राजरानी मंदिर संक्षिप्त जानकारी
स्थान | भुवनेश्वर, ओडिशा (भारत) |
निर्माण काल | 11वीं शताब्दी |
प्रकार | ऐतिहासिक हिन्दू मंदिर |
वास्तुकला | कलिंग वास्तुकला |
अन्य नाम | इंद्रेश्वर मंदिर, प्रेम मंदिर |
सामग्री | लाल और पीले बलुआ पत्थर |
घूमने का समय | सुबह 6:30 से शाम 9 बजे तक |
प्रवेश शुल्क | भारतीयों के लिए15 रुपए, विदेशी यात्री 200 रुपए |
राजरानी मंदिर का संक्षिप्त विवरण
भारतीय राज्य ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित राजारानी मंदिर प्राचीनकाल की उत्कृष्ट वास्तुशिल्प का श्रेष्ठ उदाहरण है। इस हिन्दू मंदिर का निर्माण लगभग 11वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। ऐसा माना जाता है कि मूलरूप से इस मंदिर को इन्द्रेस्वरा नाम से जाना जाता है।
राजरानी मंदिर का इतिहास
यह मंदिर लिंगराज मंदिर के उत्तर-पूर्व में स्थित है, जिसका निर्माण 11वीं शताब्दी के मध्य में किया गया था। साल 1953 में एस. के. सरस्वती द्वारा किए गए उड़ीसा मंदिरों के सर्वेक्षण में इसी तरह की तारीख का जिक्र किया गया है। बड़े-बड़े विभिन्न इतिहासकारों ने भी इस मंदिर को 11वीं और 12वीं शताब्दी के मध्य का ही बताया है जिस वक्त पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर बनाया गया था। यह भुवनेश्वर के सबसे ज्यादा घूमे जाने वाले मंदिरों में से एक है।
राजरानी मंदिर के रोचक तथ्य
- इस भव्य मंदिर को सुस्त लाल और पीले बलुआ पत्थर से बनाया गया था जिसे स्थानीय रूप में "राजरानी" कहा जाता है और इसके ही कारण इस मंदिर का नाम राजारानी पड़ा था।
- मंदिर में महिलाओं और जोड़ों की अद्भुत नक्काशी के कारण इसे स्थानीय रूप से "प्रेम मंदिर" के रूप में जाना जाता है।
- यह मंदिर दो संरचनाओं के साथ एक मंच पर पंचाट शैली में बनाया गया है। मध्य के मंदिर को विमान कहते है और मंदिर के पिरामिड को देखने के लिए छत पर एक हॉल है जिसे “जगमोहन” कहा जाता है।
- इस मंदिर की रोचक बात यह है कि यहां किसी भगवान की पूजा नहीं की जाती है क्योंकि मंदिर के गर्भ-गृह में कोई प्रतिमा नहीं है।
- मंदिर की दीवारों पर महिला और पुरुषों की कुछ कामोत्तेजक नक्काशी की गई है। ये कलाकृतियाँ मध्य प्रदेश स्थित खजुराहो मंदिर की कलाकृतियों की याद दिलाती हैं।
- मंदिर में पंचांग बाड़ा, या पाँच विभाग हैं जिसे पभागा, तालजंघ, बंधन, अपराजना और बरंडा कहा जाता है।
- मंदिर के अन्दर किसी भी पवित्र देवी-देवताओं की प्रतिमा नहीं है और इसलिए ये मदिर हिन्दू धर्म के किसी विशिष्ट संप्रदाय से सम्बंधित नहीं है, परन्तु बड़े तौर पर यह शैव पंथियों का मंदिर माना जाता है।
- मंदिर के चारों ओर की दीवारों पर महिलाओं के लुभावने जटिल और विस्तृत नक्काशी वाली विभिन्न मूर्तियां बनाई गई हैं। जैसे एक बच्चे को प्रेम करती महिला, दर्पण देखती महिला, पायल निकालती हुई महिला, म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट बजाती और नाचती हुई महिलाओं की मूर्तियां देखी जा सकती हैं। इसके अलावा नटराज की मूर्ति, भगवान् शिव के विवाह की प्रतिमा भी यहां बनी हुई है।
- ऐसा माना जाता है कि मध्य भारत के अन्य मंदिरों का निर्माण इस मंदिर को देखकर किया गया है, जिनमें मुख्य रूप से खजुराहो के स्मारक समूह के मंदिर और कड़वा का तोतेस्वारा महादेव मंदिर आदि शामिल है।
- मंदिर की अन्य विख्यात मूर्तियां नाग-नागी स्तम्भ, प्रवेश द्वार पर शिव द्वारपाल, और प्रवेश द्वार के ऊपर लंकुलिसा है जिसके ऊपर नवग्रहों का स्थापत्य है।
- इस मंदिर का रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है और इसमें प्रवेश के लिए टिकट लेना पड़ता है।
- मंदिर में हर साल 18 जनवरी से 20 जनवरी तक ओडिशा सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा एक राजारानी संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है।
- यह मंदिर शास्त्रीय संगीत पर केंद्रित है और शास्त्रीय संगीत की सभी तीन शैलियों जिसमे हिंदुस्तानी, कर्नाटक और ओडिसी आदि को समान महत्व प्रदान करता है।
- इस तीन दिवसीय महोत्सव में भारत के विभिन्न भागो से संगीतकार आकर हिस्सा लेते है और अपने संगीत का प्रदर्शन करते है।
- यह त्यौहार भुवनेश्वर संगीत मंडल (बीएमसी) की मदद से साल 2003 में शुरू हुआ था।
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