई. तक का समय पाल वंश के इतिहास का पतन काल माना जाता है।
इस समय के कमज़ोर एवं अयोग्य शासकों में विग्रहपाल की गणना की जाती है। भागलपुर से प्राप्त शिलालेख के अनुसार, नारायण पाल ने बुद्धगिरि (मुंगेर), तीरभुक्ति (तिरहुत) में शिव के मन्दिर हेतु एक गाँव दान दिया, तथा एक हज़ार मन्दिरों का निर्माण कराया। पाल वंश की सत्ता को एक बार फिर से महिपाल, (शासनकाल, लगभग 978 -1030 ई.) ने पुनर्स्थापित किया। उनका प्रभुत्व वाराणसी (वर्तमान बनारस, उत्तर प्रदेश) तक फैल गया, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद साम्राज्य एक बार फिर से कमज़ोर हो गया। पाल वंश के अंतिम महत्त्वपूर्ण शासक रामपाल (शासनकाल, लगभग 1075 -1120) ने बंगाल में वंश को ताकतवर बनाने के लिये बहुत कुछ किया और अपनी सत्ता को असम तथा उड़ीसा तक फैला दिया।