गणगौर संक्षिप्त तथ्य

त्यौहार का नामगणगौर (Gangaur)
त्यौहार की तिथि11 अप्रैल 2024
त्यौहार का प्रकारधार्मिक
त्यौहार का स्तरक्षेत्रीय
त्यौहार के अनुयायीहिंदू

गणगौर का इतिहास

गणगौर मुख्य रूप से उत्तर भारतीय राज्यों विशेषकर राजस्थान और उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। गणगौर उत्सव 18 दिनों का त्योहार है जो चैत्र मास के पहले दिन से शुरू होता है। गणगौर पूजा भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है और वैवाहिक आनंद का जश्न मनाने वाला एक हिंदू त्योहार है।

गणगौर का इतिहास प्राचीन है और इसका महत्वपूर्ण स्थान भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में है। यह पर्व प्राचीनतम समय से मनाया जाता आया है और इसकी शुरुआत पौराणिक कथाओं और पुराणों में उल्लेखित है। गणगौर पर्व का महत्वपूर्ण संदर्भ महाभारत काल में होता है।

गणगौर से संबंधित कहानी

अभिमन्यु और उत्तरा:- गणगौर का पर्व अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु और उसकी पत्नी उत्तरा की अपने पिता की मांग पर्याप्त संख्या के संतानों की कामना करने के लिए शुरू हुआ था। इस पर्व के दौरान सभी महिलाएं गंगा माता और शिव भगवान की पूजा करतीं थीं और शुभकामनाएं देतीं थीं।

गांगा और शिव: यह कथा महाभारत काल की है, जब अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु और उत्तरा की शादी होने जा रही थी। उत्तरा के पिता महाराज विराट को उनकी संतानों की कामना थी, इसलिए वे गंगा और शिव की उपासना करने लगे। उन्होंने गणगौर का व्रत रखा और भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए उत्तरा को अनेक संतानें दीं। इस कथा के चलते गणगौर को उत्सवात्मक रूप में मनाया जाने लगा।

राणी पद्मावती और रावल रतन सिंह: यह कथा चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मावती और उनके पति रावल रतन सिंह के बारे में है। रानी पद्मावती ने गणगौर का व्रत रखा था और इस पर्व को अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना के लिए मनाती थीं। इस कथा में गणगौर का पर्व राजपूताना की संस्कृति और मान्यताओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

गणगौर का महत्व

गणगौर का महत्व भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में बहुत अधिक है। इस पर्व को मनाने से पुरानी संस्कृति और परंपराएं संजीवित होती हैं और समाज में एकता, परिवार के महत्व और स्त्री-पुरुष समानता का संकेत मिलता है। गणगौर पर्व में महिलाएं गंगा माता और शिव भगवान की पूजा करती हैं और पुरुष अपनी पत्नी का सम्मान करते हैं। इस पर्व के माध्यम से स्त्री-पुरुष समानता के सिद्धांतों का प्रचार होता है और परिवार के महत्व को मजबूती से दर्शाया जाता है। गणगौर का व्रत रखने से मान्यता है कि महिलाएं अपने पतियों के लंबे और सुखी जीवन की कामना करती हैं। इसके अलावा, गणगौर पर्व को अपनाने से संतानों की कामना और उनके सुरक्षित जन्म की प्रार्थना भी की जाती है।

गणगौर का पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से शुरू होता है, जो कृषि और बारिश के मौसम की शुरुआत का संकेत माना जाता है। यह पर्व उत्सवात्मक रूप में मनाने से लोग अच्छी मौसम और पुरे वर्ष में अच्छी फसल की कामना करते हैं। गणगौर पर्व में लोग उमड़-पड़ जाते हैं और आपस में खुशियां बांटते हैं। मेलों, गीतों, नृत्यों और परंपरागत खेलों का आयोजन किया जाता है, जिससे सामाजिक एकता और मेल-जोल का माहौल बना रहता है।

गणगौर कैसे मनाते हैं

गणगौर को विभिन्न राज्यों में थोड़ी-थोड़ी विभिन्नताएं हो सकती हैं, लेकिन इसे आमतौर पर निम्नलिखित रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है:

इस पर्व के दौरान, महिलाएं सुंदर वस्त्रों में सजती हैं, श्रृंगार करती हैं और विवाहित महिलाएं चौदह दिन तक निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत के दौरान उन्हें भोजन या पानी नहीं पिलाया जाता है और वे व्रत के अंत में प्रदर्शन करती हैं। पुरुषों की ओर से, गणगौर पर्व में वे अपनी पत्नियों को उपहार देते हैं और उनकी पूजा करते हैं। पूजा के बाद, महिलाएं गणगौर की विशेष भोग (प्रसाद) तैयार करती हैं। इसमें मिठाई, पूरी, हलवा, मेवा और व्रत संबंधित खाद्य पदार्थ शामिल हो सकते हैं। यह भोग भगवान को चढ़ाकर और उसके बाद महिलाओं को खाने के लिए प्रदान किया जाता है। गणगौर का पर्व खुशियों का एक अवसर होता है, जहां लोग मिलकर नृत्य, गान और खेल-मेल का आनंद लेते हैं। यहां लोग रंग-बिरंगे पोशाक पहनते हैं, परम्परागत नृत्य करते हैं और गीत गाते हैं।

गणगौर की परंपराएं और रीति-रिवाज

गणगौर का पर्व भारत के विभिन्न हिस्सों में थोड़ी-थोड़ी रूपरेखा रखता है और लोग अपनी स्थानीय परंपराओं और प्राथमिकताओं के अनुसार मनाते हैं। महिलाएं गणगौर के दिन व्रत रखती हैं और सदियों से विभिन्न नियमों का पालन करती हैं। इसमें भोजन के विशेष प्रकार, अनानास, संतरा, सुपारी, नारियल आदि का सेवन शामिल हो सकता है। त्योहार के लिए ईसर और पार्वती की छवियां मिट्टी से बनाई जाती हैं। कुछ राजपूत परिवारों में, त्योहार की पूर्व संध्या पर माथेरान कहे जाने वाले प्रतिष्ठित चित्रकारों द्वारा हर साल लकड़ी की स्थायी छवियों को नए सिरे से चित्रित किया जाता है। गणगौर के पर्व को लोग सामाजिक समारोहों के रूप में मनाते हैं। इसमें परंपरागत मेले, उत्सव, रंगबिरंगे प्रदर्शन, मार्केट्स, नाच-गान और खेल शामिल हो सकते हैं।लोग एकत्रित होकर गीत, नृत्य और खेल-मेल का आनंद लेते हैं।

गणगौर के बारे में अन्य जानकारी

गणगौर का पर्व पहले के मुकाबले आज कुछ अलग तरीकों से मनाया जाता है:

सामाजिक बदलाव: पहले के दौर में गणगौर का पर्व मुख्य रूप से सामाजिक परंपराओं और पति-पत्नी के रिश्तों पर केंद्रित था। हालांकि, आजकल इसे एक ब्रोडर सेलिब्रेशन बनाने की दिशा में बदला जा रहा है, जिसमें महिलाएं स्वतंत्रता, सामाजिक समानता और आत्मनिर्भरता की मुद्रा के रूप में इसे मनाती हैं।

महिला शक्ति की प्रशंसा: आजकल, गणगौर का पर्व महिला शक्ति की प्रशंसा और महिला सशक्तिकरण का एक प्लेटफॉर्म बन चुका है। इसके माध्यम से, महिलाएं अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सम्मान को दर्शाती हैं और अपनी प्रगति और उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करती हैं।

सार्वजनिक मेले: कई स्थानों पर, गणगौर के अवसर पर सार्वजनिक मेले आयोजित किए जाते हैं। इन मेलों में, लोग भारतीय संस्कृति, खाद्य-व्यंजन, वस्त्र, हस्तशिल्प और मनोरंजन का आनंद लेते हैं।

महत्वपूर्ण त्योहारों की सूची:

तिथि त्योहार का नाम
13 जनवरी 2024 लोहड़ी
14 जनवरी 2024 मकर संक्रांति
9 अप्रैल 2024 - 17 अप्रैल 2024चैत्र नवरात्रि
11 अप्रैल 2024 गणगौर
17 अप्रैल 2024 राम नवमी
17 सितंबर 2023 भगवान विश्वकर्मा जयंती
24 अक्टूबर 2023विजयादशमी
9 अप्रैल 2024गुडी पडवा
30 अगस्त 2023रक्षाबंधन
15 अक्टूबर 2023 - 24 अक्टूबर 2023नवरात्रि
20 अक्टूबर 2023 - 24 अक्टूबर 2023दुर्गा पूजा
10 नवंबर 2023धन तेरस
21 अगस्त 2023नाग पंचमी
23 अप्रैल 2024हनुमान जयंती

गणगौर प्रश्नोत्तर (FAQs):

इस वर्ष गणगौर का त्यौहार 11 अप्रैल 2024 को है।

गणगौर एक धार्मिक त्यौहार है, जिसे प्रत्येक वर्ष बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

गणगौर का त्यौहार प्रत्येक वर्ष हिंदू धर्म / समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है।

गणगौर एक क्षेत्रीय स्तर का त्यौहार है, जिसे मुख्यतः हिंदू धर्म / समुदाय के लोगों द्वारा धूम धाम से मनाया जाता है।

  Last update :  Thu 8 Jun 2023
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